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उत्तराखंड का सियासी संकट: सीएम बदलने से खत्म नहीं होगा संकट, हो सकते हैं बड़े बदलाव

देहरादून। उत्तराखंड में सियासी संकट लगातार गहराता दिखाई दे रहा है। देहरादून से लेकर दिल्ली तक इस राजनीतिक उठापटक की गर्माहट को न केवल महसूस किया जा सकता है बल्कि अब देखा भी जा सकता है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक के चेहरे बदले जाने की चर्चाएं जोरों पर हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि 4 साल से उत्तराखंड की सरकार चला रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलकर नया चेहरा लाया जाता है तो क्या बीजेपी का संकट खत्म हो जाएगा?

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ चार साल बाद पार्टी और विधानमंडल दल में बगावत जैसा संकट गहरा गया है। ऐसे में बीजेपी ने पर्यवेक्षक के रूप में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को रायशुमारी करने के लिए देहरादून भेजा था, जिसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को दिल्ली तलब किया गया था। सीएम ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अनिल बलूनी सहित तमाम बीजेपी नेताओं से मुलाकात की।

बीजेपी विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रति असंतोष संबंधी खबरों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि सीएम के खिलाफ कोई असंतोष नहीं है और मंगलवार को विधायक दल की बैठक भी नहीं बुलाई गई है। उन्होंने कहा कि नीतिगत मामले में पार्टी का कोई फैसला पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में चर्चा करने के बाद लिया जाता है। चौहान भले ही पार्टी में असंतोष और सीएम बदलने की बात खारिज रहे हों, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने पर्यवेक्षक को देहरादून भेजकर और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अचानक दिल्ली तलब कर प्रदेश के सियासी माहौल को गरमा दिया है, जिसके बाद से सीएम चेहरे को बदलने की चर्चा तेज हुई है।

सवाल किया जा रहा है कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बीजेपी हटाने का फैसला करती है तो पार्टी उनकी जगह किसे लाएगी। पिछले 3 दिनों से कई नाम ऐसे हैं जो मुख्यमंत्री के नए नाम के तौर पर देखे जा रहे हैं। नैनीताल से सांसद अजय भट्ट जो हरीश रावत को जबरदस्त पटखनी देकर संसद में पहुंचे हैं। वहीं, दूसरी ओर अनिल बलूनी हैं जो उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद हैं और भाजपा नेतृत्व में अच्छी पकड़ रखते हैं।

इन दोनों के अलावा सतपाल महाराज का नाम भी सीएम की रेस में शामिल हैं। सतपाल महाराज कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आए हैं। पूर्व में केंद्रीय मंत्री रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। उनका एक तरह से डिमोशन ही माना जा सकता है। वहीं, छोटे कद के मगर बड़े और गंभीर माने जाने वाले खांटी आरएसएस पृष्ठभूमि के नेता धन सिंह रावत का नाम भी सीएम की रेस में है। धन सिंह रावत जो पहली बार ही विधायक चुने गए हैं। दिल्ली और नागपुर दोनों के ही बेहद प्रिय और करीबी माने जाते हैं,

बता दें कि कांग्रेस से बगावत और हरीश रावत की सरकार गिरा कर जो नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। उन्हें कहीं न कहीं बीजेपी के कोर ग्रुप के लोग पसंद नहीं करते हैं। जाहिर है कि उनके बीजेपी में आने से एक तरह से आधी सरकार कांग्रेस से आये हुए उनके नए साथी ही चला रहे हैं। इसके चलते दूसरे दलों से बीजेपी में आए नेताओं और पार्टी के पुराने नेताओं के बीच असमंजस शुरू से ही बना हुआ है।

वहीं, त्रिवेंद्र सिंह रावत शुरूआती समय में बेहद धीमी गति से चलकर अपने आपको स्थापित करने में लगे रहे। 4 साल तक आते-आते वह एक सधे हुए नेता के तौर पर वो जाने जाने लगे हैं। मगर कहीं न कहीं उनका एरोगेंस अपनी ही पार्टी में उनको अपनों से दूर करता चला गया और शायद यही वजह रही कि उनके अपने ही विधायकों ने दिल्ली में जाकर दस्तक दी और अपनी पीढ़ा शीर्ष नेतृत्व को बयां की।

एक बीजेपी विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मंत्री और विधायक लम्बे समय से अफसरशाही से परेशान हैं। उनकी बात को नहीं सुना जा रहा है और न ही विधायकों को सम्मान मिल रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के अलावा विधायक केंद्रीय नेतृत्व के सामने दिल्ली जाकर अपना दुखड़ा बता चुके हैं कि उनके अपने ही विधानसभा क्षेत्र में और जिले के अधिकारी उनकी सुनते ही नहीं। इसी वजह से सीएम के खिलाफ नाराजगी लगातार बढ़ती चली गई और आज उस मुकाम पर है कि मुख्यमंत्री बदलने तक की बात हो रही है।

वहीं, त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा किसी और चेहरे को लाया भी जाता है तो नतीजा फिर ढाक के तीन पात वाला ही साबित होगा। चुनावी साल है ऐसे में अगर अजय भट्ट को चेहरा बनाया जाता है तो सूबे का जातीय समीकरण बिगड़ सकता है। राज्य में हमेशा से दो बातों का ख्याल रखा गया है कि कुमाऊं और गढ़वाल में से एक तरफ से पार्टी अध्यक्ष और दूसरे को सत्ता की कमान। इसके अलावा जातीय समीकरण के लिहाज से एक ब्राह्मण और दूसरे ठाकुर समीकरण के जरिए जातीय संतुलन बनाए रखा जाता है।

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