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एक, दो, तीन-हाय तबीयत हुई ग़मगीन
सर्वकालिक सुपर हिट फिल्म ‘शोले’ में गब्बर सिंह बने अमज़द खान का संवाद सबको याद है। अपने साथ के तीन डकैतों के अपनी बन्दूक की गोली से बच जाने के बाद गब्बर कहता है. ‘तीनो बच गए।’ हालांकि आज जिन तीन लोगों की बात हो रही है, उनके लिए कहा जा सकता है, ‘तीनो फंस गए।’ तीनो, यानी तीस्ता सीतलवाड़,आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट। संजीव को गुजरात में पुलिस ने एक और मामले में गिरफ्तार कर लिया। श्रीकुमार और सीतलवाड़ पहले ही गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
(गोधरा में 58 राम भक्तों को ट्रेन में जिन्दा जला देने के बाद हुए थे गुजरात में दंगे)
तीनों मामले वर्तमान प्रधानमंत्री और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े हुए हैं। गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर 27 फरवरी, 2002 को दंगाइयों ने अयोध्या से लौट रहे रामभक्तों की एक बोगी में आग लगा दी थी। इसमें करीब 58 रामभक्त जिंदा जलकर मर गए। गुजरात सरकार द्वारा गठित एक जांच आयोग ने पाया था कि करीब दो हजार मुस्लिमों की भीड़ ने बोगी में आग लगाई थी।
गोधरा कांड की प्रतिक्रिया में गुजरात में भयावह दंगे हुए। इनमें जान-माल का भारी नुकसान हुआ। दंगे में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। उस समय नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे।
(तीस्ता सीतलवाड़)
तीस्ता सीतलवाड़ सामाजिक कार्यकर्ता हैं। दंगों के बाद उन्होंने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी के इशारे पर गुजरात में मुस्लिमों का नरसंहार किया गया। तीस्ता ने दंगा-पीड़ित मुस्लिमों के साथ देश के कई हिस्सों में जाकर पत्रकार वार्ताएं भी की। ऐसे सभी मौकों पर मोदी और गुजरात सरकार सहित भाजपा को मुस्लिमों का हत्यारा बताया गया।
संजीव भट्ट उस समय गुजरात काडर के आईपीएस अफसर थे। फिलहाल वह एक मामले में जेल में बंद हैं। संजीव ने दंगों के बाद आरोप लगाया था कि मोदी ने मुख्यमंत्री आवास में बैठक लेकर यह निर्देश दिए थे कि दंगाइयों के खिलाफ कार्यवाही न की जाए। भट्ट ने दावा किया था कि वह खुद भी इस बैठक में शामिल थे, हालांकि बाद में उनका यह दावा झूठा निकला।
मूलतः केरल के रहने वाले आईपीएस अफसर आरबी श्रीकुमार वर्ष 2002 के दंगों के समय गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक थे। दंगों के बाद उन्होंने भी सीतलवाड़ और भट्ट की ही तरह के आरोप तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात सरकार पर लगाए थे।
(श्रीकुमार और भट्ट)
गुजरात दंगों की जांच नानावती-मेहता आयोग ने की। सीतलवाड़, भट्ट और श्रीकुमार ने इस आयोग को अलग-अलग कागज़ सौंपकर अपने दावे को सही बताने का प्रयास किया था। ये दस्तावेज फर्जी बताये गए और यह भी पता चला कि तीस्ता ने दंगा पीड़ितों से कोरे कागज़ों पर दस्तखत करवाकर फिर उन पर मोदी के खिलाफ आरोप लिखवाए। तीस्ता ही दंगा पीड़ितों को बताती थीं कि उन्हें किस तरह से मोदी और भाजपा पर झूठे आरोप लगाने हैं। बता दें कि जाकिया जाफरी ने भी नानावती-मेहता आयोग से यही कहा था कि वह जो आरोप लगा रही हैं, वह तीस्ता ने ही उन्हें सिखाए थे।
सुप्रीम कोर्ट में यह बात भी सामने आयी कि तीस्ता ने दंगा-पीड़ितों की मदद के नाम पर देश-विदेश से करोड़ों रूपए लिए और उनका इस्तेमाल खुद के लिए कर लिया।
तीस्ता के एनजीओ के पूर्व कर्मचारी रेयाज खान पठान ने अपनी शिकायत में कहा था कि गुजरात दंगों के बाद पीड़ितों के लगभग सभी हलफनामे तीस्ता ने बनाए थे। जिन पर गवाहों के दस्तखत लिए गए थे। एक दंगा पीड़ित जाहिद खान ने साफ़ कहा था कि तीस्ता ने उनके समुदाय को मदद के नाम पर गुमराह किया है।
अब तीनों फिलहाल तो कानून के चंगुल में फंसे दिख रहे हैं। आगे क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी। बरसात का रंगीन मौसम चल रहा है। दस्तूर तो है कि गीत ‘एक, दो, तीन। आजा मौसम है रंगीन’ वाला गया जाए, लेकिन इस तिकड़ी के लिए तो शायद ‘एक, दो तीन। हाय, तबीयत हुई ग़मगीन’ वाली स्थिति बन गयी है।