सतना का मामला: SC-ST के छात्रावासों में खाद्यान्न के लाले, तीन हजार से अधिक छात्र प्रभावित
जिले में अनुसूचित जाति- जनजाति के तकरीबन 80 छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं। इन छात्रावासों को हर माह सरकार की ओर से छात्र संख्या के अनुसार खाद्यान्न का आवंटन किया जाता है। अब तक खाद्यान्न का आवंटन नियमित था जिसके चलते छात्रावास संचालन सुचारू रूप से चल रहा था लेकिन सितम्बर माह से इसमें बाधा आने लगी।
सतना। एक ओर जहां मप्र सरकार अनुसूचित जाति- जनजाति के शैक्षणिक व सामाजिक उत्थान के लिए हर साल करोड़ों रुपए की योजनाएं संचालित कर उन्हें सशक्त बनाने की कवायदो में जुटी हुई है, तो दूसरी ओर सरकार द्वारा तय की गई व्यवस्थाओं के बेपटरी हो जाने से इस वर्ग के छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। खाद्यान्न आवंटित न होेने से जिले में संचालित तकरीबन 80 छात्रावास के छात्र मुसीबत में हैं। छात्रों पर यह मुसीबत तकनीकी गड़बड़ी के कारण सामने आई है, जिसको लेकर न केवल छात्र परेशान हैं बल्कि छात्रावास अधीक्षकों को भी छात्रावास संचालन में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, जिले में अनुसूचित जाति- जनजाति के तकरीबन 80 छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं। इन छात्रावासों को हर माह सरकार की ओर से छात्र संख्या के अनुसार खाद्यान्न का आवंटन किया जाता है। अब तक खाद्यान्न का आवंटन नियमित था जिसके चलते छात्रावास संचालन सुचारू रूप से चल रहा था लेकिन सितम्बर माह से इसमें बाधा आने लगी। कई छात्रावासों को सितम्बर माह से खाद्यान्न आवंटित नहीं हुआ तो 90 फीसदी से अधिक ऐसे छात्रावास हैं जिन्हें नवम्बर माह के बाद खाद्यान्न आवंटन नहीं मिला। इस दौरान छात्रावास अधीक्षकों ने जनजाति कार्य विभाग एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग को जानकारी देने के साथ-साथ खाद्यान्न आवंटन का जिम्मा सम्हालने वाले खाद्यान्न अधिकारियों को भी इस समस्या से अवगत कराया लेकिन समस्या का निदान नही हो सका।
क्यों खड़ी हुई समस्या
विभागीय जानकारों के अनुसार खाद्यान्न आवंटन की यह प्रक्रिया आनलाइन- आफलाइन के चक्कर में बाधित हुई। बताया जाता है कि कोविड संक्रमणकाल के दौरान खाद्यान्न का नियमित आवंटन तो हुआ लेकिन उस दौरान आनलाइन प्रक्रिया में शिथिलता दी गई। नतीजतन ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश दुकानदारों ने आफलाइन खाद्यान्न का वितरण कर दिया। जब तक आफलाइन प्रक्रिया चलती रही तब तक तो कोई समस्या खड़ी नहीं हुई और खाद्यान्न निर्बाध आवंटित होता रहा लेकिन कोविड संक्रमण काल के बाद आनलाइन प्रक्रिया शुरू होते ही आफलाइन प्रक्रिया के दौरान वितरित खाद्यान्न खाद्य विभाग के पोर्टल में उस वितरित खाद्यान्न को बैलेंस बताने लगा जो संक्रमण काल के दौरान आॅफलाइन बांटा गया था। विभागीय जानकारों के अनुसार 90 फीसदी से अधिक खाद्यान्न दुकानों के ब्यौरे में पोर्टल कई क्विंटल खाद्यान्न बैलेंस बता रहा है जबकि दुकानों में खाद्यान्न के नाम पर एक दाना भी नहीं है।
5 से 10 फीसदी छात्रावासों को आवंटन
विभाग के तकनीकी जानकार बताते हैं कि चंद पढ़े-लिखे व तकनीकी रूप से दक्ष दुकानदारों ने अपने स्टाक व डिस्ट्रीब्यूशन का ब्यौरा माहवार पोर्टल में फीड किया है। ऐसे दुकानदारों के जरिए आवंटित होने वाला खाद्यान्न बराबर मिल रहा है लेकिन ऐसे दुकानदारों व स्व सहायता समूहों की संख्या 5 से 10 फीसदी ही है। यदि जिला मुख्यालय में देखें तो उमेश सहकारी महिला उद्योग समिति ने पोर्टल में बराबर फीडिंग की तो इस समूह के अंतर्गत संचालित होने वाले लगभग 5 छात्रावासों को खाद्यान्न आवंटित हो रहा है। जाहिर है कि गलती दुकानदारों ने की है और उसका खामियाजा अनुसूचित जाति- जनजाति छात्रावास के छात्र भुगत रहे हैं।