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करारी हार पर अखिलेश की चुप्पी से शुरू हुई कलह, सपा गठबंधन में शामिल नेता एक-दूसरे पर लगा रहे यह आरोप

लखनऊ। यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं. भाजपा गठबंधन ने 273 तो सपा गठबंधन ने 125 सीटें जीत ली हैं. साफ है कि भाजपा प्रचंड बहुमत से चुनाव जीत गई है। लेकिन इस बार कहा जा रहा था कि समाजवादी पार्टी को लेकर चुनावी माहौल ठीक है। इसके वावजूद सपा भाजपा से करीब 150 सीटों के अंतर से हार गई। गठबंधन को मिली करारी हार के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अब तक कोई बड़ा बयान नहीं दिया है। जिसको लेकर गठबंधन में शामिल दल एक-दूसरे पर दोष मढ़ने लगे हैं।

इस चुनाव में सपा गठबंधन के साथ रहे महान दल के प्रमुख केशव देव मौर्य ने भी हार के बाद उन नेताओं पर सवाल उठाए हैं जो जीत के बड़े-बड़े दावे कर रहे, लेकिन नतीजों ने उनकी पोल खोल दी। मौर्य ने कहा, ”गठबंधन के कुछ नेता बहुत हवा बना रहे थे। उनके पास खुद अपना वोट नहीं था, लेकिन वह दावे करते रहे। वे खुद तो अति आत्मविश्वास में थे ही अखिलेश यादव को भी इसी में रखा।” जब उनसे पूछा गया कि किसकी ओर इशारा कर रहे हैं तो मौर्य ने कहा कि इसमें गठबंधन के सभी साथी शामिल हैं।

वहीं अखिलेश यादव के चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने संगठन में खामियों को हार के लिए जिम्मेदार बताकर इशारों में भतीजे पर निशाना साध दिया है। एक ही सीट मिलने को लेकर चुनाव के बीच अपना दर्द जाहिर कर चुके शिवपाल यादव ने कहा, ”अखिलेश यादव के नेतृत्व में गठबंधन बना, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिला है, तो इसमें कहीं ना कहीं खामियां रही हैं। कहीं ना कहीं कुछ खामियां रह जाती हैं, उस पर हम सभी लोगों को चिंतन करना है। समीक्षा करनी है। फिर आगे काम करेंगे। चुनाव हमेशा संगठन के बल पर ही जीता जाता है, तो कहीं ना कहीं संगठन में खामियां हो जाती हैं।

हालांकि इस इस बीच बड़ी खबर यह आ रही है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव चाचा शिवपाल यादव को बड़ी जिम्मेदारी दे सकते हैं। शिवपाल को विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी मिल सकती है। अगर ऐसा होता है तो ये बड़ा फैसला होगा क्योंकि 2017 के चुनाव से पहले चाचा-भतीजे में तलवार खिंच गई थी और लगातार पांच साल दूरियां रहीं। 2022 के चुनाव से ठीक पहले दोनों साथ तो आए तो लेकिन शिवपाल एक तरह से हाशिये पर ही रहे।





राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस हार को पचाकर सभी गठबंधन साथियों का साथ बने रहना मुश्किल है। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में जब हार पर मंथन होगी तो गठबंधन के साथी एक दूसरे पर दोष मढ़ेंगे और ऐसे में बिखराव हो सकता है। अखिलेश यादव की चुप्पी से संकट और बढ़ सकता है। वहीं, सपा के कुछ नेता अब दबी जुबान में कहने लगे हैं कि कुछ नेताओं के बड़बोलेपन ने नुकसान पहुंचाया। 2017 और 2019 में सपा ने कांग्रेस और बसपा के साथ गठबंधन किया था, लेकिन हार के तुरंत बाद गठबंधन की गांठें खुल गईं। ऐसे में इस बार भी पुराने अंजाम से इनकार नहीं किया जा सकता है।

बता दें कि समाजवादी पार्टी की कमान फिलहाल पूरी तरह से अखिलेश यादव के हाथों में है। चुनाव कैंपेन में वो भी अकेले ही नजर आए. कहा जाता है कि टिकट बंटवारे में भी सिर्फ अखिलेश ने अंतिम निर्णय लिए. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि सपा का पूरा चुनाव अखिलेश यादव के हाथों में ही था। लिहाजा, अब जब पार्टी को उम्मीद के मुताबिक, नतीजे नहीं मिले हैं तो सवाल भी उनकी तरफ ही उठाए जा रहे हैं।

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