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लॉकडाउन का असर: सालभर बाद भी पटरी पर नहीं लौटी लाखों प्रवासी श्रमिकों की जिंदगी, नहीं मिल रहा काम

नई दिल्ली। लॉकडाउन के दौरान कारखाने बंद हो चुके थे, दुकान-बाजार भी नहीं खुल रहे थे। ऊपर से कोरोना संक्रमण की दहशत। ऐसे विषम हालात में छोटे-छोटे बच्चों को कंधे पर बैठाए, बूढ़े मां-बाप को सहारा देकर पैदल या साइकिलों पर लेकर अपने घरों की तरफ लौटती भीड़ की पीड़ा संवेदनाओं कोे झकझोरने वाली थी।

सम्मान के साथ रोजी-रोटी कमाने और बेहतर भविष्य का सपना संजोकर रोजगार की तलाश में अपने घरों से सैकड़ों मील दूर गए लोग अभाव, बेबसी और मायूसी में लौट रहे थे। घरों पर गए तो कोई काम नहीं मिला और कर्जदार होते चले गए। परिवार में विवाद बढ़ गए, अलगाव तक हो गए। पेट का सवाल था, इसलिए छह-सात माह घरों पर रहने के बाद वे फिर काम की तलाश में घरों से शहरों की तरफ निकल पड़े। सालभर बाद भी लाखों प्रवासी श्रमिकों की जिंदगी पटरी पर नहीं लौट पाई।

यूपी में अपने घरों को लौटे थे 33 लाख श्रमिक
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ समेत समेत देश के कई राज्यों के एक-डेढ़ करोड़ लोगों ने लॉकडाउन की अवधि में ऐसा दंश झेला है, जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे। यूपी के जौनपुर, सिद्धार्थनगर, आजमगढ़, प्रयागराज, गोरखपुर जैसे कई जिलों के लाखों प्रवासी कामगार कई दिनों तक सड़कों पर चलते रहे। किसी ने रास्ते में अपनों को गंवाया तो किसी के प्रसव के बाद बच्चे की किलकारी सड़कों पर गूंजी। रास्ते में जमा-पूंजी खत्म हो चुकी थी। घर के आसपास काम नहीं था। अकेले उत्तर प्रदेश से लगभग 33 लाख कामगार अपने घरों को लौटे थे। कहा जाता है कि अभाव में विवाद बढ़ जाते हैं, यही हुआ। परिवारों में झगड़े बढ़ गए। जमीनों के बंटवारे होने लगे। शहर लौटे तो रोजगार का संकट फिर फिर सामने था।




यूपी के सीतापुर जिले के महमूदाबाद निवासी अरमान अली दिल्ली में जरीदोजी का काम करके हर महीने 22 हजार रुपये तक कमा लेते थे। लॉकडाउन में महमूदाबाद चले गए थे। वापस लौटे तो काम नहीं मिला। यही कहानी बिहार के लखीसराय के अशोक यादव की है। वह विशाखापत्तनम में पेंटिंग का काम करते थे। लॉकडाउन में बिहार वापस गए तो नौ महीने तक कोई काम नहीं मिला। पिछले दो माह से पश्चिम बंगाल के आसनसोल में मजदूरी कर रहे हैं।

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने हाल ही में राज्यसभा में जानकारी दी है कि करीब 1.14 करोड़ प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के समय अपने घरों को लौटे थे। हालांकि, गैर सरकारी आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है।

करोड़ श्रमिकों ने किया पलायन
प्रवासी श्रमिक बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद जब धीरे-धीरे सब कुछ खुलने लगा तो उन्होंने पुराने कार्यस्थल पर फोन करके आने के लिए पूछा। उन्हें आने से मना कर दिया। पता लगा कि पहले जहां आठ आदमी काम करते थे, वहां चार कारीगरों से ही काम चल रहा हैं। घर में इतना पैसा भी नहीं बचा कि कुछ अपना काम कर पाएं।

लॉकडाउन के दौरान विषम हालातों में सर्वाधिक प्रवासी श्रमिकों की वापसी उत्तर प्रदेश में हुई थी। केंद्र सरकार ने जानकारी दी है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने असंगठित प्रवासी मजदूरों को उनकी कार्यकुशलता के हिसाब से प्रशिक्षण देकर रोजगार मुहैया कराने का वादा किया था। साथ ही, दूसरे राज्यों को जाने वाले मजदूरों का डाटाबेस आॅनलाइन दर्ज करने के निर्देश दिए थे।

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