बंगाल की सियासत में प्रतिष्ठा की सीट बनी नंदीग्राम, ‘अधिकारी’ को पिछले चुनाव में मिले थे 67 प्रतिशत मत; 62 हजार हैं मुस्लिम मतदाता

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के 2016 के विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट पर बीजेपी को साढ़े 5 फीसदी से भी कम वोट मिले थे। इस सीट पर कुल वैध मतों की संख्या 2 लाख 01 हजार 552 थी। इनमें से बीजेपी उम्मीदवार बिजन कुमार दास को मात्र 10 हजार 713 वोट मिले थे।
मगर 2016 में ममता बनर्जी के निष्ठावान और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने उस चुनाव में इस सीट पर महाजीत हासिल की थी। उन्होंने अपने नजदीकी प्रतिद्वंदी सीपीआई के अब्दुल कबीर शेख को 81 हजार 230 वोटों से हराया था। शुभेंदु अधिकारी ने 1 लाख 34 हजार 623 वोटों के साथ 67.2 प्रतिशत मत हासिल किए। जबकि अब्दुल कबीर शेख को मात्र 53 हजार 393 वोट मिले थे। भाजपा यहां लंबे मार्जिन से तीसरे नंबर पर रही।
19 दिसबंर 2020 से नंदीग्राम में भाजपा न के बराबर थी
इन आंकड़ों से कई निष्कर्ष निकलते हैं। पहला ये कि नंदीग्राम में 19 दिसबंर 2020 से पहले बीजेपी का कोई बड़ा दबदबा नहीं था। 19 दिसंबर 2020 वो तारीख थी जब शुभेंदु अधिकारी ने ममता के साथ अपना लगभग 13 साल साथ तोड़ते हुए बीजेपी में शामिल हो गए थे।
2016 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 5।4 प्रतिशत वोट तब मिले जब 2014 में दिल्ली में मोदी के नाम का डंका बज चुका था। लेकिन नंदीग्राम की क्रांतिकारी जमीन में भगवा फसल नहीं लहलहा सकी। नंदीग्राम सीट से बीजेपी के बिजन कुमार दास 2009 से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन टीएमसी वाले शुभेंदु के गढ़ और ममता की आंधी में कभी उनका अता पता नहीं चला।
नंदीग्राम में चलता है शुभेंदु का सिक्का
दूसरा तथ्य यह है कि नंदीग्राम में अधिकारी फैमिली जबरदस्त लोकप्रिय रहे हैं। इसकी गवाही आंकड़े देते हैं। 2016 में शुभेंदु ने 80 हजार वोटों के साथ चुनाव तो जीता ही था। इससे पहले 2009 से यह इलाका अधिकारी परिवार का राजनीतिक किला रहा है।
शुभेंदु अधिकारी 2009 और 14 में तामुलक से सांसद बने, इसी तामलुक लोकसभा सीट के तहत नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र आता है। 2016 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए शुभेंदु ने इस सीट से इस्तीफा दे दिया, लेकिन दिल्ली जाने से पहले वो इस सीट का लोकतांत्रिक उत्तराधिकारी अपने भाई दिव्येंदु अधिकारी को बना गए। अभी दिव्येंदु इस सीट से सांसद हैं, लेकिन ममता से उनकी भी नहीं पट रही है। हाल में पीएम मोदी ने दिव्येंदु की तारीफ कर काफी कुछ संदेश दे दिया है।
क्या शुभेंदु की तरह भूमिपुत्र मतदाता भी बदलेगा अपनी निष्ठा?
तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि क्या नंदीग्राम का ‘भूमिपुत्र’ मतदाता शुभेंदु अधिकारी की तरह ही अपनी निष्ठा टीएमसी से भाजपा की ओर शिफ्ट करेगा? ये वो सवाल है जिस पर 2021 के सबसे हाई वोल्टेज सीट का नतीजा निर्भर करेगा। दरअसल ममता की परछाई और अपने प्रभुत्व के दम पर टीएमसी और शुभेंदु दोनों ने ही नंदीग्राम में खूब मलाई खाई है। लेकिन अब समीकरण सीधे विपरित धुव्र में आ गए हैं और इस घटनाक्रम के बाद सरसरी नजर में टीएमसी तो इस सीट पर घाटे में नजर आती है।
बीजेपी के पास अब शुभेंदु है, यानी की शुभेंदु का वोटबैंक है। लेकिन ममता बनर्जी ने अपने लेफ्टिनेंट के सामने खुद अपनी ही उम्मीदवारी की चुनौती पेशकर यहां के मतदाताओं को पसोपेश में डाल दिया है। अब वोटर्स के सामने एक ओर तो पार्टी से जुड़ी वफादारी और ममता बनर्जी का चेहरा है तो दूसरी ओर अपने नेता शुभेंदु के साथ सालों का लगाव है, और धुआंधार प्रचार युद्ध कर रहे बीजेपी के साथ आने का लालच है।
नंदीग्राम की जनता किसको वोट देगी?
सवाल है कि नंदीग्राम की जनता किसको वोट देगी? क्या शुभेंदु अधिकारी मतदाताओं के अपनी ओर खींच पाएंगे। बंगाल के हुगली जिले के रहने वाले मोहन लाल मुखर्जी कहते हैं कि नंदीग्राम शुभेंदु अधिकारी का मदरलैंड है, वो काफी हदतक टीएमसी वोर्टस को अपने साथ ले आ सकेंगे।
शुभेंदु ने तो पूर्व मिदनापुर में ममता बनर्जी को बाहरी करार दे दिया है। नंदीग्राम पूर्वी मिदनापुर जिले में ही आता है। नंदीग्राम से ममता की उम्मीदवारी फाइनल होने के बाद शुभेंदु ने कहा कि यहां के लोग मिदनापुर के बेटे को चाहते हैं, बाहरी लोगों को नहीं। हम उन लोग वोट की रणभूमि में देखेंगे, 2 मई को आप हारेंगी और बाहर जाएंगीं। नंदीग्राम में 1 अप्रैल को चुनाव है। शुभेंदु को मोदी शाह का पूरा समर्थन है, इसके अलावा उनकी अपनी लोकप्रियता और साख है इसके दम पर वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तगड़ी चुनौती देने जा रहे हैं।