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कैप्टन के बफादार कांग्रेस छोड़कर क्यों थाम रहे भाजपा का दामन, आइए जानते हैं पूरा गणित

चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा (Punjab Assembly) के चुनावी जंग में भाजपा (BJP) को सबसे कमजोर पार्टी बताया रहा था। उसी पार्टी में पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) तीन मौजूदा विधायक गुरमीत सिंह सोढ़ी (Gurmeet Singh Sodhi) , फतेह जंग बाजवा (Fateh Jung Bajwa) और बलविंदर सिंह लाड़ी (Balwinder Singh Ladi) ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। इन तीनों ही विधायकों को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh, Former Chief Minister of Punjab) का करीबी माना जाता है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इन विधायकों ने कैप्टन के साथ जाने की बजाय भाजपा को क्यों चुना।

बता दें कि पूर्व कैबिनेट मेंत्री गुरुमीत सिंह ने 21 दिसंबर को कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। सोढ़ी को कैप्टन का सबसे बफादार माना जाता है। सोढ़ी कैप्टन कैबिनेट में खेल मंत्री भी रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि सोढ़ी ने कैप्टन गुट में होने के बाद भी PLC में शामिल होने पर विचार नहीं किया। वहीं कैप्टन के समर्थक रहे श्री हरगोबिंदपुर के मौजूदा विधायक बलविंदर सिंह लड्डी और कादियान से कांग्रेस के मौजूदा विधायक फतेह जंग बाजवा सहित कांग्रेस के दो मौजूदा विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली है। आईए जानते हैं क्या है भाजपा में जाने की वजह…

खुल्लर ने किया रणनीति का खुलासा
प्रिंस खुल्लर (Prince Khullar) के मुताबिक राणा गुरमीत सोढ़ी फिरोजपुर सिटी से लड़ना चाहते हैं, जो शहरी क्षेत्र है और अच्छी खासी हिंदू आबादी है। इसके अलावा फतेह जंग बाजवा भी हिंदू बेल्ट से लड़ना चाहते हैं। ये सीटें भाजपा के परंपरागत वोट वाली हैं। ऐसे में इन नेताओं ने पंजाब लोक कांग्रेस की बजाय भाजपा में ही जाना ठीक समझा है। प्रिंस खुल्लर का कहना है कि यह गठबंधन के दलों के बीच की अंडरस्टैंडिंग (Understanding) है। कैप्टन अमरिंदर की पंजाब लोक कांग्रेस, ढींढसा की शिरोमणि अकाली दल संयुक्त (SADS) और भाजपा ने मिलकर यह फैसला लिया है कि जिताऊ उम्मीदवारों पर ही दांव लगाया जाएगा।

भाजपा और कैप्टन की पहली प्राथमिकता प्रत्याशी की जीत
वहीं उन्होंने कहा कि बाजवा भी कैप्टन अमरिंदर सिंह करीबी हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें कैप्टन के दम पर टिक मिला था। एक अन्य मौजूदा कांग्रेस विधायक बलविंदर सिंह लड्डी, जिन्होंने श्री हरगोबिंदपुर से अपना पिछला चुनाव लड़ा था वो भी कैप्टन के वफादार माने जाते हैं वो कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के करीबी रहे हैं। खुल्लर ने कहा, गठबंधन सहयोगी बीजेपी, पीएलसी और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के बीच एक समझ ये है कि उम्मीदवारों के चयन के लिए प्राथमिक मानदंड उनकी जीत होगी। टिकट तय करते समय गठबंधन सहयोगियों के पारंपरिक वोट बैंक को भी ध्यान में रखा जाएगा।





अकाली के साथ भी भाजपा का ऐसा ही था समझौता
बता दें कि भाजपा, कैप्टन अमरिंदर और ढींढसा ने मिलकर फैसला लिया है कि तीनों पार्टियों की ओर से दो-दो लोगों को शामिल कर एक पैनल बनाया जाएगा, जो टिकटों का फैसला लेगा। माना जा रहा है कि इस समझौते में भाजपा को शहरी सीटों पर बढ़त मिल सकती है। गौरतलब है कि 2017 में भाजपा ने पठानकोट, भोआ, जालंधर, मुकेरियां, आनंदपुर साहिब, होशियारपुर, अबोहर, फिरोजपुर सिटी, फाजिल्का, फगवाड़ा और सुजानपुर समेत 23 शहरी सीटों पर चुनाव लड़ा था। अकाली दल के साथ भी उसकी यही अंडरस्टैंडिंग थी कि वह शहरों में लड़ेगी, जबकि सिखों के बीच पैठ रखने वाली अकाली दल ग्रामीण सीटों से उतरती थी।

सीट बंटवारे के तरीकों पर काम कर रहा बीजेपी गठबंधन
बीजेपी पठानकोट, भोआ, दीनानगर, जालंधर उत्तर, जालंधर सेंट्रल, मुकेरियां, दसूया, आनंदपुर साहिब, होशियारपुर, फाजिल्का, फिरोजपुर शहर, अबोहर, फाजिल्का, फगवाड़ा और सुजानपुर सहित 23 शहरी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जब बीजेपी और अकाली दल गठबंधन के सहयोगी थे तो बीजेपी ने शहरी इलाकों से चुनाव लड़ा और ग्रामीण इलाकों में अकाली दल का पारंपरिक वोट बैंक था। हालांकि पीएलसी, बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के नेतृत्व वाले मोर्चे ने अभी तक सीटों के बंटवारे को तय नहीं किया है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि पंजाब लोक कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल सयुंक्त ग्रामीण सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

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