सियासी तर्जुमा

रेत में फंसी कांग्रेस, चापलूसों में उलझा नेतृत्व 

देर-सवेर से ही सही, एक बात का होना तय है. कांग्रेस (Congress) का कोई नेता अपनी पूर्व हो चुकी नेत्री सुष्मिता देव (Sushmita Dev) को प्रकारांतर से नाकाबिल बताएगा। कहेगा कि जिस पार्टी ने देव को सांसद से लेकर अपनी महिला विंग का अध्यक्ष बनाया, उसी दल के साथ उन्होंने धोखा किया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया  (Jyotiraditya Scindia) और जितिन प्रसाद (Jitin Prasad) के साथ ऐसा यह दल कर चुका है। तो क्यों नहीं यह पार्टी एक काम कर रही है? उसे चाहिए कि अपने मौजूद हरेक नेता (सोनिया, राहुल और प्रियंका को छोड़कर) (Soniya Gandhi, Rahul Gandhi and Priyanka Vadra) की एक-एक फाइल तैयार करे । इसमें उस नेता के ‘नालायक’ होने तथा उसे लायक समझकर पार्टी में मिले महत्व/पद आदि का ब्यौरा दर्ज हो।  ताकि इधर नेता पार्टी छोड़े और उधर तुरंत ही उसका तिया-पांचा उस फाइल के जरिये मीडिया में कर दिया जाए।
सुष्मिता अपने समय में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल रहे संतोष मोहन देव की बेटी हैं। सुष्मिता को महिला इकाई की कमान देकर पार्टी ने उन्हें वाकई महत्व प्रदान किया था। इसके बाद भी सुष्मिता यदि तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गयीं तो यह इस दल के लिए गहन चिंता और चिंतन का विषय है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? कपिल सिब्बल (Kapil Sibbal) और संदीप दीक्षित (Sandeep Dikshit) (भारतीय सेना के तत्कालीन प्रमुख को ‘सड़क छाप गुंडा’ बताने वाले ) ने पार्टी को सलाह दी है कि देव के इस कदम के कारणों का पता लगाया जाना चाहिए।
देव उस दल TMC में चली गयी, जिसने पश्चिम बंगाल (West Bengal) में कांग्रेस की राजनीतिक शुभ-लाभ वाली संभावनाओं को दशकों पीछे धकेल दिया है। किसी समय भले ही ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) कांग्रेस नेतृत्व के पीछे हाथ बांधकर चलती थीं, लेकिन अब सोनिया, राहुल और प्रियंका सहित समूची कांग्रेस उनके नेतृत्व में लामबंद होने के लिए आतुर दिख रही है। बहुत संभव है कि देव ने अपने गृह राज्य असम से लगे पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की दुर्गति को देखते हुए अपने लिए भविष्य की किसी भी संभावना के नजर न आने के चलते यह फैसला लिया हो। किन्तु यह अकेली वजह नहीं हो सकती। बहुत मुमकिन है कि देव ने कांग्रेस की देशव्यापी बदहाली और उसके प्रति नेतृत्व की उदासीनता के चलते यह कदम उठाया हो।
पता नहीं यह सच है या नहीं, लेकिन है प्रेरणादायक। कहा जाता है कि सिकंदर (Sikander) के विश्व-विजय वाले अभियान के बीच उसकी सेना में कुछ नाराजगी पनप गयी थी। सिपाही अपने परिवार से लंबे विछोह के चलते घर लौटने को व्याकुल हो उठे थे। वे और युद्ध नहीं चाहते थे। तब सिकंदर ने अपने देश का ध्वज उन सैनिकों के आगे रख दिया। कहा कि जो लोग वापस जाना चाहते हैं, उन्हें उस ध्वज के ऊपर से गुजरना होगा। सैनिकों का सारा गुस्सा जाता रहा। उन्होंने अपने झंडे को सीने से लगाया और विजय अभियान पर आगे चल पड़े।
कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व की यह समस्या है कि उसने पार्टी के लोगों में पार्टी के प्रति ऐसे जज़्बात को लगभग पूरी तरह ख़त्म कर दिया है। अब कांग्रेस के लिए निष्ठा का एकमात्र पैमाना गांधी-नेहरू परिवार के लिए अगाध आस्था वाला ही रह गया है। देखिये ना, बीते लंबे समय से कांग्रेस में जिसने भी पार्टी की मजबूती की बात की, उसे हाशिये पर धकेल दिया गया। क्योंकि ऐसी मजबूती का रास्ता पार्टी पर से गांधी-नेहरू परिवार के शिकंजे को कमजोर करने से होकर ही गुजरता है। इसीलिए जब सिब्बल आज कह रहे हैं कि युवा पार्टी छोड़ रहे हैं और इसका दोष उन जैसे बुजुर्ग नेताओं को दिया जाता  है, तो वह इस बात का ही संकेत है कि पार्टी के शीर्ष ने अपनी बला टालने के लिए भी बलि के बकरे तय कर लिए हैं। अब जो लोग उम्र या किसी अन्य विवशता के चलते कसैले अनुभवों के बावजूद कांग्रेस में ही हैं, उनकी इस मजबूरी का पार्टी लाभ उठा रही है। किन्तु जिनकी संभावनाएं चुकी नहीं हैं, वे इस पार्टी से इतर अपने लिए संभावनाएं लपकने में कोई विलंब नहीं कर रहे। ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर प्रियंका चतुर्वेदी(Priyanka Chaturvedi), जितिन प्रसाद, हिमंत बिस्वा सरमा (Himant Biswa Sarma) आदि ने ऐसा ही किया। आप इनमें से किसी को भी डूबते जहाज से भागता चूहा नहीं कह सकते। ये वे लोग कहे जा सकते हैं, जिन्होंने समुद्र की बजाय मरुस्थल में लाकर खड़े कर दिए गए कांग्रेस के जहाज से बाहर जाना उचित समझा है। यदि इस पार्टी ने परिवारवाद के बुरे नतीजों को शरद पवार(Sharad Pawar), पीए संगमा (PA Sangma) तथा तारिक अनवर (Tariq Anwar) के समय ही भांप लिया होता तो आज ये बिखराव इस तीव्रता से साथ सामने नहीं आता। लेकिन  ये सच पार्टी के नेतृत्व को सुनना ही नहीं है। चाटुकारों की चांडाल-चौकड़ी से घिरे नेतृत्व को यह समझना होगा कि वह अपने-अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने इर्द-गिर्द चमचत्व की प्रतियोगिता के महासागर में  डुबकी लगाते लोगों से घिरा हुआ है। नेतृत्व इसी महासागर में अपने जहाज के लहरों पर सवार होने का भ्रम पालकर आत्ममुग्ध है, यह जानने और समझने का प्रयास किए बगैर कि उसके नीचे की जमीन सूख चुकी है और रेत में जहाज कभी भी नहीं चल सकता है।

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