किस-किस को फायदा हुआ होगा इस सबका
हत्या निश्चित ही गलत है। इसलिए महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की जान लेने वाले नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को आज दी गयी फांसी पर कुछ कहना उचित नहीं होगा। किंतु एक लगातार हो रहे अनुचित पर मौन रखना भी गलत होगा। मैं बात उन निर्दोष लोगों की कर रहा हूं, जो सिर्फ इसलिए मार डाले गए कि वह गोडसे की ही तरह चितपावन ब्राह्मण (Chitpawan Brahmins of Maharashtra) समुदाय से थे। ऐसे निरपराध लोगों की संख्या हजारों में बतायी जाती है। बताया यह भी जाता है कि हत्यारों के खिलाफ पुलिस की कार्यवाही होना तो दूर, प्रकरण तक कायम नहीं किये गए थे। चितपावन समुदाय के करीब बीस हजार लोगों के मकान तथा प्रतिष्ठान जला दिए गए थे। सामूहिक नरसंहार (Genocide) और दमन का यह चक्र महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा चला। वही महाराष्ट्र, जहां गोडसे का निवास था। वही महाराष्ट्र, जिसके एक घर में आज भी गोडसे की अस्थियां सुरक्षित रखी गयी हैं। उन्हें गोडसे के उस सपने के पूरा होने का इंतज़ार है कि जिस दिन हिन्द और सिंध पुनः एक हो जाएंगे, उस दिन इन अस्थियों को सिंधु नदी (Indus River) में विसर्जित कर दिया जाए।
गांधी जी तो अहिंसा (Non Violence) के पुजारी थे। फिर वो कौन लोग थे, जिन्होंने अपने इस पूज्य व्यक्तित्व की सीख से ठीक परे जाकर अनाचारी हिंसा के माध्यम से उनकी हत्या का गुस्सा निर्दोषों पर उतारा? हत्या वाली मानसिकता का तो इंदिरा गांधी जी (Indira Gandhi) ने भी समर्थन नहीं किया था, तो फिर ऐसा कैसे हुआ कि उनकी हत्या के बाद हजारों सिख केवल इसलिए मार डाले गए कि इंदिरा जी के हत्यारे इसी समुदाय से थे? चितपावन ब्राह्मणों से लेकर सिखों तक के इस नरसंहार को गौर से देखें तो कहीं न कहीं इनके बीच ‘बड़ा पेड़ गिरने से जमीन के कांपने’ वाली थ्योरी के तार जुड़े दिख जाएंगे।
लेखक और इतिहासकार विक्रम सम्पत (Historian Vikram Sampat) का तो साफ़ कहना है कि चितपावन ब्राह्मणों के खिलाफ हिंसा कांग्रेस (Congress) की शह पर फैलाई गयी थी। यह आरोप भी आज तक सप्रमाण खारिज नहीं किया जा सका है कि सिखों के नरसंहार के पीछे भी कांग्रेस के बड़े नेताओं का ही हाथ था। सज्जन कुमार (Sajjan Kumar) को तो बाकायदा इस मामले में सजा हुई है। इसी से जुड़ा मुकदमा कांग्रेस के उस समय के कुख्यात हो गए नेता एचकेएल भगत (HKL Bhagat) और जगदीश टाइटलर (Jagdish Tytler) पर भी चला। इस दल से जुड़े और भी कई ऐसे लोगों पर दंगाइयों की भीड़ का नेतृत्व करने के आरोप लगे, जो उस वक्त पार्टी के शीर्ष से पूरी श्रद्धा के साथ जुड़े हुए थे और उनकी गिनती अत्यंत महत्वपूर्ण चेहरों के रूप में की जाती थी।
अत्याचार के शिकार हुए चितपावन ब्राह्मण हों या हों 1984 के उन्माद में ख़त्म कर दिए गए सिख, आखिर उन्होंने किस बात की सजा भुगती? भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, लेकिन एक मनोविज्ञान तो होता है। इस मनोविज्ञान को ख़ास तरीके से संचालित करने का फायदा किसे हुआ, यह विचारणीय प्रश्न है। ऐसे कई लाभों की पड़ताल की ही नहीं जा रही है। मसलन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के कांग्रेस में सतत अपमान और फिर उनके गुमनाम जीवन से किसे सबसे ज्यादा फायदा मिला? शहीदे-आजम भगत सिंह (Bhagat Singh) जी की आसानी से रोकी जा सकने वाली फांसी को न रोकने का किसने एडवांटेज पाया? शहीद चंद्रशेखर आजाद (Chandrashekhar Azad) जी की मुखबिरी का मुनाफ़ा किसके हिस्से में आया? ऊधम सिंह (Udham Singh) ने तो भारतीयों पर दिल दहला देने वाले अत्याचार के क्रोध में लंदन जाकर माइकल ओ ड्वायर (Michael Francis O’Dwyer ) को गोली मारी थी। उनके इस कृत्य का विरोध करने वालों (जिनमें गांधी जी तथा जवाहर लाल नेहरू (Jawahar lal Nehru) जी भी शामिल थे) को इससे किस तरह का फायदा मिला? सवाल अनंत हैं। अनंत पीड़ा भी उनमें छिपी हुई है।
भोपाल (Bhopal) को आज भी यह सवाल सालता है कि आखिर हजारों शहरियों की मौत के आरोपी वारेन एंडरसन (Warren Anderson) को इस देश से सुरक्षित बाहर भेजने में किसको और क्या लाभ मिला? या इससे भी पहले डॉ. होमी जहांगीर भाभा (Dr. Homi Jehangir Bhabha) जी की मृत्यु के रहस्य को उजागर न होने देने के माध्यम से किस का हित साधा गया? किसे इस बात में अपना शुभ-लाभ नजर आया कि 1947 के कबायली हमले का जवाब देने चली भारतीय सेना को ऐसा करने से रोक दिया जाए? वो कौन था, जिसे 90 के दशक में कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार तथा उनके पलायन पर मौन रखने में लाभ नजर आया? नागरवाला का मामला यदि आपको न पता हो तो इसकी जानकारी जरूर लीजिए। इंटरनेट (Internet) पर सब उपलब्ध है। सनसनीखेज और रहस्यमय इस मामले में सच को बता सकने वाले सभी किरदार एक-एक कर अस्वाभाविक मौत के शिकार हो गए थे। पूरी बात पढ़ने के बाद आप को भी यह सवाल घेर लेगा कि नागरवाला सहित बाकी संबद्ध लोगों की ऐसी मौत से किसे क्या फ़ायदा हुआ होगा। शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटकर असंख्य मुस्लिम महिलाओं के हित और हक पर कुठाराघात करने में भला किसको अपना लाभ नजर आया होगा? वह कौन था, जिसे भारत रत्न राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) जी को यह सलाह न देने में मुनाफ़ा दिखा होगा कि लगातार मिल रही चेतावनियों के बावजूद उन्हें तमिलनाडु (Tamilnadu) नहीं जाना चाहिए? इस दलील में किसका क्या हित छिपा होगा कि न तो भगवान राम (God Rama) का कोई अस्तित्व था और न ही तमिलनाडु से श्रीलंका के बीच रामसेतु (Ramsetu) जैसी कोई शै मौजूद है? सवाल बेशुमार हैं, लेकिन किसी में भी जवाब का शुमार नहीं है। हम अभिशप्त हैं कि इतने सारे क्यों और किसलिए की जुगाली करते रहें, बाकी किसी समाधान की खुराक तो हमें नसीब होने से रही। इसलिए ऐसे इन सवालों के बीच पीस दिए गए हजारों चितपावन ब्राह्मणों, सिखों तथा अन्य ज्ञात-अज्ञात निर्दोषों को विनम्र श्रद्धांजलि देकर ही बात समाप्त करता हूं।