विश्लेषण

असम का संग्राम: गठंधन, तुष्टिकरण और धु्रवीकरण के सहारे कांग्रेस को सत्ता वापसी की उम्मीद!

गुवाहाटी। पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में अगर कांग्रेस सबसे ज्यादा कहीं आशांवित नजर आ रही है तो वह राज्य असम है। कांग्रेस को भरोसा है कि गठबंधन, तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण के बूते वह सत्ता में वापसी कर लेगी। 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हटाकर राज्य में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी हालांकि इससे पहले 1979 में जोगेंद्र नाथ हजारिका की अगुवाई में जनता पार्टी सत्ता में काबिज हो चुकी है। बीते चुनाव में राज्य की 126 सीट में 30.9% वोट शेयर के साथ कांग्रेस को 26 सीट मिली थी। मगर 29.5% मत प्रतिशत के बावजूद बीजेपी 60 सीट के साथ सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 14 सीट वाली अमस गण परिषद और 12 विधायकों वाली बोडोलैंड पिपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर भाजपा ने बहुमत का आंकड़ा जुटा लिया था। इस बार बीजेपी ने बीपीएफ को गठबंधन से बाहर कर युनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) और गण सुरक्षा पार्टी (जीएसपी) को अपने साथ शामिल किया है।

तरुण गोगोई की मौत से और कमजोर हुई कांग्रेस
असम कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। लगातार 15 साल तक यहां उसकी सरकार रही और तरुण गोगोई पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा थे, जिनके नाम और काम पर राज्य के लोग ‘हाथ’ का साथ देते थे। 2016 में सूपड़ा साफ होने के बाद कांग्रेस राज्य में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगी। इस बीच कोरोना महामारी ने पूर्व मुख्यमंत्री और सबसे कद्दावर नेता तरुण गोगोई को भी छीन लिया। बीते साल नवंबर में उनकी मौत के बाद कांग्रेस कई धड़ों में बंट गई। अब कांग्रेस को भी यह समझ में आ चुका है कि सत्तासीन बीजेपी से वह अकेले संघर्ष नहीं कर सकती इसलिए कई छोटी पार्टियों से गठबंधन का रास्ता अख्तियार किया गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इन पांचों राज्यों के चुनावों को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है।

गठबंधन के भरोसे कांग्रेस
परफ्यूम व्यापारी और लोकसभा सदस्य बदरुद्दीन अजमल की पार्टी आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, कम्यूनिस्ट पार्टी, मार्क्स कम्यूनिस्ट पार्टी, मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट कम्यूनिस्ट पार्टी और आंचलिक गण मोर्चा के साथ कांग्रेस का गणबंधन हुआ है। ब्रह्मपुत्र घाटी में निचले असम का एक बड़ा हिस्सा बंगाली भाषी मुसलमानों का घर है, जिसे एआईयूडीएफ का गढ़ माना जाता है। मध्य असम की 30 सीट और बराक घाटी के तीन जिलों में इस पार्टी का दबदबा है। काग्रेस की नजर असम के ऊपरी हिस्से की करीब 45 सीट पर होगी। कांग्रेस अन्य दो क्षेत्रीय पार्टी असम जातिया परिषद और रायजोर दल के साथ भी संभावनाएं तलाश रही है, जो साथ में चुनाव लड़ रहे हैं। असम गण परिषद के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, ‘2016 के चुनाव में अजमल की एआईयूडीएफ को 13 सीट मिली थी और बोडोलैंड पिपुल्स फ्रंट को 12 सीट। अगर इसे कांग्रेस के आंकड़े में जोड़ दिया जाए तो तीनों दलों का कुल वोट शेयर 57% था। अगर यही पैटर्न इस बार दोहराया जाता है, तो हमारे लिए सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो सकता है।’

‘असम बांग्लादेश बन जाएगा’
भाजपा असम में क्षेत्र और जाति जैसे तमाम मुद्दों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ रही है। एनआरसी, सीएए को असम में हवा देने से नहीं चूक रही है। अमित शाह बड़े विश्वास भरे अंदाज में लगातार मूल असमियों, हिन्दू मतदाताओं पर डोरे डालने के लिए घुसपैठियों को बाहर करने का भरोसा दिला रहे हैं। पिछली जनसभा में भी उन्होंने इस माहौल को जीवंत कर दिया। असम के तमाम बंगाली मूल के लोगों को नागरिकता के लिए दोबारा कागजी दस्तावेज जमा कराने की स्थिति आने के बारे में सोचने को मजबूर किया है। मंत्री हेमंत बिस्व तो ये तक कहने से नहीं चूके कि अगर कांग्रेस-एआईयूडीएफ सत्ता में आती है तो असम बांग्लादेश बन जाएगा। यहां घुसपैठियों का राज हो जाएगा।

एकजुटता दिखाने में जुटी कांग्रेस
मनमुटाव को दरकिनार कर अब कांग्रेस के सारे क्षत्रप एक छत के नीचे आ चुके हैं। बीजेपी को हराने के लिे जीतेन्द्र सिंह रणनीति बना रहे हैं और गौरव गोगोई, रिपुन बोरा, प्रद्युत बोरदोलोई, हितेश्वर सैकिया, सुष्मिता देव, रकीबुल हुसैन मैदान पर मेहनत कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी असम में जमकर मेहनत कर रहे हैं, उन्हें अपने सहयोगियों रायपुर पश्चिम के विधायक विकास उपाध्याय, राजनैतिक सलाहकार विनोद वर्मा, मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग और राजेश तिवारी का बखूबी साथ मिल रहा है।

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