देश के लिए लड़ने वाले शेख अब्दुल अब अपना वजूद बचाने लड़ रहे जंग, जिंगदी की गाड़ी चलाने चला रहे हैं आटों रिक्शा

हैदराबाद। कभी देश के लिए जंग लड़ने वाले शेख अब्दुल करीम अब अपना वजूद बचाने की जंग लड़ रहें हैं। सीने पर पदक है लेकिन जेब खाली है। देश की रक्षा के लिए हथियार चलाने वाले हाथ अब जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए लिए आटो रिक्शा का हैंडल संभालते हैं। शेख अब्दुल करीम अब 71 वर्ष के है। उन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया था। तब उनकी तैनाती लाहौर बॉर्डर पर थी। यह वही क्षेत्र है जहां 1965 में पाकिस्तान ने भारत के 10 से 15 किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था और इसी क्षेत्र में हवलदार अब्दुल हमीद ने कई पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया था। इस क्षेत्र में 1971 युद्ध के दौरान भारत ने जबरदस्त पराक्रम दिखाया था।
तब पाकिस्तान के क्षेत्र में कई किलोमीटर तक अंदर घुस कर भारतीय सेना ने कार्रवाई की थी। उस वक्त शेख अब्दुल करीम ओआरए आॅपरेटर के तौर पर अग्रिम मोर्चे पर तैनात थे। उन्हें 1971 युद्ध में विशेष सेवा पुरस्कार के अलावा सेना मेडल से भी नवाजा गया जिस पर उनका नाम अंकित है। उन्होंने मास्टर आॅफ ट्रेनिंग के तौर पर कई सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षित भी किया। शेख अब्दुल करीम के पिता शेख फरीद भी सेना में थे, उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए करीम ने सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में 1964 में बॉयज आर्मी को ज्वाइन किया। बेंगलुरु में तीन साल की ट्रेनिंग के बाद करीम की पोस्टिंग गोलकोंडा आर्टिलरी में गनर के तौर पर हुई। सिकंदराबाद में पोस्टिंग के बाद करीम को फिरोजपुर बॉर्डर पर भेजा गया।
1971 की जंग के बाद करीम ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। शेख अब्दुल करीम को तेलंगाना राज्य के गोलपाली क्षेत्र में 5 एकड़ जमीन दी गई थी। यह जमीन कुछ समय तक उनके कब्जे और नियंत्रण में रही लेकिन बाद में उस पर दूसरों ने कब्जा कर लिया। इसकी शिकायत शेख अब्दुल करीम ने संबंधित अधिकारियों से की, जिस पर उन्हें उसी सर्वेक्षण संख्या पर पांच एकड़ जमीन और दी गई। लेकिन इस जमीन के दस्तावेज अब तक तैयार नहीं हुए है।
छह संतान के पिता शेख अब्दुल करीम को पेंशन नहीं मिलती। वे हैदराबाद में चारमीनार से पांच किलोमीटर दूर फिश बिल्डिंग पिलर नंबर 244 के पास एक छोटे से किराए के कमरे पत्नी के साथ रहते हैं। उम्र के इस पड़ाव में भी आॅटो रिक्शा चला कर घर का खर्च निकालते हैं। कोरोना की वजह से लॉकडाउन के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई। शेख अब्दुल करीम के मुताबिक सेना तक उनकी दिक्कत पहुंची तो उप-क्षेत्र हैदराबाद के वरिष्ठ सैन्य अधिकारी से उन्हें फोन आया और उन्हें उनके कार्यालय में बुलाया गया है।
करीम ने केंद्र और राज्य सरकारों से पूर्व सैनिकों की मदद के लिए पुख्ता इंतजाम करने का आग्रह किया है। उन्होंने तेलंगाना सरकार से मकान उपलब्ध कराने का आग्रह भी किया है। तेलंगाना सरकार ने कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों के लिए आवास उपलब्ध कराने की योजना शुरू की है। बहरहाल, शेख अब्दुल करीम पूरे जज्बे के साथ जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं। 71 साल की उम्र में भी वे कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उनका संकल्प कम नहीं हुआ है। उनकी एक प्रतिभा और भी है और वो है शायरी करना। वे फिरोज हैदराबादी के उपनाम से लिखते हैं। करीम का कहना है कि उन्हें सेना और सरकार पर पूरा भरोसा है, और जल्दी ही उनकी दिक्कतें दूर होंगी।