सोम को उपकृत करने के लिए चार दिन में ही बदल गए लायसेंस नवीनीकरण के नियम

- 22 मार्च को जारी नियमों में अटक जाता सोम का लायसेंस, 26 को रास्ता आसान कर दिया
भोपाल। ‘ईजी आफ डूर्इंग बिजनेस’ (ease of doing business) की आड़ लेकर राज्य सरकार ने एक बार मुसीबत में फंसी सोम डिस्टलरी के लायसेंस के नवीनीकरण का रास्ता साफ कर दिया। अब ये राजनीतिक प्रभाव का खेल है या फिर वल्लभ भवन में बैठे बड़े बाबू लोगों का करिश्मा। लेकिन फिलहाल विवादों के कारण बंद पड़ी डिस्टलरी के लिए 2021-22 के लिए लायसेंस का काम आसान बना दिया गया है। चार दिन में ही बदले इन नियमों से प्रदेश में मौजूद डिस्टलरीज में से अकेले फायदा केवल सोम का ही होना है।
22 मार्च को आबकारी कमिश्नर ने रेक्टिफाइड स्प्रिट/ एक्सट्रा न्यूट्रल अल्कोहल के विनिर्माण के लिए स्वीकृत आसवनी (डी-1)
लायसेंस के नवीनीकरण के लिए नियम जारी किए। इसमें नए वित्तीय वर्ष के लिए जारी होने वाले लायसेंस को फिर से जारी करने के लिए कड़े नियम तय किए गए थे। इसमें वर्तमान लायसेंसी को सरकार की पिछले सालों का कोई भी शासकीय राशि बकाया नहीं होने का प्रमाण पत्र देना था। इसके अलावा अगर कोर्ट में कोई प्रकरण है तो उसकी भी पूरी जानकारी देनी थी। इसके अलावा आवेदक इकाई पर किसी प्रकार की जांच नहीं है या फिर जांच है तो उसमें की गई कार्रवाई या फिर जांच किस स्तर पर लंबित है, यह भी बताने की बाध्यता थी। आवेदक इकाई के अपराधिक प्रकरण की जानकारी या फिर अदालत द्वारा दी गई सजा जैसे मामलों की जानकारी भी देना थी।
इन सब मामलों में अकेले प्रदेश में सोम डिस्टलरी को ही फंसना था। पिछले साल ही सोम डिस्टलरी की जांच में उसमें नियम विरूद्ध स्प्रिट के अवैध टैंकों का मामला सामने आया था। इस मामले की जांच के लिए कमिश्नर आबकारी ने एक तीन सदस्यी जांच दल भी गठित कर रखा है। जिसकी जांच रिपोर्ट अभी आना बाकी है। सोम समूह प्रदेश के कुछ जिलों में शराब ठेकों के मामले में ब्लेक लिस्टेड भी है और उस पर मध्यप्रदेश औद्योगिक विकास निगम का करोड़ों रूपया बकाया भी है। सोम के मालिकों के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा अपराधिक प्रकरण भी दर्ज कराए गए हैं। इसके अलावा मुरैना की एक अदालत से शराब तस्करी के मामले में सोम के मालिक सजायाफ्ता भी हैं। ये सब ऐसे मामले में हैं जिनमें सोम डिस्टलरी के लिए लायसेंस नवीनीकरण मुसीबत जैसा साबित होता।
लेकिन जाहिर है सोम डिस्टलरी के प्रबंधन ने साबित कर दिया कि उसकी पहुंच बहुत ऊंची है। लिहाजा आबकारी कमिश्नर ने चार दिन बाद ही 26 मार्च को नए सिरे से लाससेंस नवीनीकरण की शर्तें बदल दी। इसमें कहा गया कि विनिर्माता इकाईयां स्थायी प्रकृति की इकाईयां एवं उद्योग की श्रेणी में आती हैं लिहाजा उसके लायसेंस नवीनीकरण व्यवस्था का ईजी आफ डूर्इंग बिजनेस के सिद्धांत के अनुरूप सरलीकरण किया जाता है। अब केवल लायसेंस के लिए आसवनी इकाई को आनलाइन आवेदन करना होगा जिसमें लायसेंस फीस के साथ यह घोषणा पत्र देना होगा कि उसके प्लांट में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है और उस पर विभाग का कोई बकाया नहीं है। इसके बाद उसका लायसेंस नवीनीकरण सीधा जारी हो जाएगा। यानि किसी जांच पड़ताल की गुंजाइश ही नहीं होगी। हालांकि सोम तो प्लांट में परिवर्तन को लेकर ही इस समय मुश्किल में है। और इसलिए ही सोम में उत्पादन बंद पड़ा हुआ है।
ये मामला बिलकुल भी शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व का नहीं है। ये सीधा-सीधा इंगित करता है कि शराब वाले एक समूह को उपकृत करने के लिए कोई सरकार किस हद तक जा सकती है। जिस भाजपा की एक बड़ी नेता शराब के खिलाफ अभियान चलाती है, उसी पार्टी के मुख्यमंत्री सार्वजनिक जगहों पर शराब के खिलाफ बातें करते हैं, उसी पार्टी के शासनकाल में सोम को लाडले बेटे की तरह और बढ़ावा दिया जा रहा है।