विश्लेषण

चुनाव के पहले का ये बदलाव नया नहीं भाजपा में 

अगले विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (BJP) ने मुख्यमंत्री का बदलने का फ़ैसला पहली बार नहीं किया, बल्कि पिछले छह महीनों में पार्टी ने चार राज्यों में पांच चेहरे बदले हैं।
गुजरात में विजय रूपाणी(Vijay Rupani), कर्नाटक में बी एस येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) और उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) और तीरथ सिंह (Tirath Singh) को बदला गया तो असम (Assam) में सर्वानंद सोनोवाल (Sarvananad Sonowal) के बजाय चुनावों के बाद हिमंत बिस्वा सरमा (Himant Biswa Sarma) को मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला लिया गया।
गुजरात में तो नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के अलावा हर बार चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला गया। मोदी के अलावा किसी मुख्यमंत्री ने पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया। राज्य में भाजपा ने 1995 में पहली बार सरकार बनाई थी, तब  केशूभाई पटेल (Keshubhai Patel) भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बनाए गए थे, लेकिन पटेल के ख़िलाफ अंसतोष होने से पार्टी को अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा और सिर्फ़ 221 दिन बाद ही सुरेश मेहता (Suresh Mehta) ने सत्ता संभाली। उस वक्त  शंकर सिंह वाघेला (Shankar Singh Vaghela) गुट वाघेला को मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहा था, लेकिन पार्टी ने उनकी बजाय  मेहता को यह ज़िम्मेदारी सौंपी, यह ज़्यादा दिन नहीं चल सका। एक साल के भीतर ही  वाघेला पार्टी से अलग हो गए, पार्टी की सरकार गिर गई। मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के खजुराहो (Khajuraho) में वाघेला ने अपने समर्थकों के साथ अपनी ताकत दिखाई, फिर वाघेला मुख्यमंत्री बन तो गए, लेकिन वह ज़्यादा नहीं रह नहीं पाए।
वाघेला की सरकार गिरने के बाद प्रदेश में 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए तो भाजपा को 117 सीटों से जीत मिली और केशूभाई पटेल (Keshubhai Patel) फिर मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन इस बार भी केशूभाई पटेल अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। गुजरात में भूकंप के दौरान सरकार के कमज़ोर प्रदर्शन के बाद उनके खिलाफ नाराज़गी बढ़ी। केन्द्रीय नेतृत्व ने तब मोदी को सात अक्टूबर 2001 को मुख्यमंत्री पद जिम्मेदारी सौंपी। इसके बाद 2002, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव श्री मोदी के नेतृत्व में ही लड़े गए। फिर 2014 में श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वहां श्रीमती आनंदी बेन पटेल (Anandi Ben Patel) को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उन्हें भी अगला चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल और 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले श्रीमती बेन की जगह अगस्त 2016 में विजय रूपाणी को ज़िम्मेदारी मिली। वर्ष 2017 के चुनाव भाजपा ने  रूपाणी के नेतृत्व में लड़ा ,लेकिन उसे सिर्फ 99 सीटें मिली। राज्य की 182 सीटों की विधानसभा में यह अब तक का भाजपा का सबसे कमजोर प्रदर्शन था। वर्ष 2019 और 2020 में कोविड के दौरान रुपाणी सरकार के कामकाज की खासी आलोचना हुई और 2022 के चुनावों से पहले भाजपा ने रुपाणी को हटाने का फ़ैसला किया।

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