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इंदौर में बोले चंपत राय, आजादी की जंग से कम नहीं था राम मंदिर अंदोलन, काशी-मथुरा के लिए आगे आए 39 साल वाले

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इंदौर। रामजन्म भूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय सोमवार को इंदौर पहुंचे। उन्होंने विश्वम संस्था द्वारा आयोजित श्रीराम जन्मभूमि गौरव यात्रा कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चंपतराय ने राम मंदिर आंदोलन का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर आंदोलन आजादी की लड़ाई से कम नहीं था। वहीं उन्होंने अयोध्या की तरह मथुरा-काशी में मंदिर निर्माण और दर्शन को लेकर बड़ा बयान दिया।

राय ने कहा अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ कर इस देश और हिंदू समाज का अपमान किया गया। फिर से मंदिर बनाना हमारी अस्मिता से जुड़ा था, क्योंकि गुलामी की निशानियां चिपका कर नहीं रखी जाती है। यह लड़ाई देश हित के लिए की गई। राम मंदिर फिर से बनाना हिंदुस्तान की मूंछ का सवाल था। राम मंदिर हिंदुस्तान के अपमान का परिमार्जन है। चंपतराय ने अयोध्या के लिए एक हजार साल चले संघर्ष का जिक्र करते हुए कहा- हमको उतना ही खाना चाहिए, जितना पच जाए। तभी खाना चाहिए, जब पहला पच जाए। वर्ना डाइजेशन की समस्या हो जाएगी।’

हजारों संतों ने राम मंदिर के प्रति जागरण किया
उन्होंने कहा कि हजारों संतों ने राम मंदिर के प्रति जागरण किया। ये किसी एक व्यक्ति से संभव नहीं है। 500 साल में कितने लोगों का जीवन गया, ये कोई नहीं जानता। राम का मन्दिर तोड़ना राष्ट्र,समाज का अपमान था। देश की तुलना सोते शेर से को गई है। साधु संतों ने इस शेर को जगाया और एकजुट किया। राय ने कहा कि दस करोड़ लोगों से 2800 करोड़ रुपए इस मंदिर के लिए दिए। मंदिर के लिए समाज ने खून पसीने की कमाई दी है। हमने हर प्रकार के टैक्स दिए। कोई कर चोरी नहीं की।

1991 से शुरू कर दी गई थी पत्थरों की नक्काशी
राय ने मंदिर के मॉडल का जिक्र करते हुए कहा कि हमने जनवरी 1989 में मंदिर का लकड़ी का मॉडल बनाकर जनता को दिखा दिया था। तब मंदिर निर्माण के लिए खर्च होने वाली राशि के लिए जनता से सवा रुपए मांगा गया। तब से ही यह अभियान चल पड़ा। 1991 से पत्थरों की नक्काशी भी शुरू कर दी गई थी। मुझे इसी काम में लगने के लिए कहा गया। साल 2006 आते-आते इतने पत्थर तैयार हो गए कि इन्हें रखने के लिए भी जगह नहीं थी। 1992 में ढांचा गिर गया तो अदालती प्रक्रिया शुरू हो गई। इसमें काफी समय लग गया।

ऐसे तय हुआ मंदिर का पहला आर्किटेक्ट
चंपत राय ने कहा कि 1986 में जो पीढ़ी काम कर रही थी, उसमें अशोक सिंघल, मोरपंख पिंगले, देवकी नंदन अग्रवाल, परमहंस रामचंद्र दास समेत कई लोग थे। उस समय यह बात आई कि ऐसा मंदिर बनाओ कि कोई तोड़ न सके। बात पत्थरों पर आकर रुकी। उस समय आर्किटेक्ट कौन हो इस पर चर्चा हुई तो गंगा प्रसाद बिरला ने चंद्रकांत भाई सोमपुरा का परिचय अशोक सिंघल करवाया था।

एक हजार साल तक धूप-पानी सह सकेंगे पत्थर
गंगा प्रसाद बिरला ने कभी जन जागरण देख अशोक जी को बुलाया था। तब बिरला जी ने उनसे कहा था कि तुम लोग क्या कहते हो कि मंदिर वहीं बनाएंगे। कभी ऐसा हुआ है कि लोगों ने जिसे मस्जिद कह दिया हो उसे तोड़ा गया हो। तब अशोक से ने बेबाकी से कहा था कि बाबूजी आप हमें तोड़ने के लिए उकसा रहे हैं क्या? इसी दौरान चंद्रकांत भाई सोमपुरा का परिचय कराया गया, तब उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों की बात कही। यह बात आई कि पत्थर कहां से लाया जाए। राजस्थान से विशेष किस्म का पत्थर लाने का तय किया गया। उन्होंने बताया कि यह पत्थर एक हजार साल तक धूप पानी को आसानी से सह सकेंगे। उसके बाद वैज्ञानिकों की बात भी माननी पड़ी।

अब संघ के प्रति समाज की सोच बदली है
राय ने कहा कि 60 के दशक में समाज में संघ के प्रति आकर्षण नही था। आरोप-प्रत्यारोप भी चलते रहते थे। हमने उस माहौल में काम किया। जो गीत हम शाखा में गाते है, वे सच हो रहे है।अब संघ के प्रति समाज की सोच बदली है।हमने पुराने लोगों से सुना कि संघ का प्रचारक देश को राज्यों में नहीं देखता। वो संपूर्ण भारत की सोच रखता है। किसी भी हिस्से में वो काम करने के लिए तैयार रहता है।

परकोटे में छह मंदिर बनेंगे
राय ने मंदिर निर्माण की योजना के बारे में बताया कि मंदिर में लोहे सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया। तीन मंजिला मंदिर 400 खंबों पर खड़ा है। पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे का उपयोग किया गया। एक-एक पत्थर को परखा गया कि कही किसी पत्थर में दरार तो नहीं है। राय ने कहा कि उपरी मंजिल बनने के बाद उसमें राम दरबार लगेगा। मंदिर के चारों और परकोटा बन रहा है। उस परोकोट में छह मंदिर बनेंगे।लक्ष्मण जी का भी एक मंदिर बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि 70 एकड़ जमीन में 50 एकड़ जमीन में सिर्फ पौधे लगाए जा रहे है। पर्यावरण का विचार भी मंदिर में निहित है। 25 लाख घन फुट पत्थर इस मंदिर निर्माण में लग रहा है।

अब मथुरा-काशी के लिए आज जो लोग 39 साल के हैं, वे आगे आएं
इस दौरान उनसे पूछा गया कि जब आपकी उम्र 39 साल थी, तब से अब जाकर राम मंदिर दर्शन हो पाए हैं। जब सरकार हमारी है तो क्या फिर भी मथुरा-काशी के दर्शन तीसरी पीढ़ी में हो पाएंगे, क्या इतना विलंब लगना चाहिए? वे जवाब में आगे बोले- चलते समय पिछला पैर तब उठाना चाहिए जब अगला जम जाए। यदि अगला पैर जमे नहीं, पिछला उठा देंगे तो फिसलने का डर रहता है। एक काम संपन्न हो जाने दो, उसकी समाज में पूरी स्वीकार्यता हो जाने दो, फिर आगे भी हो जाएगा। यह मामला हिंदुस्तान की एक हजार साल गंभीर बीमारी का है। क्या पांच-सात साल में ही इसे हल करना चाहते हो। काम ऐसा करना चाहिए ताकि समाज का प्रत्येक वर्ग स्वीकार करे कि जो हो रहा है, वो सही हो रहा है। वर्ना दुर्घटना हो सकती है। दरअसल, राय ने खुद के राम मंदिर आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा कि जब आंदोलन से जुड़ा तब मेरी उम्र 39 साल थी। अब मथुरा-काशी के लिए आज जो लोग 39 साल के हैं, वे आगे आएं।

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