प्रमुख खबरें

आंदोलन की यादों को जीवित रखेंगे किसान, तंबुओं को उखाड़ ले जाएंगे अपने साथ, फिर इन्हें लगाएंगे गांवों में

नयी दिल्ली। केंद्र सरकार (central government) द्वारा तीन कृषि कानून (agricultural law) वापस लिए जाने और किसानों (farmers) की अन्य मांगें स्वीकार करने के बाद विभिन्न सीमाओं में डंटे किसान आज से अपने घरों को वापस जाने के लिए प्रदर्शन स्थलों पर लगे तंबुओं (tents) को उखाड़ लिया है। वहीं अब किसानों का कहना है कि इन तंबुओं को उनके लंबे कठिन संघर्ष के प्रतीक के रूप में अपने-अपने गांवों में ले जाएंगे और इन्हें फिर से लगाएंगे।

इस बीच प्रदर्शन कर रहे गुरिंदर सिंह (Gurinder Singh), बूटा सिंह शादीपुर (Buta Singh Shadipur) का कहना है कि उनके गांव के अन्य लोगों के लिए सिंघू बॉर्डर (singhu border) पर 2,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में लगाया गया तम्बू एक साल से अधिक समय से उनका घर था। अब इसे उखाड़ दिया गया लेकिन हम इसे अपने गांव पंजाब के बठिंडा ले जाएंगे ताकि किसान आंदोलन की यादों को जीवित रखा जा सके।

वहीं गुरिंदर, बूटा ने कहा कि 500 अन्य किसान जब अपने राम निवास गांव से 26 नवंबर को सिंघू बॉर्डर आए थे, तब उन्हें जमीन पर खुले आकाश के नीचे गद्दे बिछाकर सोना पड़ा था। इसके कुछ महीनों बाद दोनों दोस्तों गुरिंदर और बूटा ने 2,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में एक अस्थायी ढांचा बनाया ,जिसमें तीन कमरे, एक शौचालय और सभा करने के लिए एक क्षेत्र था। उन्होंने इसे बनाने के लिए बांस और छत के लिए टीन का इस्तेमाल किया। सभा क्षेत्र और तीन कमरों में हर रात करीब 70 से 80 लोग सोया करते थे। इसके बाद उन्होंने टेलीविजन, कूलर, गैस स्टोव, एक छोटे फ्रिज आदि की भी व्यवस्था की, ताकि वे अपना मकसद पूरा होने तक यहां आसाम से ठहर सकें।

गुरिंदर ने कहा, इस ढांचे को बनाने में करीब चार लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए। हमारे पास जरूरत की हर वस्तु थी। अब हमारी इसे हमारे गांव ले जाकर वहां स्थापित करने की योजना है। बूटा ने कहा, हम इसमें अपनी कुछ तस्वीरें भी लगाएंगे, ताकि हमें यहां बिताया समय याद रहे। प्रदर्शन स्थल पर 10-बिस्तर वाले ‘किसान मजदूर एकता अस्पताल’ का प्रबंधन करने वाले बख्शीश सिंह को मकसद पूरा होने की खुशी के साथ ही अपने साथियों से जुदा होने का दु:ख भी है।





पटियाला निवासी बख्शीश (Bakshish resident of Patiala) ने कहा कि लाइव केयर फाउंडेशन द्वारा संचालित यह अस्थायी अस्पताल पहले मधुमेह एवं रक्तचाप नियंत्रित करने की दवाओं के साथ शुरू हुआ था, लेकिन किसानों की बड़ी संख्या के मद्देनजर इसकी क्षमता बढ़ाई गई। चिकित्सकों ने बताया कि इस अस्पताल में पिछले एक साल में एक लाख लोग ओपीडी में आए और इनमें स्थानीय निवासियों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी। इस अस्पताल में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, मियादी बुखार आदि की नि:शुल्क जांच की जाती थी।

मोहाली के जरनैल सिंह ने कहा कि उन्होंने 12 गांवों के करीब 500 लोगों के लिए बांस और तिरपाल से दो अस्थायी ढांचे बनाए थे, जिन्हें बनाने में चार लाख रुपए लगे थे। जरनैल और अन्य लोगों की योजना अब इसे प्रतीक के रूप में बूटा सिंह वाला गांव में स्थापित करने की है। भारतीय किसान यूनियन (Bhartiya Kisan Union) के सरदार गुरमुख सिंह (Sardar Gurmukh Singh) ने मार्च में ईंटों और सीमेंट से तीन कमरों का एक ढांचा बनाया था। कम से कम पांच लोग शुक्रवार सुबह से ही इसे तोड़ने का काम लगातार कर रहे हैं।

सरदार गुरमुख सिंह ने कहा, मैंने इस पर लगभग चार लाख रुपये खर्च किए। हम लगभग 20,000 ईंटों को बचा सकते हैं, जिनका इस्तेमाल यहां मारे गए लोगों का स्मारक बनाने के लिए किया जाएगा।संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ पुलिस में दर्ज मामले वापस लिये जाने और एमएसपी सहित किसानों की मुख्य लंबित मांगों को स्वीकार करने का एक औपचारिक पत्र केंद्र सरकार से प्राप्त होने के बाद एक साल से चला आ रहा अपना आंदोलन स्थगित करने की बृहस्पतिवार को घोषणा की।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button