नज़रिया

आपको आपकी कायरता मुबारक 

राष्ट्रीय प्रेस दिवस (national press day) की सभी हमपेशाओं को अनंत शुभकामनाएं (Best wishes)। लंबे समय से कुछ विचार मन में उमड़-घुमड़ रहे हैं। दस्तूर हो या न हो, लेकिन मौका तो है ही कि उन विचारों को जाहिर कर दिया जाए। मीडिया (Media) एक बार फिर संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। यह देखना/सुनना और पढ़ना विचलित करता है कि मीडिया जगत (media world) को लेकर वेग नोशन (velocity notation) वाले नकारात्मक विचारों के सृजन तथा उन्हें विस्तार देने की होड़ मची हुई है। इनमें सबसे ज्यादा वह लोग सक्रिय हैं, जिनका मीडिया में काम करने का कोई अनुभव नहीं है। कोई पत्रकारों की तुलना (comparison of journalists) किसी चौपाये से कर गुजरता है तो कोई हमारी बिरादरी को तमाम नकारात्मक (Negative) वाक्यों से लांछित करने में गौरव का अनुभव (feel proud) करता है। सबके नेपथ्य में यही भाव रहता है कि खबर जगत के हम लोग अंतरात्मा सहित बिके हुए हैं। हम पर यह तोहमत मढ़ने का भी प्रयास हो रहा है कि  तमाम मीडिया हाउस (media house) राजनीतिक दलों से लेकर उद्योगपतियों और पूंजीपतियों के पास गिरवी रख दिए गए हैं।

क्या जानते हैं आप मीडिया के बारे में? सुबह जिस अखबार (Newspaper) को आप पढ़ते हैं, क्या आपको पता है कि उसे तैयार करने के पीछे कई लोगो अपने बीते दिन को किस तरह स्वाहा करते हैं? एक रिपोर्टर (reporter) जब सुबह सोकर उठता है तो वह आपकी तरह चाय की चुस्की (sip of tea) का लुत्फ़ नहीं ले पाता। आप जैसी फ़ोकट की बौद्धिक जुगाली वह नहीं करता है। वह सबसे पहले इस विषय में सोचता है कि आज उसे कौन सी खबर पर काम करना है। जिस समय आप अपने दफ्तर या किसी अन्य प्रतिष्ठान में ‘गुड मॉर्निंग’ (Good morning) का आदान-प्रदान कर रहे होते हैं, तब वह रिपोर्टर सुबह की मीटिंग (Meeting) में यह गिनाता रहता है कि आज वह क्या-क्या खबरें देगा? उसके साथ ही डेस्क के वह लोग भी इस मेहनत में जूझते रहते हैं कि किस तरह से आज फिर एक ऐसा अखबार तैयार किया जाए, जो पाठकों को उनके काम की जानकारियां देने के माध्यम साबित हो सके।फिर वही रिपोर्टर दिन-भर इधर से उधर दौड़-भाग करके अपनी खबरों पर काम करता है। शाम को जब आप घर लौटकर हाईटी का लुत्फ़ ले रहे होते हैं, तब वह रिपोर्टर खबरें तैयार करता है। जब आप भोजन करने के बाद परिवार के साथ क्वालिटी टाइम (quality time) बिताते हैं, तब वह रिपोर्टर और डेस्क का स्टाफ (reporter and desk staff) आपकी सुबह के अखबार के लिए अपनी रात न्यौछावर कर रहे होते हैं। इसके बाद जिस समय आपके घर के बाहर का अंधेरे में लिपटा माहौल झींगुर और घर के भीतर का वातावरण खर्राटों से गूंजता रहता है, तब रिपोर्टर और डेस्क के लोग सारे दिन की मेहनत का बोझ कांधे पर लादे घर की तरफ रवाना होते हैं।

बात सिर्फ मेहनत की नहीं है। समर्पण की भी है। देर रात हुए किसी बड़े घटनाक्रम की रिपोर्ट जब आप अख़बार में पढ़ते हैं तो आप को यह कल्पना भी नहीं होती होगी कि उसके लिए अखबार के कितने लोगों की सारी रात की नींद कुर्बान हुई होगी। पांच या छह रुपए के जिस अख़बार को पढ़ते हुए आप खुद के मीडिया का भाग्य विधाता होने का भ्रम पालते हैं, उस अख़बार के लिए कई लोगों का एक ही दिन में सौ रूपए तक का पेट्रोल फुंक जाता है।

चलिए! मत कीजिए हमारी मेहनत और समर्पण का आकलन। हम इतने ही त्याज्य हैं, तो ऐसा ही सही। लेकिन आपके दोहरे मापदंड (double standards) ग़ज़ब हैं। शर्मनाक हैं। कहीं कोई पुलिस वाला आपकी गाड़ी पकड़ ले तो एक झटके में हम सरीखे त्याज्य लोग ही आपकी बड़ी जरूरत बन जाते हैं। सोशल मीडिया (social media) और बातचीत में हमें गरियाने वाले आप लोग ही फोन लगाकर ‘दादा! गाड़ी छुड़वा दो यार’ कहते हुए घिघियाने लगते हैं। हम इतने ही बुरे हैं तो फिर क्यों किसी सरकारी दफ्तर (government office) में काम उलझने पर आप हमें याद करते हैं? क्यों किसी कॉलोनी की समस्या होने पर आपका एक झुंड हमारे दफ्तरों में आकर उस बारे में एक खबर छापने के लिए कोलाहल करने लगता है? किसलिए किसी प्रमाणपत्र या अन्य दस्तावेज को जल्दी पाने के लिए आप हमें एप्रोच करते हैं? अपनी गिरेहबान में झांकिए, ये आप ही हैं जो किसी आयोजन के फ्री पास की जुगाड़ के लिए हमारे पास दौड़े चले आते हैं। जब हम इतने ही घटिया हैं तो फिर हमारा प्रकाशन इतना महान कैसे हो जाता है कि आप उसमे अपने किसी कार्यक्रम या उपलब्धि की खबर छपवाने के लिए अपने चप्पलें घिसने को सौभाग्य मानने लगते हैं? मीडिया को चमकाने का तो आप कोई मौक़ा नहीं छोड़ते, तो फिर इसी पेशे के लोगों से ये उम्मीद क्यों रखते हैं कि वह उस किसी व्यक्ति को चमका दे, जो आप के लिए कोई परेशानी खड़ी कर रहा हो?

ये मीडिया है, जिसने असंख्य ऐसे मुद्दों पर आपकी लड़ाई लड़ी है, जिसमें हमारे सहयोग के बिना आपकी जीत मुमकिन ही नहीं थी। यदि सारा का सारा मीडिया बिकाऊ होता तो न जाने आप जैसे कितनों की कोरोना (corona) के समय ऑक्सीजन, दवा (oxygen, medicine) और बिस्तर की कमी के चलते बहुत बुरी स्थिति का सामना करने पर मजबूर हो जाते। ये हम लोग ही हैं, जिनकी अनंत खबरों के चलते सरकार से लेकर अदालत, प्रशासन और मानव अधिकार आयोग (Human Rights Commission) ने संबंधित विषयों का संज्ञान लेकर आपके हित में कदम  उठाये हैं। ये पत्रकारिता (journalism) ही है, जिसके चलते समाज में दबी-छिपी अनगिनत प्रतिभाओं को व्यापक स्तर पर पहचान मिल सकी है।

हमारा सम्मान मत कीजिए, किंतु हमें अपमानित करने का भी आपको कोई हक नहीं है। दरअसल आपके अंदर साहस नहीं है कि हमारे बीच के गलत लोगों को छांटकर आप उनके खिलाफ कुछ कह/लिख/बोल सकें। इसलिए आप चंद बुरे लोगों के चलते हमारी पूरी बिरादरी को कोसकर अपनी कायरता को छिपाने का प्रयास करते हैं। आपको आपकी यह कायरता मुबारक और सभी वास्तविक पत्रकारों को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की अनंत शुभकामनाएं।

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