मुल्ला उमर ने अपनी कार को ज़मीन के भीतर दफनाने का आदेश दिया। कार खराब न हो, इसलिए इसे मोटे प्लास्टिक से पूरी तरह ढंका गया।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार का एक कार के लिए प्रेम आज सारी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। वजह यह कि इस कार का इस्तेमाल कभी तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर ने किया था। बाद में इसे छिपाने की गरज से जमीन के भीतर दफना दिया गया। अब यह कार निकाल ली गयी है। मुल्ला उमर की इस कार को उसकी निशानी के रूप में अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा जाएगा। मुल्ला उमर लम्बे समय तक अमेरिका की आंख में खटकता रहा। अमेरिकी सेनाओं के दबाव के चलते ही उसके आख़िरी दिन छिप-छिपकर गुजरे। इसलिए साफ़ है कि इस कार को राष्ट्रीय स्तर का सम्मान देकर तालिबान ने अमेरिका को नीचा दिखाने की कोशिश भी की है।
टोयोटा कंपनी की यह कार मुल्ला उमर को बहुत प्रिय रही। एक आंख वाला मुल्ला उमर ही वह बड़ी वजह बना, जिसके चलते अमेरिका को तीसरा नेत्र खोलने जैसा गुस्सा दिखाना पड़ा। कुख्यात 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने आरोप लगाया कि इस हमले के मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन को मुल्ला उमर ने ही पनाह दी है। मुल्ला उमर का कोई सुराग नहीं लगा तो अमेरिका ने उसके खिलाफ एक करोड़ डॉलर का ईनाम घोषित कर दिया। इसके साथ ही अमेरिकी सेना ने उमर की तलाश में अभियान भी तेज कर दिया।
(कई वर्ष तक इकलौती यही तस्वीर दिखी मुल्ला उमर की )
जब यह सब हुआ, तब उमर अपनी पैदाइश वाले शहर कंधार में छिपा हुआ था। पकड़े जाने के डर से उसने अफ़ग़ानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में बसे जाबुल प्रांत का रुख किया। यह वाकया वर्ष 2001 का है, जब यहां आने के बाद मुल्ला उमर ने अपनी कार को ज़मीन के भीतर दफनाने का आदेश दिया। कार खराब न हो, इसलिए इसे मोटे प्लास्टिक से पूरी तरह ढंका गया। इसका ही नतीजा रहा कि 21 साल बाद बाहर निकाली गयी यह कार पूरी तरह सुरक्षित है। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कार का आगे का कांच टूट चुका है।
मुल्ला उमर हमेशा से अमेरिका के लिए परेशानी वाला मामला नहीं रहा था। अमेरिका ने उसके रूप में जो बोया, वही उसने काटा। फिर चाहे वह 9/11 का हमला हो या फिर अन्य वह गतिविधियां, जिनके चलते मुल्ला उमर से लेकर ओसामा बिन लादेन विश्व के लिए बड़ा सिर दर्द बन गए।
(अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेना)
बात तब की है, जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत सेनाओं का जमावड़ा था। तब सोवियत संघ का अस्तित्व था और उसके सहयोग से अफ़ग़ानिस्तान में साम्यवादी सरकार चल रही थी। इस सरकार को हटाने और सोवियत सेनाओं को अफ़ग़ानिस्तान की जमीन से खदेड़ने की गरज से ही ‘अफ़ग़ान मुजाहिदीन’ का गठन किया गया। मुल्ला उमर इसी संगठन से जुड़ा था। उस समय अमेरिका और सोवियत रूस विश्व की प्रमुख महाशक्ति थे। कहा जाता है कि दुनिया में अपनी चौधराहट स्थापित करने के लिए तब अमेरिका का अफ़ग़ान मुजाहिदीन की गतिविधियों को समर्थन हासिल था।
रूस की सेनाओं से संघर्ष के बीच ही मुल्ला उमर घायल हुआ और उसकी एक आंख जाती रही। कुछ लोगों का कहना है कि मुल्ला उमर ने खुद ही अपनी खराब आंख को बाहर निकाल फेंका था। कुछ कहते हैं कि उसने विदेश में जाकर इलाज कराया, जहां उसकी आंख निकालना पड़ गयी थी।
(अफ़ग़ानिस्तान से सोवियत सेना की वापसी)
आखिरकार 1989 में सोवियत सेनाओं को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर जाना पड़ गया। इसके बाद मुल्ला उमर वापस सक्रिय हुआ। उसने एक शिक्षक के रूप में काम शुरू किया और यहीं से उसने कट्टर छात्रों को साथ लेकर आतंकवादी संगठन तालिबान का गठन किया। अफ़ग़ानिस्तान में इस समय तालिबान की ही सरकार है, जिसमें उमर का बेटा मोहम्मद याक़ूब रक्षा मंत्री है। इससे पहले जब मुल्ला के प्रयास से अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की सरकार बनी थी, तब मुल्ला उमर के ही आदेश पर वर्ष 2001 में इस देश के बामियान में स्थित बुद्ध की बेहद प्राचीन प्रतिमाओं को गिरा दिया गया था।
जानकारों का यह भी कहना है कि उस दौर में सोवियत रूस के विरोधी धड़ों ने अफ़ग़ानिस्तान से अफीम की खेप दुनिया-भर में तस्करों को बेचकर इसके जरिये अपने अभियान के लिए अकूत पैसा हासिल किया था। हालांकि बाद में एक ऐसा समय भी आया, जब मुल्ला उमर ने तालिबान की स्थापना की। मुल्ला उमर ने अफीम के उत्पादन और बिक्री को इस्लाम-विरोधी बताया। इसका असर यह हुआ कि विश्व में अफीम की कुल फसल में दो तिहाई उत्पादन वाले अफ़ग़ानिस्तान में इसका उत्पादन 99 फीसदी तक गिर गया।
( जवानी में ऐसा दिखता था मुल्ला उमर)
मौलाना उमर अपनी जिंदगी में बहुत कम लोगों से मिला। यहां तक कि वर्ष 2013 में बीमारी से उसकी मौत के होने के पहले तक उसका केवल एक फोटो दुनिया के सामने था। तालिबान ने वर्ष 2015 में जाकर इस बात को सार्वजनिक किया कि मुल्ला उमर की मौत हो चुकी है। इसके बाद उसकी वर्ष 1978 में ली गयी एक तस्वीर दुनिया के सामने लाई गयी। पाकिस्तान स्थित जामिया उलूम अल इस्लामिया शिक्षण संस्थान ने मुल्ला उमर को मानद डिग्री दी थी, हालांकि इस संस्थान में मुल्ला ने कभी भी पढ़ाई नहीं की ।
(ग्राफ़िक- प्रफुल्ल तिवारी)