विश्लेषण

वो खूनी होली, जिसे याद कर आज भी सिहर उठता है पूरा गाँव

चंबल घाटी मे वैसे तो कुख्यात डाकुओ ने एक से बढ कर एक ऐसे आंतकी कारनामे किये है जिससे लोगो मे भय पैदा होना आम बात है लेकिन उत्तर प्रदेश के इटावा मे खूंखार क्रूर डाकू जगजीवन परिहार ने डेढ दशक पहले चैरैला गांव में ऐसी खूनी होली खेली थी, जिसका खौफ आज भी लोगो को डरा जाता है। इस लोमहर्षक घटना की गूंज पूरे देश मे सुनाई दी थी । इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेला गया था

चैरैला गांव के रघुपति सिंह बताते हैं कि होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग के हथियार बंद डाकुओं ने गांव में धावा बोला तो किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि डाकुओं का दल गांव में खूनी वारदात करने के इरादे से आये हुए हैं क्योंकि अमूमन जगजीवन परिहार का गैंग गांव के आसपास आता रहता था, लेकिन होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग ने सबसे पहले उनके घर पर गोलीबारी की।




डाकुओं ने उनके घर पर बेहिसाब गोलियां चलाई । डाकुओं का इरादा उनकी हत्या करना था लेकिन डाकू दल घर का दरवाजा नहीं तोड़ पाये इससे वह और उसका परिवार बच गया । बेशक वो बच गया लेकिन उसके और दूसरे गांव के तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया तथा दो अन्य लोगों को गोली मार कर मरणासन्न कर दिया गया था। आज भी उस खूनी होली याद से मन सिहर उठता है।

14 मार्च, 2007 को सरगना जगजीवन परिहार और उसके गिरोह के 5 डाकुओं को मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला पुलिस ने संयुक्त आपरेशन में मार गिराया । गढ़िया गांव में लगभग 18 घंटे चली मुठभेड़ में जहां एक पुलिस अफसर शहीद हुआ, वहीं पांच पुलिसकर्मी घायल हुए थे ।

मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुके करीब 8 लाख रुपये के इनामी डकैत जगजीवन परिहार गिरोह का मुठभेड़ में खात्मा हुआ। साथ ही पनाह देने वाला ग्रामीण हीरा सिंह परिहार भी मारा गया। जगजीवन परिहार और उसके गैंग के डाकुओं के मारे जाने के बाद चंबल में अब पूरी तरह से शांत का माहौल बना हुआ है।

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