सियासी तर्जुमा
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ज्योति में रोशनी ढूंढ रहे हैं मधु

नई राह तलाश रहे हैं अब महादेव

विकास पुरुष मधु भैया उर्फ महादेव वर्मा अपनी राजनीति के विकास की नई राह तलाश रहे हैं। यूँ मधु भैया राजनीति के बड़े मुसाफिर हैं । कभी इस डाल पर कभी उस डाल पर। कृष्ण मुरारी मोघे की छत्र छाया में राजनीति शुरू की और बीच में लंबे अरसे तक कैलाश विजयवर्गीय के खाते में भी दर्ज रहे। जिस आईडीए से उनकी राजनीति चमकी है वो तभी की है जब उनका पढ़ाव विजयवर्गीय के यहाँ था। कुछ सालों बाद उनका मन मचला और वे ताई के यहाँ पाए जाने लगे। ताई यूँ निर्गुट हैं लेकिन कोई आ जाए तो शरण दे देती हैं।

खैर, मुख्यमंत्री की पसंद तो वे हैं हीं लेकिन जब से मेयर का टिकट किनारे पर आकर कटा है तब से उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि अब किस डाल पर बैठे। ताजा खबर यह है कि व्हाया तुलसी सिलावट मधु भैया ने ज्योतिरादित्य सिंधिया में भी अपनी रोशनी तलाशना शुरू कर दिया है। तुलसी भैया की डिक्शनरी में वैसे भी ना तो है ही नहीं सो ले लिया हाथ में हाथ। अब देखना ये है कि ये पढ़ाव स्थायी होता है या आवागमन की राजनीति चलती रहेगी। राऊ के टिकट तक तो इंतजार कर ही लेते हैं। वैसे मधु भैया को साथ रखना किसी भी नेता के लिए घाटे का सौदा नहीं है। काम के हैं और ज्यादा राजनीति नहीं करते हैं।

कौनऊ फिरकी ले रहा है जी

पवन जैन तेज तर्रार अफसर थे। जनसुनवाई की जान भी थे लेकिन जैसे-जैसे कुर्सी मजबूत हो रही थी, वैसे-वैसे तेवर भी मजबूत होते जा रहे थे। इसी तेवर में गलती से तीन-पाँच हो गई हो गई। सितारे खराब थे कि सीएम के हत्थे चढ़ गए। यहाँ तब भी ठीक था लेकिन अब फिरकी लेने वाले मोहन जोदाड़ो की खुदाई में लग गए हैं। कोई पुरानी कॉलोनी की कहानी निकाल रहा है तो कोई धोखाधड़ी के मामलों की। कुछ शुभचिंतको तो सरकार की छवि की इतनी चिंता है कि रायता यहाँ तक फैला दिया है कि आपराधिक केस दर्ज होने के बाद भी आईएएस अवार्ड कैसे दे दिया। क्या होगा, क्या नहीं होगा इसके उपसंहार का इंतजार करें पर जिस पवन वैग से उन पर कार्रवाई हुई, उससे दूसरे अफसरों की रफ्तार थोड़ी कम जरूर हो जाएगी।

ताई की भागदौड़ के मायने

सुमित्रा महाजन यानी शहर भर की ताई अपनी सु्स्त पड़ी राजनीति को इन दिनों मेट्रो की गति से दौड़ा रही हैं। ये रफ्तार भी उन्होंने मेट्रो के ट्रेक पर पकड़ रखी है। जो लोग ताई को आराम की मुद्रा में मानकर चल रहे थे उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि ताई मेट्रो के मुहाने पर आ खड़ी हुईं। अब मेट्रो न आगे बढ़ रही है न पीछे खिसक सकती है। जबसे मेट्रो प्रोजेक्ट आया तब से इंदौर के सारे नेता जान रहे थे कि ये किधर से आएगी और किधर कू जाएगी। तब कोई नहीं बोला। राजवाड़ा तब भी था जब प्रोजेक्ट आया और आगे भी रहेगा। अब जब मेट्रो के टीन-कनस्तर तन गए तो लाल झंडी बताने से क्या फायदा। वैसे कहने वाले कह रहे हैं-बात कुछ और है। अब ये कुछ क्या है हमें तो नहीं पता। आपको पता हो तो बताओ और पुण्य कमाओ। हमें तो
ताई की राजनीति में कभी खोट नहीं दिखी।

जहाँ से चले थे

नगर निगम की नई परिषद बने कुछ महीने तो गुजर ही गए हैं लेकिन मौसम वैसा बन नहीं रहा जैसे दावे किए गए थे…किए जा रहे हैं…। जैसा कि होता है वैसा ही हो रहा है। होता यह है कि अफसर हर नए मेयर को, नए पार्षद को शुरू में नापते-तौलते हैं, फिर हिसाब-किताब लगाते हैं कि इनकी सुनी तो क्या होगा नहीं सुनी तो कितना नुकसान होगा। लाभ-हानि का गणित लगाने के बाद वे
अपनी कदम ताल तय कर लेते हैं फिर कोई कुछ भी कहे। तो ताजा हिसाब-किताब यह है कि अधिकारियों ने कुछ को तोल लिया है । जिनका वजन ज्यादा है उनकी बात को वजन दे रहे हैं बाकी का पल्ला हवा में झूल रहा है। जिन्हें वजन दे रहे हैं उनकी संख्या दस भी नहीं है, बोले तो..बाकी 75 पार्षदों को तलाश है अपने पार्षद होने की। अब सबकी नजर मेयर पुष्यमित्र भार्गव पर है। वैसे तोल-मोल वे भी कर रहे हैं। जैसे ही तुलन-पत्र तैयार होगा उनके तेवर देखने लायक होंगे, ऐसा उनको जानने वाले कह रहे हैं। हम इंतजार करते हैं।

कुछ सुना क्या…

दिग्गिवजय सिंह, अशोक गेहलोत तक तो तार भिड़ा ही लिए थे। शशि थरूर को भी शीशे में उतार ही लेते है पर खड़गे अन्ना तो ठेठ साऊथ के हैं। सूझ नहीं रहा कौन सी राह पकड़ें। ऐसा
कांग्रेसी कह रहे हैं। हम तो चुप ही हैं।

ललित उपमन्यु

वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक l 37 वर्षों से पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय l नई दुनिया, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, दैनिक जागरण, दबंग दुनिया, और फ्री प्रेस आदि समाचार पत्रों में प्रतिष्ठित पदों पर कार्य l देश के अधिकांश प्रतिष्ठित अखबारों में लेख, कहानी, व्यंग्य का भी प्रकाशन l

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