विश्लेषण

सरकार के पास डिजिटल मीडियो को कंट्रोल का कोई जरिया नहीं

राहुल पाण्डेय
पिछले हफ्ते केंद्र सरकार के सूचना एवं मंत्रालय ने डिजिटल मीडिया आचार संहिता पर नए नियम जारी किए। नोटिफिकेशन के महज चार दिन के अंदर मणिपुर की राजधानी इंफाल के डीएम ने वहीं के एक यूट्यूबर को इसी नोटिफिकेशन के तहत नोटिस भेज दिया कि वे आएं और अपने यूट्यूब चैनल पर जो कुछ भी कहा है, उसे साबित करने के लिए सारे सबूत भी साथ लाएं। इस नोटिस को लेकर वहां मचे बवाल ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को सदमे की हालत में पहुंचा दिया और उसने कहा कि डिजिटल मीडिया के बारे में जारी नोटिफिकेशन पर राज्य सरकार या उसका कोई अधिकारी किसी तरह का एक्शन नहीं ले सकता। अगर कोई एक्शन लेना है तो वह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में इसके लिए बनाए गए सिस्टम के तहत ही लिया जाएगा।

बेरोजगारों की पसंद
वैसे भारत में किसी यूट्यूबर का गिरफ्तार होना अब कोई नई बात नहीं है। आए दिन खबरें आती हैं कि फलां ने फेसबुक पर पोस्ट लिखी थी, या फिर यूट्यूब पर विडियो डाली थी, इसलिए अरेस्ट हो गया। किसी को किसी खबर से दिक्कत होती है तो वह अपने हिसाब से अपने इलाके के थाने में मुकदमा दर्ज करा देता है। अकेले आईटी मिनिस्ट्री ने पिछले साल पौने चार हजार मामलों को हैंडिल किया था, हालांकि सारे मामले खबरों से जुड़े हुए नहीं थे। टिकटॉक के जाने के बाद से यूट्यूब भारत में बेरोजगारों की पहली पसंद बनकर उभरा है, क्योंकि वहां बहुतों की कुछ न कुछ कमाई हो जाती है। यूट्यूब से थोड़ा कम ही सही पर पैसा फेसबुक भी देता है।

ट्विटर भी अब इसी लाइन पर है कि उसके यूजर्स की कुछ कमाई हो जाए। मगर पहले डिजिटल मीडिया का नोटिफिकेशन और फिर इंफाल में यूट्यूबर को गलत नोटिस मिलने के बाद इनमें एक डर घर कर गया है। और यह डर सिर्फ यूट्यूबर्स का नहीं है। भारत में जितने भी लोग ऑनलाइन धंधे से जुड़े हैं, यह डर उन सभी का है। इसकी बड़ी साफ वजहें हैं। न्यूज कंटेंट के अलावा हम भारतीय खाने, पहनने, चलने, बोलने, यहां तक कि सांस लेने के तरीके पर भी आपस में लड़ते रहे हैं। इससे रिलेटेड लाखों न्यूज विडियो हर तरह की वेबसाइट्स पर पड़ते हैं, वायरल होते हैं और ट्रेंडिंग टॉपिक बनते हैं। डिजिटल मीडिया पर आया नया नोटिफिकेशन इस सारी लड़ाई को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय पहुंचा दे रहा है, क्योंकि जिसको जो पसंद ना आए, वह मिनिस्ट्री में शिकायत कर दे। नोटिफिकेशन के मुताबिक मिनिस्ट्री भी 24 घंटे में कार्रवाई करने को तैयार बैठी है!

इस नोटिफिकेशन के तहत सरकार ने डिजिटल मीडिया चलाने वालों को कहा है कि वे शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए अपने यहां विभाग बनाएं। फेसबुक, गूगल वगैरह बड़ी कंपनियां हैं। एकबारगी वे यह खर्च बर्दाश्त कर सकती हैं। मगर कोरोना और मंदी के मारे आम भारतीय क्लिपकार यह खर्च कहां से उठाएंगे! फिर भारत में बहुत से लोग सिर्फ शिकायतों का ही बिजनेस करते हैं। वे अगर किसी के पीछे पड़ जाएं तो पार पाना मुश्किल है, क्योंकि कृषि कानून की ही तरह यहां भी सरकार ने सुनवाई और फैसले का सारा अधिकार अदालत को देने की जगह अपने अधिकारी को दे रखा है। जैसा कि इंफाल में यूट्यूबर को मिले नोटिस के बाद स्पष्ट किया गया कि जो कुछ भी करना होगा, वह आईबी मिनिस्ट्री की कमेटी ही करेगी।

भारत में वॉट्सऐप पर 53 करोड़, फेसबुक पर 41 करोड़, यूट्यूब पर 44.8 करोड़, इंस्टा पर 21 करोड़ और ट्विटर पर 1.75 करोड़ यूजर्स हैं। कुल मिलाकर 40 करोड़ भारतीय सोशल मीडिया यूज कर रहे हैं। नया नोटिफिकेशन इन्हें इजाजत देता है कि अगर ये कुछ भी ऐसा देखें, जो उन्हें देश को तोड़ने वाला लगता हो, तो वे इसकी शिकायत करें। जिस तरह से हमारे यहां खान-पान से लेकर शादी-ब्याह तक को देश तोड़ने की नजर से देखा जाने लगा है, अगर सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के कंटेंट पर इस 40 करोड़ की एक प्रतिशत भी शिकायतें आती हैं तो सरकार ने अभी तक यह नहीं बताया है कि इन लाखों शिकायतों के निपटारे के लिए उसके पास सिस्टम क्या है?

वैसे डिजिटल दुनिया अपना रास्ता बना लेती है। साल 2010 में विकीलीक्स के खुलासे के बाद 2011 में गूगल के तत्कालीन सीईओ एरिक श्मिट जूलियन असांज से मिले। पूरी बातचीत ‘वेन गूगल मेट विकीलीक्स’ नाम की एक किताब में है। यहां असांज बताते हैं कि उन्हें पता था सरकारें उनका कंटेंट ब्लॉक करेंगी। इसलिए उन्होंने ऐसे इंतजाम किए कि सरकारें कुछ ना कर पाएं। यह दस साल पहले की बात है। 2021 में डिजिटल दुनिया बहुत आगे आ चुकी है। क्या होगा अगर भारत में डिजिटल कंटेंट का उत्पादन करने वाले जूलियन असांज की राह पर चल पड़ें? या फिर तब, जब सारा मजमा डार्कनेट पर लगेगा, जहां दुनिया की किसी भी सरकार का कोई कंट्रोल नहीं है?

कसौटी पर कसना बाकी
वैसे साल 2015 में केंद्र सरकार ने कमोबेश ऐसे ही नियम कम्यूनिटी रेडियो सिस्टम पर लागू करने की कोशिश की थी। उसमें भी यही कहा था कि जिसको रेडियो पर हो रहे प्रसारण से शिकायत हो, वह मंत्रालय में शिकायत करे। भारत में अभी कुल 251 कम्यूनिटी रेडियो स्टेशन रजिस्टर्ड हैं, जिससे इनके सुनने वालों की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ ही दिनों में सरकार की उस कमेटी के पास इतनी शिकायतें आ गईं कि हारकर उन्हें यह नियम वापस लेना पड़ा। हालांकि सोशल मीडिया कंटेंट को नियमित करने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। पर नए नियमों में सबसे बड़ी गड़बड़ी यह है कि न्यूज वेबसाइट और सोशल मीडिया में फर्क नहीं किया गया है। ऐसे में इनकी सफलता संदिग्ध है। फिर नए नियमों को अभी संवैधानिक कसौटी पर भी कसा जाना बाकी है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि वहां ये बिल्कुल नहीं ठहर पाएंगे।

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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