मोदी सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, अब इतिहास के पन्नों में पढ़ा जाएगा आर्टिकल 370
नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जहां केन्द्र सरकार को बड़ी राहत मिली है। वहीं याचिकाकर्ताओं को बड़ा झटका लगा है। दरअसल शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसकी कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केन्द्र सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि कि सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में में चुनाव कराये जायें।
बता दें कि 2019 में अनुच्छेद 370 निरस्त करने के खिलाफ दायर 23 याचिकाओं पर 16 दिन सुनवाई के बाद 5 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वहीं आज सोमवार को 4 साल, 4 महीने, 6 दिन बाद आज सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने फैसला सुनाया। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरी और अन्य कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए। वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी दलीलें पेश कीं।
अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था
चीफ जस्टिस ने कहा कि जब राजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय समझौते पर दस्तखत किए थे, तभी जम्म-कश्मीर की संप्रभुता खत्म हो गई थी। वह भारत के तहत हो गया। साफ है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संविधान से ऊंचा है। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था है। अनुच्छेद 370 पर फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा है कि राज्य में युद्ध के हालातों की वजह से अनुच्छेद 370 एक अंतरिम व्यवस्था थी। अनुच्छेद 370 (3) के तहत राष्ट्रपति को यह अधिसूचना जारी करने की शक्ति है कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो जाता है और जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी अनुच्छेद 370 अस्तित्व में रहेगा। संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं थी। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का उद्देश्य एक अस्थायी निकाय था।
अनुच्छेद 370 हटने का फायदा
चीफ जस्टिस ने कहा कि राष्ट्रपति के लिए यह जरूरी नहीं था कि वह जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश के बाद ही 370 पर कोई आदेश जारी करें। अनुच्छेद 370 को बेअसर कर नई व्यवस्था से जम्मू-कश्मीर को बाकी भारत के साथ जोड़ने की प्रक्रिया मजबूत हुई। सीजेआई ने कहा है कि नए परिसीमन के आधार पर जम्मू-कश्मीर में जल्द से जल्द चुनाव करवाएं जाएं। इस संबंध में केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया है। अदालत ने ये भी कहा है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस दिया जाए।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था जो स्थायी हो गया: अनुच्छेद 370 स्थायी हो गया क्योंकि अनुच्छेद 370 में ही बदलाव करने के लिए संविधान सभा की सिफारिश की आवश्यकता थी लेकिन 1957 में संविधान सभा ने काम करना बंद कर दिया।
केंद्र ने संविधान सभा की भूमिका निभाई: याचिकाकतार्ओं ने तर्क दिया है कि संविधान सभा की अनुपस्थिति में, केंद्र ने अप्रत्यक्ष रूप से संविधान सभा की भूमिका निभाई और राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से शक्तियों का प्रयोग किया।
राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं: संविधान जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी कानून में बदलाव करते समय राज्य सरकार की सहमति को अनिवार्य बनाता है। यह ध्यान में रखते हुए कि जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था तब जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्य सरकार की कोई सहमति नहीं थी।
राज्यपाल की भूमिका: याचिकाकतार्ओं ने तर्क दिया कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना विधान सभा को भंग नहीं कर सकते थे।याचिकाकतार्ओं ने तर्क दिया कि केंद्र ने जो किया है वह संवैधानिक रूप से स्वीकार्य नहीं है और अंतिम साधन को उचित नहीं ठहराता है।
केंद्र के तर्क
किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ: केंद्र ने तर्क दिया कि संविधान के तहत निर्धारित उचित प्रक्रिया से कोई उल्लंघन नहीं हुआ है और केंद्र के पास राष्ट्रपति का आदेश जारी करने की शक्ति थी।केंद्र ने तर्क दिया कि याचिकाकतार्ओं ने जो आरोप लगाया है, उसके विपरीत, जिस तरीके से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, उसमें कोई “संवैधानिक धोखाधड़ी” नहीं हुई थी।
राष्ट्रपति के पास संविधान के तहत शक्ति है: केंद्र ने तर्क दिया कि दो अलग-अलग संवैधानिक अंग – राष्ट्रपति, राज्य सरकार की सहमति से – जम्मू-कश्मीर के संबंध में संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की शक्ति रखते हैं।
अनुच्छेद 370 का ह्लविनाशकारी प्रभावह्व हो सकता था: केंद्र ने तर्क दिया कि यदि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त नहीं किया गया, तो इसका पूर्ववर्ती राज्य में ह्लविनाशकारी प्रभावह्व हो सकता था।केंद्र ने तर्क दिया कि पूर्ण एकीकरण के लिए विलय जरूरी था, अन्यथा यहां एक प्रकार की “आंतरिक संप्रभुता” मौजूद थी।केंद्र ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 370 एक स्थायी अनुच्छेद नहीं था और इसका मतलब संविधान में केवल एक अस्थायी प्रावधान था।
केंद्र सरकार ने कहा कि हमने संविधान से कोई फ्रॉड नहीं किया, 370 हटने के बाद घाटी में अभूतपूर्व बदलाव हुआ है। दशकों से जो वहां अशांति उथलपुथल का माहौल था वो अब शांत है। केंद्र ने कहा कि कश्मीर अकेला राज्य नहीं जिसका विलय शर्तों के साथ भारत संघ में हुआ, ऐसे सभी राज्यों की संप्रभुता को भारत की संप्रभुता में शामिल कर दिया गया था, कश्मीर के मामले में भी ऐसा ही किया गया।
याचिकाकतार्ओं की तरफ से पेश हुए वकील: कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन,दुष्यन्त दवे, गोपाल शंकरनारायणन, जफर शाह।
केंद्र की तरफ से इन वकीलों ने रखा पक्ष: अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमण, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी और वी गिरी