नज़रिया

चलिए कि रोज की जाए पूजा समुद्र की……..

जरा ध्यान दीजिये। क्या पिछले एक दो दिन में आपको कहीं से भी ‘नवरोज मुबारक हो’ का स्वर सुनायी दिया? ठीक-ठीक यही स्वर तो दूर, क्या इसके जैसी कोई फुसफुसाहट तक आपके कानों से होकर गुजरी? ऐसा होना स्वाभाविक है। खुद मुझे भी नवरोज वाली बात तब पता चली जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस अवसर पर शुभकामना वाला ट्वीट किया गया।

नवरोज पारसी समुदाय का नव वर्ष है। बहुत संभव है कि मुंबई में इक्का-दुक्का और गुजरात के दमण द्वीव में भी इतनी ही मात्रा वाली जगहों पर कुछ लोग इस दिन की खुशियां और बधाइयां साझा करते दिख गए हों। बाकी उस ईरान में तो ऐसी कोई हलचल होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती, जो ईरान कभी पारसियों का अपना देश हुआ करता था। वही देश, जिसमें उनका कत्लेआम किया गया। उन्हें इतनी प्रताड़नाएं दी गयीं कि उनके पास अपनी जमीन को छोड़कर भागने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचा। उन्हीं पारसियों का आज नया साल उस देश में भी गौरतलब अंदाज से मानता नहीं दिख रहा, जिस देश में अब इस वर्ग की सबसे बड़ी आबादी निवास करती है। यह संख्या भी लाखों में नहीं है। कुल 60 हजार से भी कम की आबादी वाले पारसी आज एक गंभीर मंशा के साथ याद किये जा रहे हैं। ईरान तब फारस हुआ करता था। पारसियों की अपनी धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं हैं। लेकिन आठवीं शताब्दी में फारस में सख्त इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया। फिर वहां पारसी समुदाय को वो दमन शुरू हुआ, जिसकी बाकायदा साजिश की गयी थी। नतीजा यह कि पारसियों का एक बड़ा समूह समुद्र के रास्ते वहां से जान बचाकर भागा। रास्ते में कई ने भूख-प्यास और भुखमरी से दम तोड़ दिया। जो बचे, वो भारत आ गए। फिर वे यहीं के होकर रह गए और ईरान एक कट्टरपंथी मुस्लिम देश बनकर अपने यहां से पारसियों को गुजरा हुआ कल बना चुका है।

आज की तारीख में आपको पारसियों से ज्यादा एकजुट समुदाय और कोई शायद ही दिखे। उसके लोग अपने ही मजहब में शादियां करते हैं। खुद की रवायतों को निभाने और बचाने के लिए उनका प्रबल आग्रह होता है। लेकिन ये एका उनकी ऐतिहासिक भूलों का परिचायक मात्र है। वह भूल, जिनके तहत ईरान में कट्टरपंथ की आहटों को इस समुदाय के लोगों ने ही नजरंदाज किया। उन्होंने अरब जगत द्वारा अपनी परम्पराओं और धार्मिक स्थलों को बर्बाद किये जाने के परिणामों से भी आंखें मूंदें रखीं। आज ईरान में लाखों ऐसे मुस्लिम मिल जाएंगे, जो मूलत: पारसी थे, लेकिन उन्हें मजबूरी में इस्लाम कबूल करना पड़ा।

क्या आने वाले कुछ दशकों बाद भारत की तस्वीर भी ऐसी ही दिखेगी? कोलकाता में मिनी पाकिस्तान बन चुका है, जहां हिन्दुओं की गिनती अघोषित रूप से अछूतों के तौर पर की जाती है। इस राज्य में बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की आबादी ने भारतीयों की जमीन सहित रोजी-रोटी के साधनों पर भी कब्जा जमा लिया है। मिनी पाकिस्तान वाली इस जहरीली फितरत और शरणार्थियों के नाम पर झाड़ियों में छिपे हरे रंग के घातक रेप्टाइल जैसे तबके को राजनीतिज्ञों का वरद हस्त मिला हुआ है। इसलिए कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। उलटे हो यह भी गया कि उस पूरे राज्य में मुस्लिमों के ताजिया विसर्जन के चलते दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर सरकार की तरह से रोक लगा दी गयी थी। दक्षिण भारत की चहलपहल से भरी जगह पर एक राजनेता देश-भर से हिन्दुओं के सफाये की बात कहता है और इसी से प्रभावित होकर उसके समुदाय की भीड़ उसे सांसद बना देती है। मध्यप्रदेश में एक आरिफ मसूद विधायक होने के बावजूद वन्दे मातरम कहने से साफ मना कर देता है। मसूद का यह चरित्र पहले से ही स्पष्ट था, इसके बावजूद वह उस विधानसभा सीट से जीत जाता है, जिस पर हिन्दू आबादी का भारी प्रतिशत निवास करता है। उत्तरप्रदेश में एक आजम खान भारत माता को डायन कहने और एक हिन्दू महिला नेत्री के अंतर्वस्त्र को लेकर जहरीली टिप्पणी करने के बाद भी ठप्पे से कभी मंत्री तो कभी सांसद बन जाता है। कर्नाटक में मुस्लिमों की जिद के चलते एक मैदान में अपने ही देश का तिरंगा लहराने पर एक हिन्दू नेत्री के खिलाफ पुलिस में प्रकरण दर्ज कर दिया जाता है। दिल्ली में एक रिंकू शर्मा इसलिए मार दिया गया कि वह राम मंदिर के लिए चंदा एकत्र कर रहा था।

ये महज कुछ उदाहरण हैं। जबकि सच इससे बहुत अधिक व्यापक और भयावह है। इस देश में हिन्दुओं और हिन्दुस्तानियत के खिलाफ तमाम स्तर पर अनगिनत इस तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं। लव जिहाद भी इसका एक हिस्सा है। केरल को देखिये, हिन्दू लड़कियों के मुसलमान बन जाने के अनगिनत मामले वहां रोजमर्रा की बात बन चुके हैं। लेकिन मजाल है कि कोई इसका विरोध कर सके। क्योंकि माहौल इतनी सोची-समझी साजिश के तहत तैयार किया गया है कि विरोध करने वालों की कोई औकात ही नहीं रह गयी है। यहां एक पार्वती नामक हिंदू पार्वती खान (गुजरे जमाने की पॉप गायिका) के नाम के साथ मजे से रह सकती है। पूरी तरह पंजाबी परिवेश में पलते परिवार की बेटी मुस्लिम बन जाती है और पूरी तरह निरापद माहौल में अपने बेटे को एक आक्रांता का नाम दे देती है। यह मां उस शख्स की पत्नी है, जो मीडिया में खुलेआम कह चुका है कि अंग्रेजों के आने से पहले दरअसल भारत नामक किसी देश का अस्तित्व ही नहीं था। लेकिन ऐसा कहने वाला हमारे बीच यूथ आइकन के रूप में पूजा जा रहा है। उसकी किसी समय की हिन्दू मां शर्मिला भी आयशा बनने की बाद इस गौरव को तिलांजली दे चुकी है कि वह मूलत: गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के वंश से ताल्लुक रखती थी। देश में लव जिहाद के शुरूआती घटनाक्रमों में से एक का उदाहरण होने के बावजूद हिन्दुओं ने ही शर्मिला को सुपर स्टार का तमगा दिया। तो कोई हैरत नहीं कि शर्मिला के बेटे सैफ ने भी एक अमृता सिंह को तलाक देने के बाद करीना कपूर से शादी कर उसे भी इस्लाम कबूल करवा दिया है। आमिर खान पहली हिन्दू पत्नी रीना को तलाक देने के बाद अब किरण के पति हैं। गौरी हिन्दुओं की देवी का नाम है। उसी नाम वाली हिन्दू मूल की गौरी खुद को पूरी शान के साथ शाहरुख खान की पत्नी बताते हुए खान सरनेम का प्रयोग करती हैं। लेकिन हम हिन्दू चुप हैं। हमारे लिए आमिर और शाहरूख सहित सैफ अली खान महान लोगों में शामिल हैं।

मैं पूरी तरह इस बात से सहमत हूं कि जीवन साथी का चयन हरेक लड़की का अपना अधिकार है। लव के नाम पर लव जिहाद की जद में आयी हिन्दू लड़कियों को भी यही हक हासिल है। लेकिन क्या इश्क से लेकर धर्म परिवर्तन वाली बाध्यताएं केवल हिन्दू लड़कियों के लिए ही हैं। गुजरे दौर में भोपाल में कानूनी दांव-पेंच के एक दिग्गज हिन्दू नेता हुआ करते थे। जनाब का दिल एक मुस्लिम लड़की पर आ गया। तो फिर हुआ यह कि इन सज्जन ने बाकायदा इस्लाम कबूल किया और तब कहीं जाकर वह महिला उनसे निकाह के लिये राजी हुई। एक आला दर्जे के अफसर अब रिटायर हो चुके हैं। उन्होंने भी एक मुस्लिम महिला से शादी की थी। शादी के कई दशक बीत जाने के बाद भी वह महिला आज तक अपने नाम के साथ मुस्लिम सरनेम ही लगाती है। नरगिस ने सुनील दत्त से शादी के बाद भी मुस्लिम वाला जीवन ही बिताया। मृत्यु के पश्चात नरगिस को सुपुर्दे-खाक ही किया गया था। ऐसे उदाहरण यही बताते हैं कि देश में हिंदू किस कदर अपने धर्म के लिए शर्मिंदगी वाले भाव से घिरे हुए हैं। वहीं कैसे मुस्लिमों के बीच उनके मजहब को लेकर कट्टरता की हद तक भाव लगातार पनपाये जाते रहे हैं।

ईरान में रहते हुए पारसी अपनी शिक्षा, ज्ञान और अपने धर्म की मजबूती का रट्टा ही लगाते रहे। इस्लामिक अत्याचारों के बीच वे इसी बात से मुतमइन रहे कि उनके धर्म की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि कोई उसे हिला ही नहीं सकता। वे इस मुगालते में भी रहे कि चूंकि उनकी कौम पढ़ी-लिखी है, लिहाजा उसे धर्म को लेकर चिंता का भाव पालते हुए खुद को कट्टर नहीं बनाना चाहिए। यही देश में हिन्दुओं के साथ हो रहा है। इस वर्ग को पढ़ा-लिखा होने की बात कहकर उसके धर्म से बड़ी तरकीब से दूर किया जा रहा है। नतीजा यह कि किसी दफ्तर का काम छोड़कर नमाज अदा करने जाने को महान धार्मिक आचरण समझा जाता है और इसी काम के बीच किसी के मंदिर जाने को रूढ़िवादिता का पर्याय बता दिया जाता है। और हम हिन्दू, इतने इस सब में पूरी खामोशी के साथ ढलते चले जा रहे हैं। ज्यादातर मंदिरों में आपको अब एक मशीन दिख जाएगी। बटन दबाइये और उससे शंख सहित मंजीरे तथा घंटे आदि की मंगल ध्वनि निकलने लगती है। यह मशीन विज्ञान की किसी देन नहीं, बल्कि इस शर्मनाक तथ्य की परिचायक है कि हमारे मंदिरों में जाने वाले इंसानो का इतना टोटा हो गया है कि अब श्रद्धालुओं की जगह मशीनी आस्था से काम चलाना पड़ रहा है। हमें मंदिर जाने की फुर्सत ही कहां है! हम तो उस मल्टीस्क्रीन या टॉकीज में समय देने को प्राथमिकता देते हैं, जहां किसी ‘ओ माय गॉड’ या उस जैसी फिल्म में हमारे धर्म की खिल्ली उड़ाई जाए। ‘शोले’ में हिन्दू मंदिर को लड़की पटाने का अड्डा बताने से लेकर ‘ओ माय गॉड’ तक के अनगिनत प्रयोग हम हिन्दुओं से मिली कमाई के जरिये ही बॉक्स आॅफिस पर पैसे की बरसात करने में सफल रहे हैं।

हम बुक्का फाड़कर रोते हैं कि मकबूल फिदा हुसैन को यह देश छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन इस बात को कहने में हमें सांप सूंघ जाता है कि हुसैन ही वह शख्स था, जिसने हिन्दू देवियों का नग्न चित्रण किया था। एक नयी मरोड़ सेक्युलरों के पेट में उठ रही है। मंदिर में पानी पीने से रोके गए लड़के का वीडियो जमकर प्रचारित किया जा रहा है। हिन्दुओं की एक तयशुदा फौज को इस घटनाक्रम के बाद खुद के धर्म पर शर्मिन्दा होने का मौका मिल गया है। लेकिन उन तमाम पोस्टों पर ये हरावल दस्ते पूरी तरह चुप हैं, जिनमें उन मुस्लिम स्थलों की सप्रमाण जानकारी दी गयी है, जहां हिन्दुओं का प्रवेश मना है। ऐसे दोगले हिन्दुओं को अपनी इस धर्म में पैदाइश पर शर्म है या शक, ये तो वे खुद ही बेहतर जानें, लेकिन एक बात सभी जानते हैं कि ये सब वही हो और किया जा रहा है, जो पारसियों ने ईरान में किया था या जो वहां उनकी बीच हुआ था।

                                                                                                                                                              (क्रमश:)

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