सियासी तर्जुमा

षड़यंत्र से उपजा बघेल का शक्ति वर्द्धक यंत्र !

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव (TS Singh Deo) के बीच छत्तीस का आंकड़ा नए सियासी गणित तक पहुंच गया है। दिल्ली से लौटने के बाद बघेल कल जिस तरह आक्रामक दिखे, वह सिंहदेव कैंप के लिए नींद उड़ा देने वाला मामला है। बघेल ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ढाई साल के मुख्यमंत्री की बात कहने वाले राज्य की सरकार को कमजोर करने की साजिश रच रहे हैं। वह यह भी बोले कि जिस दिन सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) या राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कहेंगे, उस दिन वह तुरंत मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे।

मंगलवार को राहुल गांधी ने दिल्ली में बघेल और सिंहदेव से अलग-अलग चर्चा की थी। इसके पहले जो हुआ, वह यह था कि सिंहदेव की तरफ से प्रकारांतर से  यह बात कही जा रही थी कि राज्य में उन और बघेल को ढाई-ढाई साल तक मुख्यमंत्री बनाने का फार्मूला तय किया गया था। इसी साल के मध्य से  कुछ पहले बघेल ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद संभाल चुके हैं। टशन भरी यह टसल बढ़ी तो कांग्रेस के राज्य प्रभारी पीएल पुनिया (PL Puniya) ने इन दोनों नेताओं की दिल्ली दरबार में हाजिरी लगवा दी।
जैसा कि राजनीति में होता है, बघेल किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री का पद छोड़ना नहीं चाहेंगे। फिर यह भी स्थापित तथ्य है कि विधायकों के समर्थन के लिहाज से सिंहदेव की स्थिति मुख्यमंत्री के मुकाबले काफी कमजोर है। सरगुजा राजघराना शायद ही कांग्रेस से बगावत का मार्ग चुनेगा। लेकिन यदि ऐसा हो गया और यदि सिंहदेव भाजपा के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ का ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) बनना चाहें, तब भी उनकी दाल गलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन वाला मामला होगी। कांग्रेस की 69 सीटों के मुकाबले भाजपा (BJP) की महज 14 विधायकों वाली संख्या सिंहदेव के मुख्यमंत्री के सिंहासन पर बैठने की इच्छा को कोई बल नहीं दे सकेगी।
दिल्ली में गांधी की इन दो नेताओं से चाहे जो भी बात हुई हो, किन्तु यह तय है कि ऊंट कम से कम सरगुजा राजघराने (Sarguja Dynasty) की तरफ नहीं बैठा। हां, यह हो सकता है कि सिंहदेव को किसी और तरीके से ताकतवर बनाकर उन्हें संतुलित करने का प्रयास किया जाए। जैसा कि इस पार्टी ने पंजाब में कप्तान अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) के विरोधी नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Sidhu) के साथ किया है। किन्तु यह नामुमकिन दिखता है कि कांग्रेस का नेतृत्व सिंहदेव को प्रदेश अध्यक्ष का पद सौंपे। वह ले-देकर कुछ ही राज्यों में बची अपनी सरकार को लेकर छत्तीसगढ़ में संगठन के स्थापित नेताओं की नाराजगी मोल लेने की बजाय सिंहदेव के गुस्से से निपटना ज्यादा आसान समझेगी।
सिंहदेव वैसे ही छले गए, जिस तरह मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट (Sachin Pilot) के साथ किया गया था। फिर इस राज्य की तो नींव ही कांग्रेस ने धोखे पर रखी। श्यामाचरण शुक्ल(Shyamacharan Shukl), विद्याचरण शुक्ल (Vidhyacharan Shukl) या महेंद्र कर्मा (Mahendra Karma) की जगह अजीत जोगी (Ajit Jogi) को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। अब इसी छल के छालों से पीड़ित सिंहदेव की राजनीतिक यात्रा को कांग्रेस आलाकमान ने और कठिन बना दिया है। सिंहदेव ने भले ही राजहठ न किया हो, किन्तु राजे-रजवाड़ों वाला खून तो उनके भीतर ठांठें मार ही रहा है। ढाई साल तक चले निरंतर अपमान और अब आने वाले करीब ढाई साल तक ही चलने वाली सतत पीड़ा को लेकर वह किस समय और किस तरह प्रतिक्रिया देंगे, यह देखने वाली बात होगी।  या फिर ऐसा  होगा कि सिंहदेव सब-कुछ बिसराकर यही सोचकर शांत रह जाएं कि फिलहाल किसी भी तरीके से हवा उनके अनुकूल नहीं चल रही है। खारून नदी की लहरों में फिलहाल उनके लिए मिठास नहीं है।
दरअसल सिंहदेव एक गलती कर गए। ढाई साल तक वह इस तथ्य से आंख मूंदे रहे कि किस तरह बघेल ने आने वाले समय पर बारीकी से नजरें गड़ा रखी हैं। किस तरह वह लगातार खुद को और अधिक मजबूत करते जा रहे हैं। अजीत जोगी के खेमें में लगाई गयी सेंध भले ही बघेल का षड़यंत्र कहा जाए, किन्तु इसने मुख्यमंत्री के लिए राजनीतिक शक्ति वर्द्धक यंत्र का काम किया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button