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यूपी चुनाव से पहले का आंकलन: कांग्रेस की सक्रियता से बढ़ी सपा-बसपा की बेचैनी, भाजपा को हो सकता है बड़ा फायदा

नई दिल्ली। देश में राजनीतिक रूप से सबसे अहम सूबे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विधानसभा चुनाव (Assembly elections) अब बेहद नजदीक आ चुका है। इस बीच कांग्रेस (congress) की तरफ प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) पार्टी के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने लगातार जुटी हुई हैं। साथी ही चुनावी रणनीति (election strategy) पर भी बहुत गंभीरता से काम कर रही हैं। लेकिन सबसे खास बात यह है कि कांग्रेस अपनी जिस तरह सक्रियता बढ़ा रही है उससे सपा (SP) और बसपा (BSP)की बेचैनी बढ़ती जा रही है। माना यह भी जा रहा है कि अगर कांग्रेस अपनी जमीन मजबूत करने सफल होती है सियासी समीकरण (political equation) बदल जाएगा और भाजपा (BJP) को बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद बन जाएगी।

 

वहीं राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि कांग्रेस जीतने की स्थिति में तो नहीं दिखाई दे रही है लेकिन वह SP और BSP जैसे दलों का कुछ वोट जरूर अपनी ओर खींच सकती है, जिससे बीजेपी को सीधा फायदा होगा। इसके अलावा ओवैसी जैसे नेता भी सत्ताविरोधी वोटों (anti-incumbency votes) का बंटवारा करेंगे। पूर्वांचल के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के अनुसार, अभी तक उत्तर प्रदेश चुनाव में किसी अन्य राजनीतिक दल से चुनावी गठबंधन होने की कोई संभावना नहीं बनी है। ऐसे में ज्यादा संभावना इसी बात की है कि पार्टी अकेले दम पर ही उत्तर प्रदेश के चुनाव में उतरेगी और बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेगी।

 

साथ ही उन्होंने कहा कि यदि समाजवादी पार्टी (SP) के साथ चुनाव लड़कर भी केवल सात सीटें लानी हैं, तो इससे ज्यादा अच्छा है कि चुनाव लड़कर इसी बहाने अपने कार्यकर्ताओं को मजबूत किया जाए। उन्होंने कहा कि पार्टी के ज्यादातर नेता-कार्यकर्ता अब दूसरे दलों की बैसाखी से हटकर अपने बूते पर लड़ाई लड़ने के पक्ष में हैं। इसका परिणाम चाहे जो भी हो। लेकिन क्या कांग्रेस के अकेले लड़ने से चुनाव के चतुष्कोणीय होने और इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलने की उम्मीद नहीं है? इस सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल नहीं है।

 

बता दें कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) ने प्रचंड बहुमत के साथ 311 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन के बावजूद महज 54 सीटें जीत पाईं थीं। ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ के नारे के साथ चुनावी मैदान में कूदे राहुल और अखिलेश का यह साथ करारी हार के बाद अधिक दिनों तक नहीं टिका। वहीं 019 लोकसभा चुनाव में बसपा से पुरानी दुश्मनी भुलाकर साइकिल पर हाथी को बिठाने का अखिलेश का प्रयोग सफल नहीं रहा। ऐसे में बुआ और भतीजे का भी साथ एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने के साथ खत्म हो गया।

 

कांग्रेस की मजबूती से सपा-बसपा के वोट बैंक पर पड़ेगा असर

लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद यूपी सरकार ने केवल प्रियंका गांधी को ही घटनास्थल तक जाने की अनुमति दी थी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को प्रशासन ने उनके घर पर ही नजरबंद कर दिया था तो बसपा का कोई बड़ा नेता भी घटनास्थल तक नहीं पहुंच पाया। अखिलेश यादव ने इस पर आरोप लगाया था कि यूपी सरकार जानबूझकर कांग्रेस के मजबूत होने का रास्ता दे रही है, ताकि कांग्रेस मजबूत हो और विपक्षी वोटरों का बंटवारा हो और इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिले।

 

अखिलेश यादव की यह आशंका बिलकुल गलत भी नहीं है। माना जाता है कि भाजपा के पास ब्राह्मण, ओबीसी और दलित जातियों का एक ऐसा समूह है जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर उसके साथ जुड़ा हुआ है। फ्लोटिंग वोटरों को छोड़ दें तो विपरीत हालात के बाद भी भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक इस चुनाव में भी उसके पास बना रह सकता है।

 

वहीं, गैर-भाजपाई दलों के पास लगभग एक सामान वोट बैंक है। इनमें किसी भी एक दल के मजबूत होने से दूसरे के वोट बैंक पर असर पड़ने का खतरा हमेशा बरकरार रहता है। समाजवादी पार्टी के पास यादव वर्ग की अगुवाई वाले ओबीसी वर्ग का ठोस इन्टैक्ट वोट है तो उसके शेष वोटर फ्लोटिंग कैटेगरी के हैं जो समय के साथ अन्य दलों को जाते रहे हैं।

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