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इमरजेंसी में सरदार बनकर यूं इंदिरा की सरकार की नाक में दम किया था मोदी ने

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ‘काला दिन’ यानी की 25 जून 1975। यही वह तारीख है जब पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था। इस दौरान लाखों लोग जेल में डाल दिए गए थे। कुल 21 महीने चले इस दमन चक्र के दौरान हजारों लोग जेल में ठूंस दिए। इनमें उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोधी खासतौर पर टारगेट किये गए। बाकी पुलिसिया कार्रवाई से बचने का एक रास्ता था। वह यह कि शपथ पत्र भरकर कह दिया जाए कि संबंधित व्यक्ति इंदिरा गांधी, उनकी सरकार और खासकर इंदिरा के बीस सूत्रीय कार्यक्रम में पूरी आस्था रखता है।
इस समय का बहुत चर्चित मामला प्रेस की सेंसरशिप का रहा। तब आज की तरह अनगिनत टीवी चैनल नहीं हुआ करते थे आकाशवाणी पर सरकारी ‘पहरा’ था और अखबारों में इमरजेंसी की खबरों के प्रकाशन की सख्त मनाही थी।
यहीं से जिक्र आता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का। मोदी उस समय राजनीति का ककहरा सीख रहे थे और उस समय की जनता पार्टी की बजाय उनकी आस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए थी। मोदी ने तब सेंसरशिप के खिलाफ बड़ी भूमिका निभाई। नरेंद्र मोदी ने तब क्या किया, आइए विस्तार से जानते हैं।
21 महीने वाली उस अवधि के दौरान कई पत्रकारों को मीसा और डीआईआर के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय सहित सत्ता से जुड़े लोगो की कोशिश थी कि आम जनता तक हालात की सही जानकारी नहीं पहुंचे। इसके बावजूद सरकार के खिलाफ आंदोलन जारी था, लेकिन गुप्त रूप से। सख्त सेंसरशिप के बावजूद भी अनेकों पत्रिकाएं प्रकाशित हुईं। इनका प्रकाशन और वितरण इतने गुप्त रूप से होता था कि सरकार को भनक तक नहीं लगती थी। यह सब करने वाले कोई और नहीं, बल्कि देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे। उस कठिन समय में नरेंद्र मोदी और आरएसएस के कुछ प्रचारकों ने सूचना के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उठा ली। इसके लिए उन्होंने अनोखा तरीका अपनाया। संविधान, कानून, कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों के बारे में जानकारी देने वाले साहित्य गुजरात से दूसरे राज्यों के लिए जाने वाली ट्रेनों में रखे गए। यह एक जोखिम भरा काम था क्योंकि रेलवे पुलिस बल को संदिग्ध लोगों को गोली मारने का निर्देश दिया गया था। लेकिन नरेंद्र मोदी और अन्य प्रचारकों द्वारा इस्तेमाल की गई तरकीब कारगर रही।

वेश बदलकर काम कर रहे थे मोदी
आपातकाल के समय आरएसएस पूरी तरह से सक्रिय था और अंडरग्राउंड रहकर काम कर रहा था। नरेंद्र मोदी पर आंदोलन, सम्मेलनों, बैठकों, साहित्य का वितरण आदि के लिए व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन दिनों नरेंद्र मोदी, नाथा लाल जागडा और वसंत गजेंद्र गाडकर के साथ काम कर रहे थे। हालांकि, इमरजेंसी के दौरान ही आरएसएस पर बैन भी लगा था और कई संघ के प्रचारकों को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन, जब वरिष्ठ आरएसएस नेता केशव राव देशमुख को गुजरात में गिरफ्तार किया गया, तो मोदी योजना के अनुसार काम नहीं कर सके और उन्होंने  नाथा लाल जागडा को भी स्कूटर से सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया। इस सबके बीच मोदी को खुद की गिरफ्तारी का भी डर था। जिसके चलते उन्होंने एक दिन सरदार का रूप रख लिया और लगातार काम करते रहे। कहा जाता है कि गिरफ्तारी के खतरे के बावजूद मोदी वेश बदलकर अक्सर जेल पहुंचकर वहाँ बंद नेताओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां पहुंचाते थे। मोदी के लिए आपातकाल की याद इसलिए भी खास बन जाती है कि क्योंकि अब वे खुद प्रधानमंत्री हैं और उन्होंने इस पद को संभालने से पहले उस कांग्रेस की समाप्ति का आह्वान किया था, जिस कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर अपने अतीत में हमेशा के लिए एक दागदार अध्याय की नींव खुद ही रखी थी।

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