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पश्चिम बंगाल का रण: भाजपा-टीएमसी ने झोंकी ताकत, जानें गांधी परिवार ने क्यों बनाई दूरी?

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनाव के पहले चरण का चुनाव प्रचार गुरुवार शाम को थम गया है। बंगाल के पहले दौर की 30 सीटों पर शनिवार को वोट डाले जाएंगे। ऐसे में बंगाल की चुनावी जंग फतह करने के लिए बीजेपी और टीएमसी ने पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन कांग्रेस का चुनाव प्रचार रफ्तार नहीं पकड़ सका। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित पार्टी के बड़े नेता बंगाल चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रहे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि गांधी परिवार चुनाव प्रचार के लिए नहीं उतरा?

बंगाल के पहले चरण में पांच जिलों बांकुड़ा, पुरुलिया, झारग्राम, पश्चिमी और पूर्वी मिदनापुर जिले की 30 सीटों पर शनिवार को वोटिंग होनी है। जंगल महल के नाम से मशहूर इन इलाकों में आदिवासी समुदाय का वोट है। बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव में किस्मत आजमा रही है। पहले चरण की जिन 30 विधानसभा सीटों पर चुनाव हो रहे है, उनमें से दो सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था। कांग्रेस ने इस बार पहले चरण की छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं।

कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल के लिए जिन 30 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है उसमें सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का नाम भी शामिल है। इसके बावजूद सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने बंगाल में कोई भी रैली नहीं की है जबकि असम में राहुल-प्रियंका लगातार प्रचार करते नजर आए। प्रियंका ने असम के तीन दौरे किए जबकि राहुल गांधी ने भी तीन दौरे किए, लेकिन बंगाल में दोनों ही नेताओं ने एक भी रैली को संबोधित नहीं किया।




राहुल गांधी का सबसे ज्यादा फोकस फिलहाल दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में हो रहे विधानसभा पर चुनाव पर है। इसमें भी खासकर केरल को लेकर राहुल ज्यादा ही संजीदा हैं, जहां 140 सीटों पर एक साथ 6 अप्रैल को मतदान है। राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं, यही वजह है कि वो दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा केरल में प्रचार पर ध्यान लगा रहे हैं। यहां कांग्रेस की जीत और हार राहुल की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है।

वहीं, प्रियंका गांधी का पूरा फोकस असम में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर है, जहां उन्होंने अपने करीबी नेताओं को चुनावी अभियान में लगा रखा है। छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेंद्र सिंह बघेल सहित तमाम बड़े नेताओं को असम मिशन पर प्रियंका ने ही लगाया है। इतना ही नहीं प्रियंका गांधी खुद भी असम के पहले चरण इलाके में तीन दौरे में करीब दस रैलियों को संबोधित किया और कई रोड शो किए हैं। इस दौरान उन्होंने चाय बागानों के मजदूरों की दिहाड़ी और सीएए कानून को लागू नहीं करने सहित पांच गारंटी आसम के लोगों की दी है।

बंगाल इकाई से जुड़े नेता के मुताबिक दूसरे चरण के लिए भी सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका का दौरा तय नहीं हुआ है, पश्चिम बंगाल को लेकर कांग्रेस शुरू से ही असमंजस में रही। यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व राज्य के नेताओं पर चुनाव की जिम्मेदारी छोड़ रखी है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल रखी है।

बंगाल चुनाव में सीमित प्रचार कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है, जब केरल में वह वाममोर्चा के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। माना जा रहा है कि ऐसे मे पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ प्रचार करने से केरल में लड़ाई कमजोर पड़ सकती है। इसलिए, पार्टी केरल में मतदान तक बंगाल में प्रचार से परहेज बरत रही है। इसीलिए राहुल गांधी अभी तक चुनाव प्रचार में नहीं उतरे हैं।




हालांकि, इसके साथ कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती है। दरअसल, बंगाल में कांग्रेस चुनाव को त्रिकोणीय नहीं बनने देना चाहती। त्रिकोणीय संघर्ष होने पर भाजपा विरोधी वोट का बंटवारा होगा और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलने की संभावना है। यही वजह है कि कांग्रेस पूरे बंगाल के बजाय खुद को अपने मजबूत गढ़ मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर के इलाके तक ही सीमित रखे हुए हैं। इन क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत हैं और यहां से उसे जीत की उम्मीद भी दिख रही है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में यूपीए के कई घटक दल भी कांग्रेस के बजाय ममता बनर्जी की टीएमसी के समर्थन में खड़े हैं। आरजेडी से लेकर जेएमएम तक ने दीदी का साथ देने का ऐलान किया है। तेजस्वी यादव और हेमंत सोरेन ने सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ दीदी को मजबूत करने की बात कह कर अपना समर्थन टीएमसी को दिया तो वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार में भागीदार शिवसेना और एनसीपी ने टीएमसी को समर्थन देने का फैसला किया। इसके चलते भी कांग्रेस पर दबाव बढ़ा है। ऐसे में कांग्रेस की भी कोशिश है कि उसके किसी कदम से टीएमसी की जीत की संभावना पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। माना जा रहा है कि इसीलिए कांग्रेस अभी तक बंगाल में अपने चुनाव प्रचार को रफ्तार नहीं दे सकी है।

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