निहितार्थ

अब खामोश हो जाइए ऐसे मामलों पर

यह बिलकुल नहीं कहा जा सकता कि नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) ने पत्थर फेंककर शांति पानी में हलचल मचा दी। उन्होंने भी चारों ओर के कोलाहल से गूंजते महासागर में अपनी बात को ही रखा था। लेकिन मामला बिगड़ गया। शर्मा अब भाजपा (BJP) से निलंबित कर दी गयी हैं। पार्टी ने रविवार तक की अपनी इस राष्ट्रीय प्रवक्ता (national spokesperson) तथा प्रखर नेत्री को दरकिनार कर उनके हाल से नेत्र मूंद लिए हैं।

हालांकि, भाजपा में ही इस निर्णय का विरोध शुरू हो गया है। भले ही कोई वरिष्ठ नेता शर्मा के बचाव में सामने नहीं आया है, लेकिन भाजपा के हिंदुत्व (Hindutva) वाले स्वरूप में आस्था रखने वालों का गुस्सा फूट पड़ा है। ठीक वैसे ही, जैसे वर्ष 1984 (year 1984) के बाद भाजपा के ही प्रयासों से ऐसे लोगों का हिन्दुओं की उपेक्षा के खिलाफ क्रोध फूटा था और जिन्होंने भाजपा को राम लहर (Ram Lehar) पर सवार कर उसे आज विश्व का सबसे बड़ा और देश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजनीतिक दल बना दिया है।

कोई गलती नहीं है कि आप किसी की भावनाओं को आहत करने वाले किसी भी शख्स के खिलाफ कड़ा कदम उठाएं। नूपुर पर लगे आरोप यदि सही हैं, तो फिर कानून से उम्मीद है कि वह उन पर ऐसी सख्त कार्यवाही करे, जो बाकी लोगों के लिए नज़ीर बन जाए। यह बात और है कि पंद्रह मिनट में देश से हिन्दुओं का सफाया करने की बात कहने वालों के विरुद्ध आज तक ऐसी कोई नजीर कायम नहीं की जा सकी है। हिंदुओं के पवित्र शिवलिंग का टीवी चैनल (TV Channel) के स्टूडियो (studio) से लेकर गली और नुक्कड तक खुलकर मजाक बनाया गया, लेकिन कोई नजीर बनना तो दूर, इस दिशा में जिम्मेदारों की गुस्से से उठती नजर तक नहीं दिख रही है।

केंद्र सरकार और समूची भाजपा इस मामले में विवश हो गयी थी। पाकिस्तान (Pakistan) की बात यदि छोड़ भी दें, तो क़तर (Qatar) और ईरान (Iran) में शर्मा के खिलाफ उठे स्वर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में देश के लिए असुविधाजनक हालात बनने लगे थे। कोशिश यह भी हो रही थी (जो अब भी शायद ही ख़त्म हुई है) कि इस विषय पर भारत के मौजूदा शासन तंत्र के विरुद्ध इस्लामिक देशों (Islamic countries) को एकजुट किया जा सके। जिन नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने अपने आठ साल के अब तक के कार्यकाल में अन्य मुल्कों से संबंध प्रगाढ़ करने पर बहुत अधिक जोर दिया हो, शर्मा के एपिसोड से मोदी की इन कोशिशों को करारा झटका लग सकता था। यह सब जिस समय हुआ, ठीक उसी वक्त अमेरिकी प्रशासन (US Administration) की एक रिपोर्ट में भारत के लिए कहा गया कि वहां अल्पसंख्यकों पर हमले के मामले बढ़े हैं। वैसे तो भारत सरकार (Indian government) ने पुरजोर तरीके से इस रिपोर्ट को खारिज किया है, लेकिन शर्मा के कथित बयान से अमेरिका के इस मत को जो पुष्टि मिल रही है, वह वैश्विक स्तर पर देश के लिए बड़ी शर्मिंदगी की वजह बनता दिख रहा है।

इसके साथ ही नूपुर और नवीन जिंदल (Naveen Jindal) की जो हालत बनती दिख रही है, उस पर भी गौर किया जाना चाहिए। इन दोनों ने ही बताया है कि उन्हें बहुत बुरे परिणाम झेलने की धमकियां दी जा रही हैं। यदि घोषित आतंकवादी याकूब मेनन (terrorist yakub menon) के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आधी रात को देश की सबसे बड़ी अदालत खुल सकती है, तो फिर शर्मा और जिंदल पर तो अभी आरोप सिद्ध भी नहीं हुए हैं। ऐसे में क्या यह उम्मीद गलत है कि इन दोनों के अधिकारों की सुरक्षा की चिंता में दिन में चलती अदालत में ही कोई आंख निरपेक्ष तरीके से खुल जाएगी?

वैसे यह प्रसंग बहुत बड़ी सीख लेने का समय है। ये धर्म तथा आस्था से जुड़े विषयों पर विषवमन को बढ़ावा देने का भयावह दौर है। TRP की भूख (‘हवस’ कहना ज़्यादा ठीक होगा) ने इस कारगुजारी को खूब खाद-पानी प्रदान किया है। टीवी चैनलों की बहस में कोई अनजाने में तो कोई जानबूझकर इसका हिस्सा बन रहा है। एंकर का इसमें सबसे बड़ा योगदान होता है। पैनल में बैठे किसी एक व्यक्ति ने कोई अनुचित बात बोली तो उस बात को तूल देने में कोई देर नहीं की जाती है। यहीं से शुरू होता है उन भड़काऊ गर्म हवाओं का सिलसिला जो एक चर्चा को प्रपंच में बदल देता है। इस तपिश को ऐसे भड़काया जाता है कि वह वातानुकूलित स्टूडियो भी आग के गोले में तब्दील होने लगता है।

क्रिया की प्रतिक्रिया देने के फेर में यहीं से शुरू होता है उन बातों का सिलसिला, जो अंततः माहौल को बिगाड़ने का ही काम करती हैं। बेहतर होगा कि अब नूपुर और नवीन का मामला कानून के हवाले कर इस सारे प्रकरण पर गरिमामयी चुप्पी साध ली जाए। क्योंकि सामानांतर अदालतों के इस शोरगुल से कुछ हासिल नहीं होना है। आखिर यह देश की साख का सवाल है। लोकतंत्र के वटवृक्ष की उस शाख के अस्तित्व का सवाल है, जिस पर परस्पर विरोधी विचार रखने वाले भी एक साथ नजर आते रहे हैं। विचारों को पहले बहस और फिर उन्माद में परिवर्तित कर देने की यह फितरत हम सभी के लिए अंततः घातक ही साबित होगी।

प्रकाश भटनागर

मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में प्रकाश भटनागर का नाम खासा जाना पहचाना है। करीब तीन दशक प्रिंट मीडिया में गुजारने के बाद इस समय वे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में प्रसारित अनादि टीवी में एडिटर इन चीफ के तौर पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे दैनिक देशबंधु, रायपुर, भोपाल, दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक जागरण, भोपाल सहित कई अन्य अखबारों में काम कर चुके हैं। एलएनसीटी समूह के अखबार एलएन स्टार में भी संपादक के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रकाश भटनागर को उनकी तल्ख राजनीतिक टिप्पणियों के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।

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