राधा अष्टमी व्रत पापों से दिलाती है मुक्ति ,जानिए महत्व और अन्य खास बातें
भादो मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीराधा अष्टमी है। इस साल राधा अष्टमी 14 सितंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी। कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले जातकों को राधाष्टमी का उपवास भी जरूर रखना चाहिए। इससे जन्माष्टमी के पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। राधाअष्टमी का त्योहार भी मथुरा, वृंदावन और बरसाने में बड़े जोर-शोर के साथ मनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार राधा रानी के पिता नाम वृषभानु और माता का नाम किर्ति था। राधा जी स्वंय लक्ष्मी जी का अंश थी। शास्त्रों के अनुसार राधा अष्टमी का व्रत रखने पर सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आइए जानते हैं, राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि
राधा अष्टमी शुभ मुहूर्त-
राधा अष्टमी तिथि 13 सितंबर दोपहर 3 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी, जो कि 14 सितंबर की दोपहर 1 बजकर 9 मिनट तक रहेगी।
राधा अष्टमी पूजा विधि
राधा अष्टमी के दिन सुबह जल्द उठकर स्नान करना चाहिए। फिर स्वस्छ वस्त्र पहनें और राधारानी और भगवान कृष्ण के व्रत का संकल्प लें। इसके बाद राधा और कान्हा की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएं और श्रृंगार करें। वह धूप, दीप, अक्षत, पुष्प, फल और प्रसाद अर्पित करें। श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र का पाठ करें। एक समय का उपवास रखें। वहीं सुहागिन महिलाओं और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
राधा अष्टमी का महत्व
राधा रानी के बिना कृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गई है। जो लोग कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं। उन्हें राधा रानी के जन्मोत्सव पर भी व्रत अवश्य रखना चाहिए। कहा जाता है कि राधाष्टमी के व्रत के बिना कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं होता है। राधाअष्टमी के दिन राधा और कृष्ण दोनों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन करने वालों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। राधा रानी को वल्लभा भी कहा जाता है।