Skip to content
May 24, 2022
Trending Tags
कांग्रेस भाजपा भारत विधानसभा चुनाव उत्तरप्रदेश
Webkhabar

Webkhabar

Daily Hindi News

  • ताज़ा ख़बर
  • प्रमुख खबरें
  • मध्यप्रदेश
    • भोपाल
    • इंदौर
    • ग्वालियर
    • उज्जैन
    • मंदसौर
    • सागर
    • जबलपुर
    • रतलाम
    • रीवा
    • सतना
    • खरगौन
    • खंडवा
  • निहितार्थ
  • सियासी तर्जुमा
  • नज़रिया
  • विश्लेषण
  • शख्सियत
  • लाइफ स्टाइल
    • हेल्थ
    • खाना खजाना
    • धर्म
    • ज्योतिष
    • गैजेट्स
  • मनोरंजन

नज़रिया

माँ यहां है तो वृद्धाश्रम में कौन है?

Posted 2 weeks Ago

यह शिवराज के लिए बड़ी चुनौती 

Posted 3 weeks Ago

आज भारत को जरूरत संत गाडगे महाराज जैसी विभूतियों की

Posted 3 months Ago

विश्लेषण

  • विश्लेषण
WebKhabar
Posted 6 days Ago

हार्दिक पटेल और भाजपा की दुविधा

  • विश्लेषण
रत्नाकर त्रिपाठी
Posted 5 months Ago

बापू की सोच पर भला कैसा संदेह?

  • विश्लेषण
WebKhabar
Posted 6 months Ago

‘आजाद’ हुए गुलाम, गैरों पर करम, अपनों पर सितम

मनोरंजन

“अजय देवगन” की बेटी नीसा का ऐसा चला जादू ??

Posted 1 hour Ago

कंगना इस फिल्म को लेकर हुई ट्रोल, कहा – इससे ज्यादा भीड़ तो जेसीबी को देखने आती है

Posted 2 hours Ago

अपनी इस मैनेजर के लिए प्रियंका चोपड़ा ने की सरप्राइज पार्टी प्लान

Posted 2 hours Ago

पूरी हुई सलमान खान की ये इच्छा

Posted 21 hours Ago

करण जौहर ने पत्रकार से कहा, मेरी शादी के बारे में भी तो पूछो

Posted 22 hours Ago

जब कियारा को गोद में लेकर भागे वरुण…

Posted 22 hours Ago

यूक्रेन के समर्थन में कांस में “नंगा प्रदर्शन”

Posted 1 day Ago

“धाकड़” कंगना रनौत हुई “फुस्स”

Posted 3 days Ago

कनॉट प्लेस पर इस लड़के का डांस देखकर थम गए लोगों के कदम…

Posted 3 days Ago

मध्यप्रदेश

  • मध्यप्रदेश
WebKhabar
Posted 16 hours Ago

शिवराज के निर्देश: जनता को हर दिन मिले पीने का पानी, जो भी करना पड़े वह करें

  • मध्यप्रदेश
WebKhabar
Posted 2 days Ago

शिवराज का संकल्प, मप्र में कोई भी गरीब इलाज से नहीं रहेगा वंचित

  • मध्यप्रदेश
WebKhabar
Posted 3 days Ago

कमलनाथ ने सरकार तो दिग्विजय ने सिंधिया पर इस तरह साधा निशाना

  • मध्यप्रदेश
WebKhabar
Posted 3 days Ago

बच्चों की खुशी की खातिर ठेला भी चलाएंगे शिवराज

  • Home
  • नज़रिया

इस दुर्भाग्य को झेलने का कोई विकल्प नहीं  

Posted 4 months Ago
रत्नाकर त्रिपाठी
राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (national film development for) (एनएफडीसी) (nfdc)केंद्र सरकार की एजेंसी है। इसने बड़ी संख्या में फिल्मों के लिए वित्तीय तथा अन्य  सहायता प्रदान की, किन्तु जनजातीय चरित्रों के देश के लिए योगदान को यह एजेंसी भी कमोबेश पूरी तरह नजरंदाज ही करती रही।

इसे “बड़े परदे की बड़ी कंजूसी” कह सकते हैं। या फिर इसको “बड़े परदे की छोटी सोच” की संज्ञा दी जा सकती है। बात यह है कि हिंदी सिनेमा जगत में जनजातीय समुदाय (tribal community) के महान  चरित्रों को सतत रूप से उपेक्षा का दंश झेलना पड़ रहा है। यूं भी बॉलीवुड (bollywood) की बीते लंबे समय की जो सोच है, उसमें ऐसे चरित्रों की वहां उपेक्षा के अलावा और कोई अपेक्षा भी  नहीं की जा सकती है। दुर्भाग्य यह कि इसी हिंदी सिनेमा जगत में विदेशी चरित्र रॉबिन हुड (robin hood)को लेकर भी चित्र बना दिए गये, किंतु भारतीय आदिवासी विभूतियों को सैल्यूलाइड पर महत्व तो दूर, प्रायः कोई स्थान तक प्रदान नहीं किया गया है। कारण स्पष्ट है कि ऐसे नाम अपने बहुत उल्लेखनीय काम के बावजूद फिल्म निर्माताओं तथा वितरकों के लिए “बिकाऊ माल” की श्रेणी में नहीं आ सके हैं। इसलिए उन पर पैसा लगाकर कोई घाटे का सौदा करना नहीं चाहता है।

यह स्थिति दुर्भाग्यजनक है। क्योंकि भारतीय जनमानस पर सिनेमा का सबसे अधिक असर होता है। यदि इस माध्यम में जनजातीय गौरवों को स्थान दिया जाता तो बहुत अधिक आसानी से देश की बहुत बड़ी आबादी को आदिवासी समाज के यशस्वी अतीत तथा देश एवं धर्म की रक्षा के लिए  उनके योगदान से अवगत कराया जा सकता था। लेकिन ग्लैमर की भेड़चाल में यह संभव नहीं हो पाया। इसलिए यह सोचकर ही संतोष कर लेना चाहिए कि बॉलीवुड ऐसे महान चरित्रों को अपनी सोच तथा कर्म के दायरे से बाहर रखे हुए है। इस बात को दो उदाहरणों से समझिये। बात सन 1982 की है। तब रिचर्ड एटेनबरो (richard Attenborough)की फिल्म “गांधी” (gandhi)भारत में रिलीज की गयी थी। तब एक स्तंभकार ने लेखन के माध्यम से सवाल उठाया कि आखिर क्या वजह है कि महात्मा गांधी (mahatma gandhi) से जुड़े इतने सशक्त और प्रभावी चित्र का निर्माण एक विदेशी ने किया? क्यों इससे  पहले गांधी के देश  में ही सिल्वर स्क्रीन पर उन्हें ऐसी किसी फिल्म के माध्यम से स्थान नहीं मिल सका? उन्हीं स्तंभकार ने बड़े-ही चुटीले अंदाज में इस सवाल का खुद ही जवाब भी लिखा था। उन्होंने लिखा कि यदि कोई भारतीय निर्माता गांधी पर फिल्म बनाता तो उसके  साथ यह समस्या होती कि वह बापू को किसके साथ रोमांस करते और पेड़ों के इर्द-गिर्द ठुमके लगाते हुए दिखाता? इस कटाक्ष के जरिये उन लेखक ने यह बताया था कि वस्तुतः हिंदी सिनेमा की रील पर सीधे-सादे गांधी के लिए कोई स्थान ही नहीं है। इसलिए यहां गांधी पर फिल्म बनाना मुनासिब नहीं समझा जाता है।

अब दूसरा उदाहरण। बात दो हजार के दशक के आसपास की है। बॉलीवुड में अचानक शहीद भगत सिंह (bhagat singh)जी पर फ़िल्में बनाने की होड़-सी मच गयी। लगभग एक ही समय पर अलग-अलग शीर्षकों से इस महान क्रांतिकारी पर चित्रों का निर्माण कर उन्हें प्रदर्शित कर दिया गया। लोग यह देखकर स्तब्ध थे कि इनमें से कुछ सिनेमा में भगत सिंह जी को आजादी के महानायक की बजाय एक रोमांटिक आदमी के रूप में अधिक प्रधानता के साथ चित्रित किया गया था। इन दो उदाहरणों के बाद बॉलीवुड का ऐसा चरित्र देखकर इस बात से संतोष कर लिया जाना चाहिए कि उसके कर्ता धर्ता जनजातीय नायक-नायिकाओं की रियल लाइफ को अपने सर्वनाशी तरीके से रील लाइफ में परिवर्तित करने की बात नहीं सोचते हैं।

गलती केवल फिल्म जगत की नहीं है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (national film development for) (एनएफडीसी) (nfdc)केंद्र सरकार की एजेंसी है। इसने बड़ी संख्या में फिल्मों के लिए वित्तीय तथा अन्य  सहायता प्रदान की, किन्तु जनजातीय चरित्रों के देश के लिए योगदान को यह एजेंसी भी कमोबेश पूरी तरह नजरंदाज ही करती रही। जबकि इसी एजेंसी ने बड़ी संख्या में उन फिल्मों के निर्माण का काम किया, जिनमें से अधिकांश की पहचान केवल यह रही कि उनके निर्देशक के रूप में कोई बड़ा नाम इस्तेमाल किया गया। इससे उपजी विचित्र स्थिति को एक उदाहरण से समझा जा सकता है। एक समय भोपाल में राज्य सरकार ने एक फिल्म समारोह आयोजित किया। इसमें एक ख्यातिनाम निर्देशक की फिल्म भी प्रदर्शित हुई। स्क्रीनिंग के लिए ये निर्देशक महोदय भी प्रदर्शन स्थल पर उपस्थित थे। बड़े नाम के चक्कर में फिल्म को देखने भीड़ उमड़ी। लेकिन चित्र के समाप्त होते-होते उस टॉकीज में बमुश्किल डेढ़ दर्जन लोग बचे थे। उनमें भी एनएफडीसी और मध्यप्रदेश फिल्म विकास निगम का स्टाफ तथा वह निर्देशक ही शामिल थे। मध्यांतर में ही दर्शकों के चले जाने की वजह यह थी कि निर्देशक ने फिल्म को “आप बनाएं, आप ही समझें और आप ही देखें” वाली मनमानी सोच के साथ बना दिया था। एक पत्रकार के रूप में मैंने उन निर्देशक से फिल्म को लेकर दर्शकों की अरुचि पर सवाल पूछा तो उन्होंने पूरी अकड़ के साथ कहा, “मैं मास (भीड़) के लिए नहीं, क्लास के लिए फ़िल्में बनाता हूं। मीडिया या आम दर्शकों के लिए मेरी कोई जवाबदेही नहीं है।” तब मेरे साथ के एक पत्रकार ने कहा, “आपकी जवाबदेही कैसे नहीं बनती है? आप की इस फिल्म के लिए एनएफडीसी ने पैसा दिया। ये पैसा वो है, जो हम और हमारा परिवार सरकार को टैक्स के रूप में देता है। वह दर्शक भी यह कर अदा करता है, जिसे आप भीड़ बताकर खुद को श्रेष्ठ जताने की कोशिश कर रहे हैं।” निर्देशक महोदय अपना-सा मुंह लिए और बगैर कोई जवाब दिए वहां से खिसक लिए। क्यों नहीं  कभी एनएफडीसी ने ऐसी जवाबदेही तय करने की कोशिश की? क्यों ऐसा हुआ कि इस एजेंसी ने अपने पैसे से आदिवासी गौरवों को बड़े परदे पर स्थान दिलाने का शायद प्रयास तक नहींकिया? इनका उत्तर तलाशा जाना

चाहिए।  जी हां, मैं भी जानता हूं कि वर्ष 2012 में टंट्या  भील (tantra bhil) पर एक फिल्म बनी थी। लेकिन उसे शायद टॉकीज का मुंह देखना भी नसीब नहीं हुआ। बीच में मैंने सरदार भगत सिंह जी पर एक साथ बनी ढेरों फिल्मों की बात की थी। उससे जुड़ा एक घटनाक्रम है। जब भोपाल के समाचार पत्रों में अलग-अलग टॉकीजों द्वारा भगत सिंह से जुड़ी अपने-अपने यहां प्रदर्शित फिल्मों के विज्ञापन दिए जा रहे थे, तब एक टॉकीज में फिल्म “कुंवारी दुल्हन” चल रही थी। उस टॉकीज के विज्ञापन में लिखा “सारे भगत सिंह एक तरफ और कुंवारी दुल्हन एक तरफ…” घटना पुरानी है, लेकिन न जाने अतीत के कब से लेकर वर्तमान और आने वाले अनिश्चित समय तक यही टीस सालती रहेगी कि सारे असली नायक एक तरफ और नकली नायक एक तरफ। आदिवासी समाज की महान विभूतियों का देश के  लिए टिकाऊ योगदान रहा, लेकिन वो बॉलीवुड के लिए बिकाऊ नहीं रहे, इस दुर्भाग्य को ढोने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प भी तो नहीं है।

Author

  • रत्नाकर त्रिपाठी

    रत्नाकर त्रिपाठी बीते 35 वर्ष से लगातार पत्रकारिता तथा लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में जन्मे एवं पले-बढ़े रत्नाकर ने इसी प्रदेश को अपनी कर्मभूमि भी बनाया है। वह दैनिक भास्कर और पत्रिका सहित ईटीवी (वर्तमान नाम न्यूज 18) राष्ट्रीय हिंदी दैनिक 'राष्ट्रीय सहारा' एवं पीपुल्स समाचार में भी महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दे चुके हैं। त्रिपाठी को लेखन की विशिष्ट शैली के लिए खास रूप से पहचाना जाता है। उन्हें आलेख सहित कहानी, कविता, गजल, व्यंग्य और राजनीतिक तथा सामाजिक विषयों के समीक्षात्मक लेखन में भी महारत हासिल है। उनके लेखन में हिन्दू सहित उर्दू और अंग्रेजी के कुशल संतुलन की विशिष्ट शैली काफी सराही जाती है। संप्रति में त्रिपाठी मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश के न्यूज चैनल 'अनादि टीवी' के न्यूज हेड के तौर पर कार्यरत हैं।

    View all posts

In नज़रियाIn गांधी , जनजातीय समुदाय , भारतीय जनमानस , महात्मा गांधी , रिचर्ड एटेनबरो

Post navigation

पंचायतों को अधिकार लेने और देने का खेल खेल रही शिवराज सरकार: कांग्रेस का बड़ा आरोप
सिद्धू को झटका: चन्नी होंगे पंजाब का चेहरा, सोनू सूद का वीडियो जारी कर कांग्रेस ने दिया संदेश

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

यह भी पढ़े ...

  • नज़रिया
रत्नाकर त्रिपाठी
Posted 10 months Ago

इस नपुंसकता को श्रद्धापूर्ण नमन

  • नज़रिया
वैभव गुप्ता
Posted 2 weeks Ago

माँ यहां है तो वृद्धाश्रम में कौन है?

  • नज़रिया
WebKhabar
Posted 11 months Ago

कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच पर सवालों की आंच

  • नज़रिया
WebKhabar
Posted 1 year Ago

उत्तराखंड का सियासी संकट: सीएम बदलने से खत्म नहीं होगा संकट, हो सकते हैं बड़े बदलाव

संपादक- (प्रकाश भटनागर)

prakash

अन्य ख़बरें

  • अटपटी
  • कहानी
  • चटपटी
  • व्यंग्य
  • कार्टून

वेब ख़बर

  • होम
  • हमारे बारे में
  • संपादक के बारे में
  • विज्ञापन
  • संपर्क
© 2021 WebKhabar . All Right Reserved |