विश्लेषण

अंतर्धारा: आखिर किससे भयभीत हैं ममता बनर्जी? क्यों लगानी पड़ी करुण पुकार, ‘बांगला निजेर मेएकेईचाय’

पंकज शुक्ल
इस बार कोलकाता काफी बदला-बदला सा दिखा। हो सकता है कोरोना के बाद लोगों ने घरों से निकलना कम किया हो। सड़कों पर वैसी भीड़ नहीं दिखी, जैसी पिछली बार वीआईपी काफिले के साथ होने पर भी देखने को मिली थी। उस बार मौका कोल इंडिया के लिए लिखे मेरे एक गीत के लोकार्पण का था। कैलाश खेर का गाया वह गीत नई सरकार के आने के बाद कोल इंडिया की वेबसाइट से हट गया। कलाकारों का सियासत से पाला ऐसे ही पड़ता है।

ख़ैर, इस बार की कोलकाता यात्रा का सबब बनी बंगाल के ‘महानायक’ उत्तम कुमार पर बनने जा रही बायोपिक। उत्तम कुमार की लोकप्रियता ऐसी है कि बांग्लादेश से भी तमाम लोग इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आने वाले थे, लेकिन ऐन मौके पर राज्य सरकार ने कोरोना को लेकर फिर से बंदिशें जारी कर दीं।

बंदिशें तोड़ना वैसे बंगाल की बुनियादी पहचान रहा है। यहां की मिट्टी हो या मानुष सब में बगावती तेवर पैदाइशी होते हैं। कोई किसी के बांधे रुकता नहीं। ‘ओह रे ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में ’ गुनगुनाकर कौन, कब किस दशा में हो जाए, पता नहीं चलता। दमदम हवाई अड्डा सुभाष चंद्र बोस के नाम से जाना जाता है। उनके नाम पर भी खूब सियासत यहां होती है।

हवाई अड्डे से होटल तक ले जाने के लिए होटल की ही गाड़ी है। ड्राइवर साब बताते हैं कि पहुंचने में 50 मिनट तो लगेंगे। मैं कौतूहलवश कार की खिड़की से बाहर शहर में चुनावी माहौल टटोलने की कोशिश करता हूं। बाहर निकलते ही जो पहला विशालकाय होर्डिंग दिखता है, उसमें ममता बनर्जी का चेहरा है।

पार्टी का हरकारा है और लिखी है एक बात, जो बंगाली में है। ड्राइवर साब पढ़कर बताते हैं, ‘बांगला निजेर मेएकेई चाय’ (बंगाल खुद की बेटी को ही चाहता है)! यही एक डिजाइन का होर्डिंग पूरे कोलकाता में दिखा। दिलचस्प ये देखना रहा कि बाकी किसी दूसरी पार्टी का कोई होर्डिंग ही होटल से हवाई अड्डे के रास्ते नजर नहीं आया। दीदी का ऐसा दबदबा!

‘बांगला निजेर मेएकेई चाय’, ये एक लाइन इस बार के चुनाव की पूरी अंतर्धारा भी है। ममता बनर्जी को दस साल शासन के बाद ऐसा कहने की जरूरत क्यों आन पड़ी? क्या अब भी बंगाल उनका पूरी तरह हो नहीं पाया है? या फिर कोई उनसे उनका बंगाल छीन रहा है? ममता के नारे में ना जाने क्यों मुझे करुण रस दिखता है। जैसे कन्हैया मां से जिद कर रहे हों, ‘मैया, मैं तो चंद्र खिलौना लैहों..’! ममता के पोस्टर पर बस उनकी ही एक सूरत है।

दूसरा नेता टीएमसी में कोई न दिखता है और न ममता देखना ही चाहती होंगी। भारतीय राजनीति में इन दिनों सब गणेश गायतोंडे होना चाहते हैं। हर नेता को लगता है कि वही अपनी पार्टी का भगवान है। दिल्ली में मनीष सिसौदिया पोस्टरों से गायब हो चुके हैं। मुंबई में सिर्फ उद्धव ठाकरे हैं। और, बंगाल में सिर्फ ममता।

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