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शिवसेना का केन्द्र पर निशाना, लिखा- सरकार को बदनाम करने आतंक से जुड़े मामलो की जांच करने वाली टीम कर रही छड़ो जांच

मुंबई। एंटीलिया के बाहर से विस्फोटक मिलने के मामले में शिवसेना ने ‘सामना’ के जरिए एनआईए और केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। सामना में लिखा गया है कि जब इस मामले की जांच एटीएस कर रही थी, तो महाराष्ट्र सरकार को बदनाम करने के लिए केंद्र ने इसे आनन-फानन में एनआईए को दे दिया। संपादकीय में शिवसेना ने मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह का बचाव भी किया है।

एनआईए पर शिवसेना का सवाल
सामना के शुक्रवार के संपादकीय में लिखा है कि आतंकवाद का मामला नहीं होना और फिर भी एनआईए का जांच करना, आखिर ये क्या मामला है? आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करने वाली एनआईए जिलेटिन की छड़ों की जांच कर रही है, पर उरी, पुलवामा, पठानकोट हमलों की जांच का क्या?

भाजपा को मनसुख हिरेन की मौत का ज्यादा दुख
मनसुख हिरेन की मौत पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए शिवसेना ने लिखा है, ‘इस पूरे घटनाक्रम का श्रेय राज्य का विपक्ष ले रहा है। मनसुख हिरेन की मौत का दुख सभी को है, लेकिन भाजपा को थोड़ा ज्यादा है। मगर सुशांत सिंह, मोहन डेलकर और तमाम मुद्दों पर विपक्ष चुप है।’

परमबीर सिंह का बचाव किया
शिवसेना ने मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर का बचाव करते हुए लिखा है,’परमबीर सिंह को हटाना ये साबित नहीं करता कि वो गुनहगार हैं। बेहद कठिन परिस्थिति में उन्होंने ये पद संभाला था। दिल्ली में बैठी एक विशिष्ट लॉबी का परमबीर पर गुस्सा था, क्योंकि वे महत्वपूर्ण काम कर रहे थे। नए पुलिस कमिश्नर को साहस और सावधानी से काम करना होगा।’

सामना में लिखा
मुंबई के कारमाइकल रोड पर एक कार मिली थी, जिसमें जिलेटिन की 20 छड़ें रखी हुई थीं। उन छड़ों में विस्फोट नहीं हुआ, लेकिन राजनीति और प्रशासन में बीते कुछ दिनों से ये छड़ें धमाके कर रही हैं। इस पूरे मामले में अब मुंबई पुलिस के आयुक्त परमबीर सिंह को उनके पद से जाना पड़ा है। राज्य के पुलिस महासंचालक रहे हेमंत नगराले अब मुंबई पुलिस के नए आयुक्त बन गए हैं, तो रजनीश सेठ को पुलिस महासंचालक नियुक्त किया गया है। जिसे हम सामान्य बदली कहते हैं ये वैसी बदली नहीं हैं। एक खास परिस्थिति में सरकार को ये उथल-पुथल करनी पड़ी है। नए पुलिस आयुक्त नगराले ने तुरंत कहा है कि पुलिस से पहले जो गलतियां हुई हैं वे दोबारा नहीं होंगी। पुलिस की छवि को संभाला जाएगा। नगराले का बयान अहम है।

मुकेश अंबानी के घर के पास मिली संदिग्ध कार और उसके बाद कार के मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध परिस्थितियों में मिली लाश का मामला निश्चित तौर पर चिंताजनक है। विपक्ष ने इस मामले में कुछ सवाल खड़े किए हैं ये सच है, लेकिन राज्य का आतंक निरोधी दस्ता इस मामले में हत्या का मामला दर्ज कर जांच कर रहा था। इसी दौरान एनआईए ने आनन-फानन में जांच की कमान अपने हाथ में ले ली। महाराष्ट्र सरकार को किसी तरह से बदनाम कर सकें तो देखें, इसके अलावा कोई और नेक मकसद इसके पीछे नहीं हो सकता है।

क्राइम ब्रांच के सहायक पुलिस निरीक्षक के इर्द-गिर्द यह मामला घूम रहा है और इसके पीछे का मकसद जल्द ही सामने आएगा। किसी भी हाल में इसके पीछे आतंकवाद के तार न जुड़ने के बावजूद इस अपराध की जांच में एनआईए का घुसना, ये क्या मामला है? आतंकवाद से संबंधित मामलों की जांच एनआईए करती है, लेकिन जिलेटिन की छड़ों की जांच करने वाली एनआईए ने उरी हमला, पठानकोट हमला और पुलवामा हमले में क्या जांच की, कौन-सा सत्यशोधन किया, कितने गुनहगारों को गिरफ्तार किया? ये भी रहस्य ही है, लेकिन मुंबई में 20 जिलेटिन की छड़ें एनआईए के लिए बड़ी चुनौती साबित होती नजर आ रही हैं।

इस पूरे घटनाक्रम का श्रेय राज्य का विपक्ष ले रहा है। हिरासत में आए पुलिस अधिकारी वझे के पीछे वास्तविक सूत्रधार कौन है? ये सवाल उन्होंने पूछा है। मनसुख हिरेन की संदिग्ध मौत हो गई और इसके लिए सभी को दुख है। भारतीय जनता पार्टी को थोड़ा ज्यादा ही दुख हुआ है, लेकिन इसी पार्टी के एक सांसद रामस्वरूप शर्मा की संसद का सत्र चलने के दौरान दिल्ली में संदिग्ध मौत हो गई। शर्मा प्रखर हिंदुत्ववादी विचारों वाले थे। उनकी संदिग्ध मौत के बारे में भाजपा वाले छाती पीटते नजर नहीं आ रहे हैं।

मोहन डेलकर की खुदकुशी के मामले में तो कोई एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं है। सुशांत सिंह राजपूत और उसके परिजन को तो सभी भूल गए हैं। किसी की मौत का निवेश कैसे किया जाए, यह मौजूदा विपक्ष से सीखना चाहिए। मुंबई पुलिस का मनोबल गिराने की कोशिश इस दौर में चल रही है। विपक्ष को कम-से-कम इतना पाप तो नहीं करना चाहिए। विपक्ष ने महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने का सपना पाला होगा तो यह उनकी समस्या है, लेकिन ऐसी शरारत करने से उन्हें सत्ता मिल जाएगी ये भ्रम है।

पुलिस जैसी संस्था राज्य की रीढ़ होती है। उसकी प्रतिष्ठा का सभी को जतन करना चाहिए। विपक्ष महाराष्ट्र के प्रति निष्ठावान होगा तो वह पुलिस की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर राजनीति नहीं करेगा। मनसुख प्रकरण के पीछे का पॉलिटिकल बॉस कौन? यह उनका सवाल है। इसका जवाब उन्हें ही ढूंढ़ना चाहिए, लेकिन ऐसे मामलों में कोई भी पॉलिटिकल बॉस नहीं होता है। महाराष्ट्र की यह परंपरा नहीं है। मनसुख की हत्या हुई होगी तो अपराधी बचेंगे नहीं। उन्होंने आत्महत्या की होगी तो उसके पीछे की वजह ढूंढी जाएगी और उसी के लिए मुंबई सहित राज्य के पुलिस बल में भारी फेरबदल किया गया है। विपक्ष को इसका विश्वास रखना चाहिए।

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