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नया दांव: गैर भाजपा-गैर कांग्रेसी दलों को एक मंच पर लाने में जुटे पवार, अलग-थलग न पड़ जाए कांग्रेस!

नई दिल्ली। कांग्रेस अपने नेतृत्व को लेकर लंबे समय से असमंजस से जूझ रही है तो दूसरी तरफ उसके तमाम सहयोगी दल भी अपनी अलग सियासी राह तलाश रहे हैं। पश्चिम बंगाल सहित देश के पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की मुहिम नए सिरे से शुरू हो सकती है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार गैर-बीजेपी-गैर कांग्रेसी दलों को एकजुट करने की कोशिशों में जुटे हैं, जिसका संकेत भी दिया है। पवार के अल्टरनेटिव प्रोग्रेसिव मंच के दांव से विपक्ष में कांग्रेस क्या अलग-थलग पड़ जाएगी?

शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि देश में इस समय एक तीसरे मोर्चे की जरूरत है और इसके लिए विभिन्न दलों से बातचीत भी हो रही है। उन्होंने कहा कि सीताराम येचुरी ने भी इसी बात की वकालत की है। वहीं, शिवसेना पहले ही शरद पवार की अगुवाई में विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रस्ताव रख चुकी है और अब टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी से लेकर सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी तक अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। हालांकि, शरद पवार ने यह भी कहा कि अभी तक तीसरे मोर्चे को लेकर कोई आकार नहीं दिया गया है।

शरद पवार ने कहा कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में केंद्रीय नेतृत्व की ओर से किए जा रहे हमलों को देखते हुए किसी भी डेमोक्रेटिक पार्टी को ममता बनर्जी का समर्थन करना चाहिए। साथ ही शरद पवार ने कहा कि कहा कि सीताराम येचुरी ने फोन पर कहा कि अल्टरनेटिव मंच बनाने की जरूरत है। इसके बारे में सोचिए। हम मिनिमम एडमिन प्रोग्राम बनाते हैं, इसलिए इसमें कोई कंट्राडिक्शन नहीं है। उन्होंने कहा कि कई नेता अल्टरनेटिव फ्रंट बनाने की बात कर चुके हैं और इसपर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। उन्होंने केरल को लेकर कहा कि वहां 40 साल से एलडीएफ है।

दरअसल, नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश काफी लंबे समय से चल रही है, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में तमाम क्षेत्रीय दल एकमंच पर आने को तैयार नहीं है। वहीं, अब एनसीपी चीफ शरद पवार गैर-कांग्रेसी विपक्षी दलों को साथ लाने की कवायद में जुट गए हैं, जिसके लिए सभी की निगाहें पश्चिम बंगाल सहित देश के पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के नतीजों पर टिकी है।

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में यूपीए के कई सहयोगी और विपक्षी दलों ने कांग्रेस की बजाय ममता बनर्जी को बिना शर्त समर्थन दिया है। इसमें सपा प्रमुख अखिलेश यादव, आरजेडी के तेजस्वी यादव, झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुखिया हेमंत सोरेन और एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सिर्फ समर्थन ही नहीं बल्कि ममता के लिए चुनाव प्रचार करने को तैयार हैं। माना जा रहा है कि पवार के प्रयास के चलते ही टीएमसी के साथ विपक्ष के ये दल साथ खड़े हुए हैं और चुनाव में प्रचार के लिए व्यापक रणनीति बनाई है।

महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना तो शरद पवार के नेतृत्व में विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का सुझाव पहले ही दे चुकी है। शिवसेना ने अपने मुख्यपत्र सामना में बकायदा संपादकीय लिखकर कहा था कि राहुल गांधी मेहनत तो कर रहे हैं, लेकिन अभी भी उनके नेतृत्व में कमी है। साथ ही यूपीए में गड़बड़ है और विपक्ष को एकजुट करने के लिए नेतृत्व की जरूरत है। ऐसे में फिलहाल शरद पवार ही यूपीए में एकलौते नेता हैं, जिनके अनुभव का लाभ पीएम मोदी भी लेते हैं। ऐसे में शरद पवार यूपीए की अगुवाई करते हैं तो विपक्ष को एक मजबूत ताकत मिलेगी।

वहीं, पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम ममता बनर्जी के बीच सियासी जंग होती नजर आ रही है। ऐसे में बीजेपी विरोधी दलों को ममता के समर्थन में खड़े होने की बात टीएमसी की ओर से कही गई है। टीएमसी चाहती है कि चुनाव के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ एक मोर्चा बने, जिसका अपना एजेंडा और कार्ययोजना हो। इसी रणनीति के तहत शरद पवार की ओर से ममता की पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने के लिए रूप रेखा तैयार की गई है। इसी के बाद आरजेडी, सपा, जेएमएम और एनसीपी ममता के समर्थन पर प्रचार करने के लिए रजामंद हुए हैं।

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही विपक्षी दलों को एक मंच लाने की कवायद की जाती रही है। गैर बीजेपी-गैर कांग्रेस दलों को इकट्ठा करने की कोशिश है क्योंकि कई क्षेत्रीय दल कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करने को लेकर सहमत नहीं हैं। इसके पीछे वजह यह है कि कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का मुकाबला कांग्रेस से है और वो दल चाहते हैं कि विपक्षी एकता का चेहरा गैर-कांग्रेसी हो। केरल में कांग्रेस और लेफ्ट के बीच चुनावी जंग है। ऐसे में लेफ्ट कतई पर कांग्रेस के साथ नहीं खड़ा होना चाह रहा है। इसी तरह से यूपी में कांग्रेस और सपा आमने-सामने हैं, जो एक साथ नहीं आना चाहते हैं। अखिलेश यादव साफ कह चुके हैं कि 2022 में कांग्रेस सहित किसी भी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। वहीं, मायावती अक्सर कांग्रेस से दूरी बनाकर रखती हैं।

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