विश्लेषण

पांच नदियों वाले पंजाब से टूटा तटबंध 

शुक्रवार को दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) खासी चहकने वाली मुद्रा में थे। गुजरात (Gujarat) में मुख्यमंत्री पद पर बदलाव को लेकर उन्होंने भाजपा से सवाल पूछा। वह यह कि भाजपा (BJP) के शासन वाले अन्य राज्यों में ‘स्लेट कब साफ़’ की जाएगी। यह ट्वीट (Tweet) करते समय सिंह को यह इल्म भी नहीं था कि पंजाब (Punjab) में उनकी पार्टी की ईंट से ईंट बजने जा रही है। खैर, ये आभास यदि हो भी जाता तो दिग्विजय क्या कर सकते थे? वह ठीक वैसे ही असहाय रहते, जैसे कांग्रेस (Congress) का शीर्ष नेतृत्व पंजाब की खींचतान पर दिखा। बैठे-ठाले कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) को घर बिठा दिया गया। वह नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) सफल हो गए, जो बीते कई दिन से आलाकमान को लगातार आंखें दिखा रहे थे।

पंजाब के मामले की तुलना गुजरात से नहीं की जा सकती। गुजरात में वह हुआ, जो भाजपा के नेतृत्व ने चाहा। इस फैसले पर किसी की चूं करने तक की हिम्मत नहीं हुई। जबकि पंजाब में वह हुआ जो कांग्रेस का शीर्ष नहीं चाह रहा था। यदि एक घनघोर मौकापरस्त चेहरा किसी दल के लिए खौफ की वजह बन जाए, तो फिर माना जा सकता है कि कांग्रेस आलाकमान नवजोत सिंह सिद्धू के आगे कमजोर सिद्ध हो गया है।
पांच नदियों के प्रदेश से उठी यह लहर यदि तटबंध तोड़ेगी तो किसी को हैरत नहीं  होना चाहिए। यह बदलाव छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में एमएस सिंहदेव (MS Singh Deo) को ‘उकसावा’ दे सकता है। रेगिस्तान वाले राजस्थान (Rajasthan)  में लंबे समय से सियासी मृग-मरीचिका के शिकार सचिन पायलट (Sachin Pilot) की उम्मीदों में भी इससे नए अंकुर फूट सकते हैं। क्योंकि पंजाब ने यह सन्देश दे दिया है कि कांग्रेस शासन कायम रखने के लिए अनुशासन की बलि दे सकती है।
इस्तीफे के बाद अमरिंदर के तेवर कम से कम आलाकमान को असहज तो कर ही रहा होगा। क्योंकि अमरिंदर ने तीन बातें गौरतलब कहीं। पहली, अमरिंदर आलाकमान के रुख से खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे। दूसरी, ‘अब जिसको मर्जी हो उसे मुख्यमंत्री बनाओ।’ तीसरी, ‘अपने लोगों से मिलकर भविष्य का कदम तय करूंगा।’ वैसे तो राजनीति मौका परस्ती का दूसरा नाम है। इसलिए बहुत संभव है कि शनिवार की  दोपहर ढलने तक अमरिंदर के साथ डटे कांग्रेस के करीब ढाई दर्जन विधायकों में से कई सूरज ढलने तक अपने लिए नए आभामंडल में संभावनाएं तलाशने में जुट जाएं। फिर भी यदि एक दर्जन विधायक भी अमरिंदर के साथ जुड़े रहे और यह खेमा कांग्रेस में ही रहा हो फिर नयी सरकार के लिए खासी परेशानी खड़ी कर सकता है। और बमुश्किल छह महीने बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में यह नाराज गुट अपनी विध्वंसक ताकत भी दिखा सकता है। क्योंकि अब ऐसा करके ही अमरिंदर अपने राजनीतिक शत्रु सिद्धू की तर्ज पर चलते हुए आलाकमान को अपनी शक्ति का अहसास करवा सकते हैं।  इसी दिशा में ‘ जिसको मर्जी हो उसे मुख्यमंत्री बनाओ ‘ वाली अमरिंदर की बात उनके तेवरों का संकेत कही जा सकती हैं।
अब बड़ा सवाल यह कि सोनिया (Sonia Gandhi) ने भले ही कांग्रेस के बागी विधायकों के लिए संतोषजनक काम कर दिखाया हो, किन्तु क्या पंजाब की जनता को भी इस के जरिये संतुष्ट किया जा सकेगा? चुनाव से ठीक पहले नए मुख्यमंत्री क्या ऐसा कुछ करिश्मा कर पाएंगे कि वह अमरिंदर का ठोस विकल्प साबित  हो सकेंगे? कैप्टन तो सिर पर कफ़न बांधकर निकल पड़े दिख रहे हैं। फिर भले ही वह इस कफ़न को पहने-पहने ही वह राज्य में कांग्रेस के सियासी क्रिया-कर्म  का पार्टी में रहते हुए ही बन्दोबस्त करने में जुट जाएं।
कम  से कम आज की तारीख में कहा जा सकता है कि कांग्रेस एक और राज्य में अपनों के ही चलते बीमार अवस्था में आ गयी है। यह तय है कि फिलहाल भाजपा इस प्रदेश में अपने पुनरुद्धार वाली स्थिति में नहीं दिख रही। न ही शिरोमणि अकाली दल (SAD) बादल परिवार की वजह से अपने ऊपर छाये निराशा के बादलों को छांट पाने लायक दिख रहा है। ले-देकर हवा का रुख आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के हक में होता दिख रहा है। यह सब जब होगा, तब होगा, आज तो अमरिंदर कांग्रेस के लिए तथा आने वाले कल में कांग्रेस सिद्धू के लिए ‘दिल दिया दर्द लिया’ वाले शिकवे की बड़ी वजह साबित होते दिख रहे हैं।

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