RS में बोली कांग्रेस: कश्मीरी पंडितों ने देश में ही पलायन की पीड़ा झेली, सभी राज्य बनाएं समान वित्तीय सहायता नीति
नयी दिल्ली। राज्यसभा में बुधवार को कांग्रेस ने जम्मू -कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडितों का मुद्दा उठाया। शून्यकाल के दौरान कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में पलायन की पीड़ा झेलनी पड़ी। जम्मू के बाद सबसे अधिक कश्मीरी पंडित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और हरियाणा में बसे हैं। उनके लिए सभी राज्यों से समान वित्तीय सहायता नीति बनाने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि हरियाणा की पूर्ववर्ती भूपेंद्र सिह हुड्डा सरकार ने 2005 से 2015 तक इन कश्मीरी पंडितों को प्रतिमाह 5,000 रुपये की आर्थिक मदद दी लेकिन अब यह मदद बंद हो चुकी है। जबकि दिल्ली में बसे कश्मीरी पंडितों को प्रतिमाह 3,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जा रही है। हुड्डा ने सरकार से मांग की कि विभिन्न प्रदेशों में बसे कश्मीरी पंडितों को एक समान आर्थिक मदद दी जाए और मदद स्वरूप दी जा रही राशि को दोगुना किया जाए।
भाजपा ने उठाया झारखंड में जहाज डूबने का मुद्दा
वहीं शून्यकाल के दौरान ही भारतीय जनता पार्टी के दीपक प्रकाश ने झारखंड के साहिबगंज जिले में पिछले दिनों एक जहाज डूबने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इस घटना में करीब 50 लोगों की जान चली गई। उन्होंने कहा कि साहिबगंज में गंगा नदी में रात्रि के दौरान जहाज चलने की अनुमति नहीं है लेकिन वहां अवैध खनन गतिविधियों में लिप्त लोग रात को जहाज चलाते हैं तथा तस्करी करते हैं।
प्रकाश ने आरोप लगाया कि अवैध खनन करने के बाद खनिजों की तस्करी बिहार, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में की जाती है। उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार को इसकी सीबीआई से जांच करानी चाहिए और जहाज डूबने से जान गंवाने वालों के परिजन को समुचित मुआवजा देना चाहिए। भाजपा के ही सुरेंद्र सिंह नागर ने दिल्ली से उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में चलने वाली लोकल ट्रेनों का मुद्दा उठाया।
उन्होंने कहा कि कोविड काल में रेल मंत्रालय ने इन ईएमयू सवारी गाड़ियों का परिचालन बंद कर दिया था लेकिन अब स्थिति सामान्य हो गई है, लिहाजा उन्हें बहाल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दिल्ली से अलीगढ़, खुर्जा और गौतमबुद्ध नगर के बीच हर दिन कई कारोबारी, छात्र और नौकरीपेशा लोग आते जाते हैं और ईएमयू के बंद होने से उन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।