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जबलपुर में न्यायिक प्रशिक्षण पर मंथन: राष्ट्रपति कोविंद ने कहा- उच्च न्यायालय और जिला अदालतों में हो स्थानीय भाषा का प्रयोग

जबलपुर। जबलपुर के मानस भवन में शनिवार सुबह 11 बजे दो दिवसीय राज्य न्यायिक अकादमी के डायरेक्टर्स रिट्रीट का शुभारंभ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया। इसके बाद न्यायिक प्रशिक्षण की चुनौतियों पर चिंतन-मंथन शुरू हुआ। कार्यक्रम में राष्ट्रपति ने कहा कि भाषाई सीमाओं के चलते वादी-प्रतिवादियों को न्यायिक निर्णय समझने में कठिनाई होती है। नौ भारतीय भाषा में निर्णय का अनुवाद होने लगा है। मैं चाहता हूं कि सभी उच्च न्यायालय अपने अपने प्रदेश की लोकल भाषा में प्रमाणिक अनुवाद अपने निर्णयों का कराएं। उच्च न्यायालय और जिला अदालतों के कार्यों में स्थानीय भाषा का प्रयोग हो।

कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कर्नाटक, मेघायल, जम्मू कश्मीर, पंजाब आदि हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल हुए।

राष्ट्रपति ने कहा कि देश के आम लोगों का भरोसा न्यायपालिका में है। न्याय के आसन पर बैठने वाले व्यक्ति को समय के साथ परिवर्तन और समावेशी भावना होनी चाहिए। न्याय करने वाले व्यक्ति का निजी आचरण भी उच्च होना चाहिए। न्याय व्यवस्था का उद्देश्य न्याय की रक्षा का होता है। न्याय में विलंब नहीं होना चाहिए। रणनीति के रूप में स्थगन का सहारा लेकर मुकदमों को लंबा खींचा जाता है। ऐसी खामियों को दूर करने की पहल होनी चाहिए। न्याय प्रशासन के इस सभी पहलू पर विचार विमर्श होगा। निष्कषों की एक प्रति राष्ट्रपति भवन को उपलब्ध कराई जाए तो मुझे अति प्रसन्नता होगी।

उखक ने सुनाया पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का किस्सा: सीजेआई शरद अरविंद बोबडे़ ने कहा मैंने भी शुक्रवार को कोरोना टेस्ट कराया है। मास्क उतार रहा हूं। आज का कार्यक्रम कई मायनों में महत्वपूर्ण है। नई प्रक्रिया का प्रारंभ है। संवाद नए आयाम को स्थापित करता है। न्याय एक अनोखी प्रक्रिया है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था जरूरी है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को भी जज के कार्य को लेकर जिज्ञासा थी। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम एक बार हैदराबाद हाईकोर्ट पहुंचे, वहां रोचक अनुरोध किया। वे बोले कि मैं न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठना चाहता हूं। बार में खड़े होकर वकील की तरह बहस करना चाहता हूं। उखक ने आगे कहा कि एक न्यायधीश बनने के लिए क्या आवश्यक है। क्या केवल विधि का ज्ञाता ही अच्छा जस्टिस बन सकता है। मुझे बताया गया है कि कुछ प्रदेशों में चयनित न्यायाधीशों को पहले अकादमी बुलाया जाता है। कई न्यायालयों में कोर्ट में जाने के बाद प्रशिक्षण दिया जाता है। मेरे विचार से न्यायालय भेजने से पहले प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

भोपाल और ग्वालियर में भी राज्य न्यायिक अकादमी की बेंच खुलेगी: मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक ने कहा कि न्यायाधीशों के प्रशिक्षण के लिए इस संस्थान को शुरू किया गया। देश के सभी न्यायिक अकादमी के सहयोग से इसे उत्कृष्ट बनाने का प्रयास है। 25 वर्ष पूर्ण होने पर रजत जयंती मनाई जा रही है। यह देश में आयोजित किया जाने वाला पहला कार्यक्रम है। 2003 में अकादमी का भवन तैयार हुआ। नया भवन 50 एकड़ भूमि में तैयार हो रहा है। भोपाल और ग्वालियर में भी इसकी बेंच खोलने का प्रस्ताव है।

सीएम बोले- मंथन से जो अमृत निकलेगा, उसे जनता तक पहुंचाएंगे: सीजे के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान संबोधन देने आए। उन्होंने कहा कि मेरा कल ही कोरोना टेस्ट हो चुका है। अनुमति हो तो मास्क उतार कर बोलूं। सीएम ने कहा कि मप्र की इस धरती पर सभी का प्रदेश के आठ करोड़ जनता की ओर से स्वागत करता हूं। एमपी को सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इसके लिए सौभाग्यशाली हूं। हमारे विचारों का मंथन शिक्षण और प्रशिक्षण बहुत ही जरूरी है। मंथन और चिंतन ऐसा हो कि अमृत निकले। इसे जनता तक पहुंचाने के लिए राज्य सरकार हर संभव प्रयास करेगी। भारत की न्यायपालिका को वो प्रतिष्ठा प्राप्त है कि आम लोगों को न्याय पाने का विश्वास है। नीरव मोदी के मामले में लंदन की अदालत ने भी यहां की न्याय व्यवस्था की सराहना और भरोसा जताया। मप्र सरकार अपनी तरफ से जो भी निष्कर्ष निकलेगा उसे जमीन पर उतारने का प्रयास करेंगे। जो भी इस मंथन व विचार में निकलेगा।

भारत के न्यायालय अतीत से वर्तमानमप्र न्यायिक इतिहास पुस्तक का विमोचन: सीजेआई शरद अरविंद बोबड़े द्वारा भारत के न्यायालय अतीत से वर्तमान, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एनवी रमना जी मप्र न्यायिक इतिहास का विमोचन किया गया। दोनों पुस्तक विमोचन के बाद एक प्रति राष्ट्रपति को प्रदान की गई। 1950 से वर्तमान तक निर्णयों का डाइजिस्टस का विमोचन न्यायमूर्ति अशोक भूषण द्वारा कर राष्ट्रपति को पुस्तक भेंट की गई।

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