नज़रिया

टांग तोड़ दीजिये इस रिले रेस वालों की 

ये बिलकुल भी जरूरी नहीं है कि रिले रेस (Relay Race) स्वस्थ खेल प्रतियोगिता का ही हिस्सा हो. बात किसी बीमार मानसिकता को एक-दूसरे के सहयोग से आगे बढ़ाने  वाली भी होती है. फिर ये काम गैंग वार  (Gang War) की तरह एक-दूसरे को नीचे दिखाने के लिए  किया जाने लगे तो फिर हालात बहुत शर्मनाक ही हो जाते हैं.  इसका  प्रमाण ढूंढने के लिए बहुत अधिक दिमाग लड़ाने की भी जरूरत नहीं है.

अशोक सिंहल (Ashok Sinhal) के निधन पर एक शख्स ने सोशल मीडिया (Social Media) पर बाकायदा  जताते हुए दिवंगत आत्मा की तुलना एक जानवर से की थी. इससे तिलमिलाए प्रतिक्रियावादी (Reactionary) समूह को दो साल बाद ही हिसाब चुकता करने का मौक़ा मिल गया. गौरी लंकेश (Gauri Lankesh) की मौत के लिए भी सिंघल के जवाब  जैसी ही आपत्तिजनक टिप्पणी सामने आयी. सिंघल और लंकेश के बीच विचारधारा और उसे जाहिर करने के  तरीकों में जमीन-आसमान का अंतर था. वही फरक लेकर उनके  अलग-अलग विरोधी अपने मानसिक कीचड़ को एक-दूसरे पर उछालते रहे. चलिए, एक पल के लिए इसकी वजह सिंघल के तीखे हिन्दुवाद (Hinduism) तथा लंकेश के इसी सीमा तक पहुंचे स्वयंभू प्रगतिशील लेखन (So-called progressive writing) को मान लें. किन्तु क्या सचमुच ये ऐसा ही था! सुषमा स्वराज Sushama Swaraj) का निधन हुआ. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने ऐसी खुशी प्रकट की, जैसे कि उनकी मुंहमांगी मुराद पूरी हो गयी हो. स्वराज के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया. उनकी मृत्यु को उल्लास का विषय बताया गया. और फिर पाकिस्तान (Pakistan) से चली इस नापाक सोच को हमारे अपने देश में ही कुछ लोगों ने हवा प्रदान की. दिवंगत नेत्री को कोसते हुए उन्होंने उनके ‘मरने’ पर प्रसन्नता का इजहार किया। वो पकिस्तान, जिसके न जाने कितने लोगों की स्वराज ने विदेश मंत्री रहते हुए मदद की. वो पड़ोसी देश, जिसमें रहने वाले बीमार लोगों के भारत में इलाज के लिए आने का  रास्ता केवल स्वराज की बदौलत ही खुल सका था. और वे पाकिस्तानी समर्थक जो भारत में रहकर भी केवल इस बात को ध्यान में रख रहे थे कि उनकी सोच को नियंत्रित करने वाले मुल्क ने स्वराज के लिए घनघोर अपमानजनक अंतिम विदाई का एजेंडा चुना है.

रोहित सरदाना (Rohit Sardana) की असमय मृत्यु भी ऐसी ही घृणित मानसिकता की गिद्ध दृष्टि  का शिकार हो रही है, पत्रकारिता (Journalism) जगत के इस दिग्गज नाम की मौत पर जश्न  मनाया जा रहा है. जरा गौर से देखिये तो ये साफ़  हो जाता है कि ऐसा करने में पकिस्तान और उसकी भारत में सहयोगी मंडली का ही सक्रिय योगदान है. वो पकिस्तान, जिसके लिए एक बात बिलकुल साफ़ है. और  वह यह कि उसे भारत में अपना एजेंडा लागू करने के लिए स्थानीय स्तर पर  सहयोग देने वालों की कोई कमी नहीं है.

आप किसी के  विचारों से असहमत हो सकते हैं. इन्हीं विचारों से मिली शोहरत के चलते उससे जलन का भाव रख सकते हैं. किन्तु इस  सबके लिए इस श्रेणी का घिनौना व्यवहार किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है. ज़रा उस  परिवार के बारे में सोचिये, जिसके ऊपर से किसी पिता या पति का साया छिन जाए. उनके अपार शोक से सने चेहरों को देखिये, फिर सोचिये कि इस तरह की भौंडी प्रतिक्रियाओं का उन लोगों पर कितना बुरा असर हो रहा होगा। आप जिसकी सोच से सहमत न हों, उसके निधन पर जश्न मानना एक बहुत घातक प्रवृत्ति को अपनाने की शुरूआत है. अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में औरतों को बुरे चरित्र की बताकर पत्थरों से मार-मारकर ख़त्म कर  दिया जाता है. लोग खुशी-खुशी इस में सहयोग करते हैं. इराक (Iraq) और सीरिया (Syria) में इस्लामिक स्टेट (Islamic State of Iraq and Syria) (ISIS)  के वीडियो देखिये। वे लोगों को  ज़िंदा जला रहे हैं. लोहे के पिंजरों में जानवरों की तरह कैद कर उनकी जान ली जा रही है. निर्दोषों को किसी ऊंची इमारत से नीचे फेंका जा रहा है. आसपास खड़ी आम लोगों की भीड़ इस सब पर तालियां बजाकर  खुशी जताती है. ऐसा ही तो अब हमारे देश में भी होने लगा है. अंतर केवल यह है कि फिलहाल हम किसी की मृत्यु के बाद हर्षो-उल्लास मना रहे हैं. मगर इस फितरत को यूं  ही समर्थन मिलता रहा तो हम भी सामने होती मौतों का उल्लास मनाने वालों की भीड़ में खड़े ताली बजाते हुए दिख जाएंगे। घिनौनी  मानसिकता वाली इस रिले रेस के एक-एक प्रतिभागी  की टांग तोड़ने जैसे जतन करने होंगे। क्योंकि वे एक बहुत बड़े समूह को उस तरफ लेकर जा रहे हैं, जिस तरफ मानवीय मूल्यों (Humanitarian Values) को  जिन्दा दफ़न करने की पूरी तैयारी की जा चुकी है.

 

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