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क्या भारत आकर आलसी हो गए नामीबियायी-अफ्रीकी चीते!, शिकार के लिए भरपूर चीतल-सांभर, फिर भी परोसे जा रहे बकरे

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श्योपुर। क्या नामीबिया और अफ्रीका से आने के बाद कूनो नेशनल पार्क में की जा रही आवभगत से चीते इतने आलसी हो गए है कि वह अपने पेट भरने के लिए शिकार भी नहीं कर रहे हैं! इसके संकेत कूनो प्रबंधन के उस निर्णय से मिल रहा है जिसके तहत चीतों के शिकार करने के लिए कूनो में जिंदा बकरे छोड़े जा रहे हैं। प्रश्न यह उठ रहा है कि जब चीतों के लिए मुफीद माने जाने वाले शीतल, सांभर जैसे जानवर पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैंख् जिनका शिकार चीते कर आसानी से पेट भर सकते हैं तो फिर कूनो प्रबंधन को चीतों के शिकार के लिए कूनो में बकरा छोड़ने की क्या जरूरत आन पड़ी?

17 सिंतबर 2022 को जब कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाकर आठ चीते छोड़े गए थे तब चीतों को खुले वन में छोड़े जाने के बजाए बाड़े में बंद रखा था और उनके खाने के लिए भैंसे का गोश्त भरोसा जा रहा था। भैंसे का गोश्त खाकर शायद चीते खुले वन में दौड़ते हिरण और दूसरे शाकाहारी जीवो का शिकार करना ही भूल गए, लंबे समय तक बाड़ों में रहने के कारण शायद चीतों को शिकार के बजाय कटा हुआ मांस आसानी से खाने की आदत पड़ गई जिसके चलते वह अब जंगल में दौड़ रहे शिकार लायक जीवों पर हमला तक नहीं कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में चीतों को भूखे मरने से बचाने और उन्हें कटे मास से खाने की आदत से छुटकारा दिलाकर शिकार को प्रेरित करने के लिए कूनो प्रबंधन जहां पहले चीतों को भैंसे का गोश्त परोस रहा था वहीं अब जिंदा बकरों को उनके आगे भेज रहा है रोजाना 5 से 7 बकरे कूनो में चीतों के लिए छोड़े जा रहे हैं। जंगल के वातावरण से अनजान यह बकरे चीतों का आसान शिकार बन रहे हैं।

तीन चीते नहीं दिखा रहे बकरों में रुचि, खा रहे कटा मास
कूनो अभ्यारण में चीतों को आसान शिकार उपलब्ध कराने की गरज से जहां कूनो प्रबंधन चीतों के सामने अब जिंदा बकरे छोड़ रहा है यह बकरे खुले वन में घूम रहे हैं चीतों के साथ-साथ बाड़ों में बंद चीतों के आगे भी परोसे जा रहे हैं, पर इनमें तीन चीते ऐसे भी बताए जा रहे हैं जो शिकार के लिए परोसे जा रहे इन बकरों की ओर देख तक नहीं रहे हैं, ऐसे चीतों के लिए कूनो प्रबंधन द्वारा भैंसे के गोश्त का इंतजाम किया जा रहा है। ठेकेदार के माध्यम से रोजाना 5 से 7 जिंदा बकरा और भैंसे का गोश्त कटवा कर मंगवाया जा रहा है।

बार बार सीमा लांघने के कारण भी लिया निर्णय
वर्तमान में कूनो नेशनल पार्क में महज दो चीते ही खुले जंगल में छोड़े गए हैं। खुले जंगल में छोड़े गए चीते कई बार शिकार की तलाश में कूनो की सरहद लांघ चुके हैं। ऐसे में विशेषज्ञों ने चीतों के शिकार यानी शाकाहारी वन्य प्राणियों की जंगल में मौजूदगी का आकलन करा लेने का निर्णय लिया है। ताकि पता चल सके कि चीतों के लिए पर्याप्त शिकार मौजूद है या नहीं। चिंता का बड़ा कारण यह भी है कि वर्तमान में बाड़े में रखे गए चीतों को भी खुले जंगल में छोड़ने की तैयारी है। ऐसे में जंगल में चीतों के लिए खुराक का आकलन करने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान की ओर से शाकाहारी वन्यप्राणियों की गणना शुरू कराई गई है। कूनो की अलग अलग रेंजों में वनरक्षकों को गणना का जिम्मा दिया गया है जिसमें हर दो किमी में ट्रांजेक्ट लाइन पर सर्वे किया जा रहा है। पर कूनो प्रबंधन का चीतों को खुले वन में छोड़े जाने के अनुभव ज्यादा ठीक नहीं रहे हैं, खुले वन में छोड़े जाने के बाद चीते हमेशा पड़ोसी जिले और राजस्थान की सीमा में टहलते हुए निकल गए जिन्हें ट्रेंकुलर कर वापस लाना पड़ा। इस कारण भी शायद बकरा को कूनो के जंगल और चीतों के बाड़ों में छोड़ा जा रहा है ताकि चीते शिकार के लिए कूनो के बाहर ना जा सकें।

आसान और हल्के जानवर हैं चीतों का शिकार
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार एक सामान्य चीते की खुराक एक हफ्ते में 20 से 25 किलो के तीन शाकाहारी जानवर होते हैं। चीतों का जबड़ा छोटा होता है, ऐसे में चीतल, सांभर इनके लिए मुफीद शिकार रहता है । हर जंगली जानवर को शिकार के लिए एक वर्ग किमी में कम से कम 40 जानवर पर्याप्त माना जाता है।कूनो में जंगली सूअर भी हैं परंतु चीता आसानी से इनका शिकार नहीं कर पाता है।

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