ओबीसी आरक्षण पर शिवराज सरकार को करारा झटका

भोपाल। मध्यप्रदेश में पंचायत और नगरीय चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। यानि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करने के बाद अहम फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि निकाय चुनाव की तैयारियां कर दो हफ्ते में अधिूसचना जारी करें। साथ ही कोर्ट ने कहा कि ओबीसी आरक्षण के लिए तय शर्तों को पूरा किए बिना आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मप्र सरकार के लिए बड़ा झटका है। वहीं, इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि सरकार कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर पुनर्विचार याचिका दायर करेगी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब यह तय हो गया कि मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के होंगे। शीर्ष अदालत ने यह फैसला जया ठाकुर और सैयद जाफर की एक याचिका पर सुनाया है। जाफर ने बताया कि कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य निर्वाचन आयोग 15 दिन के अंदर पंचायत एवं नगर पालिका के चुनाव की अधिसूचना जारी करें। अदालत के इस आदेश को राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार के लिए झटका माना जा रहा है। शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव 27% ओबीसी आरक्षण के साथ कराने की बात कही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने फैसले में प्रदेश में लंबे समय से पंचायत और नगर निगम चुनाव नहीं होने पर नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने सरकार को 15 दिन के अंदर पंचायत एवं नगर पालिका के चुनाव की अधिसूचना जारी करने को कहा। साथ ही कोर्ट ने सरकार की ओबीसी आरक्षण को लेकर पेश ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट को अधूरा माना। कोर्ट ने कहा कि बिना ट्रिपल टेस्ट की रिपोर्ट के आरक्षण लागू नहीं कर सकते। ऐसे में प्रदेश में अब बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव होंगे।
इन्होंने दायर की थी याचिका
बता दें, सैयद जफर और जया ठाकुर प्रदेश में पंचायत चुनाव रोटेशन प्रक्रिया से कराने को लेकर कोर्ट गए थे। इस याचिका की सुनवाई में कोर्ट ने सरकार से ओबीसी आरक्षण को लेकर जवाब मांगा था, जिस पर सरकार ने दिसंबर 2021 में चार महीने में रिपोर्ट तैयार करने का समय मांगा था। इस समय के समाप्त होने के बाद कोर्ट ने सरकार से 5 मई को फटकार लगाते हुए अगले दिन रिपोर्ट पेश करने को कहा था। सरकार ने 600 पन्ने की कोर्ट में 6 मई को रिपोर्ट पेश की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शीर्ष अदालत ने सरकार की रिपोर्ट को माना आधा-अधूरा
सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के मामले में प्रदेश की भाजपा सरकार की रिपोर्ट को अधूरा माना है। इसलिए अब स्थानीय चुनाव 36% आरक्षण के साथ ही होंगे। इसमें 20% एसटी और 16% एससी का आरक्षण रहेगा। जबकि, शिवराज सरकार ने पंचायत चुनाव 27% ओबीसी आरक्षण के साथ कराने की बात कही थी। अब अदालत ने साफ कहा है कि अधूरी रिपोर्ट होने के कारण मध्य प्रदेश के ओबीसी वर्ग को पंचायत एवं नगर पालिका में आरक्षण नहीं मिलेगा। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि 5 साल में चुनाव कराना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। ट्रिपल टेस्ट पूरा करने के लिए अब और इंतजार नहीं किया जा सकता।
फैसले का करें सम्मान: तन्खा
ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक कृष्ण तंखा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हम सबको सम्मान करना चाहिए। सांसद ने कहा कि सरकार के पास अच्छे सलाहकार नहीं है। शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को समझ नहीं पा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार फैसले को नकारने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि अदालत के इस फैसले में रीव्यू लायक कुछ नहीं है।
प्रदेश में आरक्षण के नियम बनने के बाद 1993 से अब तक पांच चुनाव हुए हैं। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 और अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अनुसूचित जनजाति को 20 प्रतिशत और अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा, लेकिन ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं मिलेगा।